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चोट दिल पे लगी है दवा दो मुझे
याद आये न उसकी दुआ दो मुझे

प्‍यार जिससे किया छुप गया वो कहीं
ऐ हवा तुम ही उसका पता दो मुझे

मर न जायें कहीं प्‍यार के दर्द से
दर्द कैसे सहें तुम सिखा दो मुझे

हर खुशी आपको तो दिया हूँ मगर
दिल दुखाया कभी तो सज़ा दो मुझे

अब जुदाई न मुझसे सही जाती है
मौत की नींद आकर सुला दो मुझे

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Rahul Dangi Panchal on December 21, 2014 at 9:57am
विरह वेदना से छलकती हुई रचना बहुत सुन्दर वाह!
आदरणीय मिथिलेश जी का सुझाव विचारणीय है! सादर!
Comment by Dr. Vijai Shanker on December 21, 2014 at 1:12am
बहुत ही सुन्दर , बधाई आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , सादर।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 10:31pm

सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अखण्ड गहमरी जी

इस शेर में गुंजाइश लग रही है  सादर 

हर खुशी आपको तो दिया हूँ मगर
दिल दुखाया कभी तो सज़ा दो मुझे

Comment by gumnaam pithoragarhi on December 20, 2014 at 8:30pm
वाह,,,,,,,, बहुत खूब बधाई .
Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 8:25pm

प्‍यार जिससे किया छुप गया वो कहीं
ऐ हवा तुम ही उसका पता दो मुझे

सुंदर रचना भाई जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:02pm

ऐ हवा तुम ही उसका पता दो मुझे......सुन्दर रचना पर हार्डी बधाई आदरणीय अखण्ड गहमरी जी !

Comment by Shyam Narain Verma on December 20, 2014 at 5:03pm

इस सुन्दर ग़ज़ल पर दाद कबूलें

Comment by Meena Pathak on December 20, 2014 at 4:06pm

बहुत सुन्दर ..बधाई आपको आदरणीय अखण्ड जी 

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