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ग़ज़ल बदला बदला सा घर नज़र आया।

2122 12 12 22

बदला बदला सा घर नज़र आया।
जब कभी मैं कही से घर आया।

बस तुझे देखती रही आँखें।
हर तरफ तू ही तू नज़र आया।

छोड़ कर कश्तियाँ किनारे पर।
बीच दरिया में डूब कर आया।

यूँ हज़ारो हैं ऐब तुझमे भी।
याद मुझको तेरा हुनर आया।

नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल"।
ख्वाब उसका ही रात भर आया।

मौलिक एवम अप्रकाशित
केतन "कमाल"

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Comment by Ketan Kamaal on November 25, 2014 at 11:40am

गणेश जी शुभ प्रभात

मात्रा पतन करने का मतलब मात्रा घटाना नहीं होता जैसे की मैं आपकी टिपणी में देख रहा हूँ।
मात्रा गिराने का मतलब ये है की उस जहाँ भी मात्रा गिराई गयी है वहाँ शायर अपनी लयकारी से कम ज़ोर देकर पढता है।

कुछ example आपके लिए नीचे दे रहा हूँ।

२ चुप १ के चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है।
२ हम १ को अब तक आशक़ी का वो ज़माना याद है।

बना १ है शाह १ का मुसाहिब फिरे १ है इतराता।
वगर १ ना शह्र में ग़ालिब १ की आबरू क्या है।

उपरोक्त अशआर में आप देख सकते है आ की मात्रा ई की मात्रा और ऐ की मात्रा को भी गिराया गया है।

मात्रा गिराना शायर की लयकारी पर है वो जहाँ ज़रुरत हो वहाँ मात्रा गिराकर पढ़ सकता हैं।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 25, 2014 at 9:24am

केतन जी आप दुरूस्त फरमाते हैं  और आपकी गजल भी दुरूस्त है। खूबशूरत गजल के लिये बधाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2014 at 11:09pm

प्रथम टिप्पणी देवनागरी नहीं होने से मैं कुछ समझ नहीं सका। मकता का मिसरा उला अलिफ वस्ल के हिसाब से वाजिब है। बदला में ला को एक मात्रा में बाँधना मुझे वाजिब नहीं लग रहा।

Comment by Ketan Kamaal on November 24, 2014 at 11:08pm
बाक़ी सब आदरणीय साथियों का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। गणेश जी और गिरिराज जी आपका भी शुक्रिया
Comment by Ketan Kamaal on November 24, 2014 at 11:06pm
Aur aese kai example men de sakta hun jisme ki matra ae ke matra bhi giraayi gai hai aik famouse ghazal hai

2 चुप 1 के चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है।
2 हम 1 को अब तक आशक़ी का वो ज़माना याद है।

2 दिल 1 के अरमाँ आसुंओं में बाह गए।
हम वफ़ा करके 1 भी तनहा रह गए।

वस्ल का example नीचे है

दिल ए नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आखिर इस दर्द की दवा क्या है।

ग़ालिब के इस खूबसूरत मतले में दूसरे मिसरे पर गौर फरमाये

आखिर इस = आखिरिस = 212
दर्द = 21 की दवा = 212 क्या हऐ = 22

वैसे ही

नींद गहरी हुई फिर आज कमाल
21 नींद 22 गहरी 12 हुई 12 फिरा 112 जकमाल
आखरी में इस बह्र की छूट का फायदा उठाते हुवे एक मात्र एक्सट्रा है जो गाते वक़्त लुप्त हो जाती है।

आशा है ये मेरी ग़ज़ल को बह्र में साबित करने के वास्ते बहुत है? गिरिराज जी आशा है आपकी शंका भी दूर हुई होगी।
Comment by Ketan Kamaal on November 24, 2014 at 10:46pm
Ganesh baghi sahab aapka bahut bahut shukriya aapne aPNA kimati waqt mujh naacheez ki ghazal par diya

Matra girane ka matlab ye nahin hai ki aap alfaaz se matra hi hata de. Ghazal men matra girane ke mani hai voice modulation aik example B

Wagarna Shehr Men Ghalib Ki Aabroo Kya Hai.
Upar diye misare men WAGARNA shabd ka NA Ghalib ne giraya hai aur jab is misare ko aap padhenge to WAGARN nahin hoga WAGARNA hi rahega magar NA par halka zor aayega jisase shabf ke maani bhi na badale aur Behr bhi aasaani se nibh jaaye. Aur ab maqte ka pahla Misara

२१NEEND २२GAHRI १२ HUI १२PHIRAA १J १२ KAMAAL

JAISE KI IS BEHR KA NIYAM HAI AIK MATRA KI CHHOOT TO POORI GHAZAL WAZN MEN DURUST HAI AAP PHIR SE GAUR KARIYE AUR HO SAKE TO VENUS SAHAB SE SALAAH KAR LEN AIK BAAR

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2014 at 10:25pm

आदरणीय कमाल भाई , ग़ज़ल खूबसूरत कही है , दिली बधाई स्वीकार करें । आ. बाग़ी जी का कहना सही है -

नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल" -- ये मिसरा बे बहर हो गया है , देख लीजियेगा ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2014 at 9:53pm

बदला बदला सा घर नज़र आया।
बदला 112 या 22 को आप 21 में कैसे बाँध सकते हैं, बदला और बदल दोनों अर्थ रखते हैं।

मकता का मिसरा उला बेबहर हो गया है।

शेष ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई प्रेषित है आदरणीय केतन कमाल जी।

Comment by Hari Prakash Dubey on November 24, 2014 at 8:54pm

नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल"। 
ख्वाब उसका ही रात भर आया।...बहुत खूब कमाल साहब ,बधाई 

Comment by somesh kumar on November 24, 2014 at 8:45pm

सुंदर गज़ल कमाल भाई 

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