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गजल- आन बान शान पर तो मर मिटो या मार दों!

२१२१ २१२१ २१२१ २१२

भारती की मूरती को आज फिर संवार दों!
आर्यवर्त की रिदा को दूध सा निखार दों!!

जिन्दगी ये देश की है देश पर निसार दों!
जितनी बार भी मिले कि उतनी बार वार दों!!

गाडते चलो अमर तिरंगे को सितारो तक!
मानचित्र हिन्द का ब्रह्माण्ड पे उभार दों!!

जो सिमट गये वतन की राह में वे कह गये!
आन बान शान पर तो मर मिटो या मार दों!!

लोग जो अभी तलक जगे नहीं जगा दो अब!
देश की गली गली में जाके तुम पुकार दों!!

पाश्च सभ्यता का जो फितूर चढ गया तुम्हें!
तुम दिमाग में से उस फितूर को उतार दों!!

राष्ट्र की अखण्डता पे आँच लाने वालो को!
लात मार मार के कि फेंक सीमा पार दों!!

ऐ जवान खून आज थाम ले कमान को!
देश डगमगा रहा है दोस्तों उभार दों!!

मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 1:31pm

//फितूर वाले शे'र में आदरणीय क्या आपका दिया मिसरा शे'र के पहले मिसरे से मेल खा रहा है?//

यह प्रश्न मुझसे क्यों ? यह सोचना आपका काम है आदरणीय, ग़ज़ल आपकी है, मैंने सुझाव मात्र दिया था, आप उसे न मानने के लिए स्वतंत्र हैं. मुझे उचित लगा होगा तभी न सुझाव दिया है.

//मैं तो कमबुद्धि हुँ //

आदरणीय, इस पक्ति की आवश्यकता नहीं है, हम सभी साथ साथ हैं.

सीमा पार फेकने का अर्थ यह निकल रहा है कि देश द्रोही सीमा पार के हैं, खैर यह मेरी अपनी सोच है, मैं अपनी सोच वापस लेता हूँ. 

//मुझे आप अपने शिष्य मानकर मेरी इन बातो के जवाब समझाए//

आदरणीय इस मंच पर गुरु - शिष्य परम्परा नहीं है, हम सभी समवेत सीखते - सिखाते हैं. बस दिल खुला रखते हैं, सादर. 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 25, 2015 at 12:11pm
फितूर वाले शे'र में आदरणीय क्या आपका दिया मिसरा शे'र के पहले मिसरे से मेल खा रहा है? मैं तो कमबुद्धि हुँ फिर मुझे ...सादर! सन्रम!

और अखंडता को आँच देने वाले ज्यादातर नेता लोग है और लोग भी पर देशद्रोह होते हुए भी वे है नहीं हर कोई राजनेता हिन्दु मुस्लिम को व अन्य जाती वादी समुहो को से देश को बाँट रहे कोई भाषा से और न जाने कितने तरिको से ! उनके लिए ये पंक्ति शायद कुछ गलत नहीं है क्यूं ये पुरी रचना में मैनें नौजवानो की ओर इशारा कर के कहा है! हाँ इसमें गजल कम कही गई है शायद!
सविनय निवेदन है मुझे आप अपने शिष्य मानकर मेरी इन बातो के जवाब समझाए क्यूं अगर मैं गलत सोच रहा हुँ आप बताने का कष्ट करें ! सादर नमन!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 25, 2015 at 11:33am

तुम दिमाग में से उस फितूर को उतार दों!!

//तुम दिमाग से जरा फितूर को उतार दों!! //      अगर ऐसे कहे तो ....

इस शेर का कहन देखे जरा ....

//राष्ट्र की अखण्डता पे आँच लाने वालो को!
लात मार मार के कि फेंक सीमा पार दों!!//

देश द्रोहियों को सीमा पार क्यों फेकोगे भाई, उधर कोई गार्बेज एरिया है :-)

मिसरा सानी को कुछ अलग तरह से कहने का प्रयास करें.

अच्छी प्रस्तुति हुई है, बधाई स्वीकार करें.

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 25, 2015 at 9:06am
आदरणीय somesh kumar जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 25, 2015 at 9:05am
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 25, 2015 at 9:01am
VIRENDER MEHTA (VEER MEHTA भाई जी शुक्रिया
Comment by somesh kumar on January 25, 2015 at 7:50am

आर्यवर्त की रिदा को दूध सा निखार दों!!

सुंदर ,देश-प्रेम और ओज से परिपूर्ण गज़ल पर बधाई |


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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 25, 2015 at 3:19am

आदरणीय राहुलभाई जी सुन्दर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई 

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on January 24, 2015 at 10:59pm
ऐ जवान खून आज थाम ले कमान को!
देश डगमगा रहा है दोस्तों उभार दों! ........
बहुत सुन्दर Rahul dangiji
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 24, 2015 at 7:57pm
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया!

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