For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल १२२२--१२२ \ १२२२--१२२ ..तो सो गये हम

थकन से चूर होकर , गिरे तो सो गये हम

जो चलते चलते गाफ़िल , हुये तो सो गये हम

 

हमारी भूख का क्या , हमारी प्यास का क्या

ये अहसासात दिल में , जगे तो सो गये हम

 

शनासा भी न कोई , तो अपना भी न कोई

अकेले थे अकेले , रहे तो सो गये हम

 

हमारी नींद सपने , सजाती ही नहीं है

हक़ीक़त से जहाँ की , डरे तो सो गये हम

 

मनाओ शुक्र तुम हो , गमों से दूर साथी

हमें तुम मुस्कुराते , मिले तो सो गये हम

 

हमारा दर्द भी क्या , हमारे ज़ख्म भी क्या

जो रोते रोते आँसू , थमे तो सो गये हम

 

घरों में नींद आती , नहीं क्यूं खुशनसीबों

कहीं फुटपाथ पर जा , पड़े तो सो गये हम

 

नहीं थकते कभी हम , करा लो काम भारी

अज़ीज़ों हाथ खाली , रहे तो सो गये हम

 

हमारी ज़िंदगी क्या , हमारी मौत भी क्या

जगे तो डर कज़ा का , मरे तो सो गये हम

 

हमारी पीठ पर दिन , हमारे पेट पर रात

कभी ये चाँद सूरज , थके तो सो गये हम

 

हमेशा ठोकरों में , रहे बेदर्द तेरी

ज़माने पाँव तेरे , थके तो सो गये हम

 

ग़मों ने जब सताया , बने हमदर्द ख़ुद ही

न कह पाये किसी से , गिले तो सो गये हम

 

शजर कोई नहीं , हमारी रहगुजर में

सितम ‘खुरशीद’ तेरे , सहे तो सो गये हम

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 832

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 8:28pm

खुर्शीद साहेब

अब भी आपको सरताज-ए-गजल गजल न कहे तो क्या कहें i हर शेर स्तब्ध  करता हुआ i  सादर i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 28, 2015 at 12:01pm

आ०  भाई  खुर्शीद   जी बेहतरीन गजल हुई है हार्दिक बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 28, 2015 at 9:13am

aadarneey khursheed jee ..har sher umda hai ,is shaandaar ghazal ke liye aapko dher saaree badhaayee saadar 

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:32am

आदरणीय सौरभ सर आपका मेरी ग़ज़ल पर आना मुझे नई उर्जा प्रदान करता है ,अब यह अनुज आपसे यह आशा तो रख ही सकता है कि आप मुझे सदैव  ऊर्जावान रखेंगे |हृदय तल से आभार |आशीर्वाद बनाये रखियेगा |

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:19am

आदरणीय अजय शर्मा सर ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने मुझे जोश से भर दिया है ,इस तरह की प्रतिक्रिया किसी भी कमज़ोर शायर से एक पूरा दीवान लिखवा दे |मेरी अगली ग़ज़ल का हर इक शेर आपको बतौर नज़राना पेश है |सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:14am

आदरणीय मिथिलेश जी ,ज़र्रानवाज़ी का शुक्रिया |आपकी मुहब्बत मेरी शायरी का सरमाया है |ग़ज़ल आप तक पहुँची , बस इसका लिखा जाना सार्थक हो गया |सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 27, 2015 at 9:11am

आदरणीय ख़ुर्शीद भाईजी, आपने एक बार फिर हृदय को प्रसन्न कर दिया है. जिस सहजता से रदीफ़ का निर्वहन हुआ है वह भावुक कर रहा है. कई अश’आर बहुत-बहुत गहन हैं. बहुत कुछ बोलते हुए. दिल से बधाई भाई.

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:11am

आदरणीय हरिप्रकाश सर ,शिज्जु शकूर सर ,रचना पर आपकी उपस्थिति सदैव उत्साह वर्धक रहती है |आप महानुभवों का मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे |सादर आभार 

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:08am

आदरणीय गिरिराज सर , विजयशंकर सर , आपकी स्नेहिल सराहना ने मेरे होसलों को नए पर दिये हैं |मेरे रचनाकर्म की पतंग की डोर आप जैसे अग्रजों का आशीर्वाद ही है |साहब डोर कटने न पाए |हृदय तल से आभार |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 9:03am

आदरणीय गुमनाम साहब , गिरीश गिर्वी साहब ,बहुत बहुत आभार |मुहब्बत बनाये रखियेगा |सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
46 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service