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ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे
ख़ामोश थी खून की चीखें सभी
ख़ामोश वो अश्कों के धारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे …….

खूनी चेहरों के मंजर ने
हर धर्म का फर्क मिटा डाला
क्या अपना और बेगाना क्या
हर दुःख को अपना बना डाला
हर चेहरे पे इक दहशत थी
और सपनें सहमे सारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….

बिखरे चूडी के टुकडों का
बंदूक क्या दर्द को समझेगी
जो गोली खून की प्यासी हो
वो सिन्दूर का मर्म न समझेगी
प्रतिशोध की ज्वाला थी दिल में
और आंखों में अंगारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….

क्योँ मानव दानव बन बैठा
और कत्ल को धर्म समझ बैठा
अंजाम-ऐ-मौत से क्योँ अपने
जीवन का श्रृंगार वो कर बैठा
ऐ कातिल झुक के देख जरा
कुछ इनमें चेहरे तुम्हारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे, ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे…………
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on December 21, 2014 at 6:32pm

आदरणीय    Dr. Vijai Shanker  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2014 at 6:32pm

 आदरणीय    somesh kumar    जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on December 21, 2014 at 6:31pm

आदरणीय   Hari Prakash Dubey    जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 20, 2014 at 8:38pm
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
एक सार्थक प्रस्तुति , बधाई आदरणीय सुशील सरना जी , सादर।
Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 7:44pm

खूनी चेहरों के मंजर ने
हर धर्म का फर्क मिटा डाला
क्या अपना और बेगाना क्या
हर दुःख को अपना बना डाला
हर चेहरे पे इक दहशत थी
और सपनें सहमे सारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….सुंदर प्रस्तुति |आदरणीय 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:35pm

ऐ कातिल झुक के देख जरा
कुछ इनमें चेहरे तुम्हारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे....सुन्दर रचना .....हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी !

Comment by Sushil Sarna on December 20, 2014 at 2:46pm

    मिथिलेश वामनकर जी  आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 12:50am

भावुक और लाजवाब रचना की प्रस्तुति के लिये आपको बहुत बहुत बधाई.... 

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2014 at 6:23pm

  gumnaam pithoragarhi जी  आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार

Comment by Sushil Sarna on December 19, 2014 at 6:23pm

    Shyam Narain Verma   जी  आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार

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