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"माँ, तुम्हें एक खुशखबरी देनी थी। तुम नानी बनने वाली हो।"- बेटी ने अपनी माँ को बताया जिसकी पिछले महीने ही शादी हुई थी।
"बेटा, तुमने यह बात किसी को बताई तो नहीं है।"
"नहीं माँ, क्या हुआ?"
"बेटा, एक बार अल्ट्रासाउंड करवा लेती तो ठीक रहता। पता लग जाता घर का चिराग है या लड़की।"
"लेकिन माँ, यह तो पहला बच्चा है। ऐसी बातें क्यों सोच रही हो?"
"तुम्हारी भाभी भी यूँ ही माॅर्डन बातें किया करती थी। अब उसको दो लड़कियाँ हैं। बेटा, घर को चिराग देने वाली औरत का मान-सम्मान अपने आप ही बहुत बढ़ जाता है।"
"ठीक है माँ, बताओ मुझे अब क्या करना है?"
"तुम ये प्रेगनेंसी वाली बात किसी को भी मत बताना और जल्दी से एक बार घर आ जाओ।"- माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 3:50pm
// आपसे क्वांटिटी की जगह क्वालिटी की उम्मीद रहती है//
आदरणीय गणेश सर जी, मुझे आपकी टिप्पणी पाठक की नहीं बल्कि आदेशात्मक लगी थी। मेरी मनसा केवल लेखन तक ही सीमित है।
अगर मेरी कोई बात आपको गलत लगी हो तो क्षमा चाहता हूँ हो सकता है मुझसे समझने में कोई कमी रह गई हो। आशा है आपका सहयोग यूँ ही बना रहेगा। सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2014 at 2:17pm

//रही बात ज्यादा मात्रा में लघुकथा भेजने की तो आदरणीय सर जी अगर ऐसा कोई नियम है तो आगे से ध्यान रखा जाएगा।//

आदरणीय विनोद जी, प्रतीत होता है कि आपको मेरी टिप्पणी पुनः पढ़ने की आवश्यकता है, उक्त टिप्पणी एक पाठक की है, जिसमे क्वालिटी की उम्मीद की गयी है, यह आवश्यक नहीं की पाठक की उम्मीद लेखक पूरी ही करे, सादर ।

Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 2:08pm
रचना पर अपनी पारखी नजर डालने के लिए सभी आदरणीय सुधीजनों का दिल से आभार।
Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 1:55pm
आदरणीय गणेश जी, रचना को समय देने के लिए आपका आभारी हूँ। मेरी रचनाओं में जो भी कमी लगे कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। कमियों का पता लगने के बाद ही तो मैं सुधार कर पाऊँगा।
रही बात ज्यादा मात्रा में लघुकथा भेजने की तो आदरणीय सर जी अगर ऐसा कोई नियम है तो आगे से ध्यान रखा जाएगा। आपके सानिध्य में रहकर कुछ सीखने की आशा है।
Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:32am

 सुन्दर रचना ...बधाई आप को Vinod Khanagwal जी !

Comment by Meena Pathak on November 25, 2014 at 4:12pm

वाह री माँ की सीख ..................

आखिर कब तक चलेगा ये ...कब बदलेगी सोच 

चिराग तले अन्धेरा ...दुःख होता है सुन् कर ये सब ...............सार्थक लघुकथा हेतु बधाई आप को 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2014 at 11:47am

घर के चिराग की कामना अभी तक पढ़ी लिखी महिलाएं भी नहीं छोड़ पा रही | इस विडम्बना को दर्शाती सुंदर लघु कथा के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2014 at 10:50am

अधिकतर नारी ही नारी की जड़ें काटती हैं ऐसा बहुदा देख गया है जब तक नारी खुद नारी का सम्मान नहीं करेगी तो समाज को क्या मेसेज देगी ,,,कहानी का विषय बहुत अच्छा है .बहुत- बहुत बधाई .

Comment by Alok Mittal on November 25, 2014 at 8:05am

कब खत्म होगा ये कुरीतियाँ ....सुंदर कहानी आपकी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2014 at 9:35pm

आदरणीय विनोद जी, इस विषय पर बहुत बार आप भी पढ़ें होंगे और हम सब भी, सच कहूँ तो सपाट बयानी सी लगी यह प्रस्तुति, आपसे क्वांटिटी की जगह क्वालिटी की उम्मीद रहती है,  सादर ।

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