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मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये

२१२     २११    २२१    १२२   २२ 

 

चांदनी रात में बरसात अगर हो जाये

मेरे ख्वाबों कि कोई बात अगर हो जाये

 

यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना

इक  हसीं  गुल से मुलाकात अगर हो जाये

 

काश! सहरा हो नजर जब भी बने दिल दुल्हा

यूं भी अरमानो कि बारात अगर हो जाये

 

आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की  

काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये

 

तन ये साँसों से तपे हौले से शब् भर मेरा

काश ऐसी भी कभी रात अगर हो जाये 

मौलिक व अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 24, 2014 at 5:12pm

आ० डॉ० आशुतोष जी 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है... अंतिम दोनों शेर में काश और अगर का एक साथ होना असहज लग रहा है 

सुमधुर कोमल भावों की इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारिये 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 24, 2014 at 11:38am

यार मेरे तू ज़माने से सदा ही बचना

इक  हसीं  गुल से मुलाकात अगर हो जाये

इस नेक सलाह के लिए शुक्रिया

Comment by vijay nikore on November 24, 2014 at 9:06am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2014 at 5:58am

आ. आशुतोष भाई , बढ़िया ग़ज़ल के लिये बधाई !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 23, 2014 at 5:12pm

//आये हर सिम्त से बस यार महक जूही की
काश धरती पे ये हालात अगर हो जाये//
काश और अगर दोनों एक साथ कुछ जम नहीं रहा,

अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्र जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 22, 2014 at 1:53pm

आशुतोष जी

अच्छी  गजल कही आपने i सुन्दर i सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 22, 2014 at 4:27am
सुन्दर एवं आकर्षक , बधाई आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी।
Comment by Shyam Narain Verma on November 21, 2014 at 4:03pm

" सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई   "

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