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बदन पे वही लिबास भाई।

22 22 22 22
बदन पे वही लिबास भाई।
दिखता फिर से उदास भाई।।

कड़वी बातें क्यों करते हैं।
कुछ तो रखिये मिठास भाई।।

वादों की बौछार न करिये।
सच में हो इक प्रयास भाई।।

मरा भूख से फिर भी देखो।
लगते क्या क्या कयास भाई।।

चाँद तारे किस काम के जब।
दीपक से घर उजास भाई।।
********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2015 at 9:49am
आदरणीय गिरिराज जी अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2015 at 9:46am
खुर्शीद साहेब बहुत बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2015 at 9:46am
गुमनाम भाई उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2015 at 9:45am
मिथिलेश भाई हार्दिक आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on February 6, 2015 at 9:44am
आदरणीय गणेश जी आपके अमुल्य सुझाव व् उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक आभार आपका।।मैंने सुधार कर लिया है।।सादर
Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:04am

आदरणीय रामशिरोमणि जी सुन्दर ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 1, 2015 at 6:44pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आपने … हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 1, 2015 at 12:29pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी बहुत अच्छी ग़ज़ल है दाद कुबूल फरमायेँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2015 at 11:54am

आ. राम भाई , अच्छी गज़ल हुई है , आपको दिल से बधाइयाँ प्रेषित कर रहा हूँ , स्वीकार करें ।
आ. बागी जी की सलाह बहुत सही है , तदानुसार सुधार कर लीजियेगा ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2015 at 11:25am

//कड़वाहट की बातें छोड़ो
कुछ तो रखिये मिठास भाई।।//

राम भाई, यदि मिसरा उला में छोड़ो है तो सानी में रखिये गलत है, रखो करना होगा या फिर उला में छोड़ो को छोडिये करना होगा वर्ना यह एक ऐब होगा . 

//वादों की बौछार न करिये।
सच में हो इक प्रयास भाई।।// क्या कहने जनाब, बहुत उम्दा. बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल हेतु.

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