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ऐ चाँद !
पूजा तुझे वर्षों
हल्दी,कुमकुम,
अक्षत,रोली,पुष्प,
धूप दीप, नैवेद्य,
करती रही अर्पण
आस ये कि तू
अभिसिंचित करेगा
अपनी शीतल रश्मियों से
प्रेम की अनुभूतियों से
दूर कर देगा मेरे
प्रणय की प्रत्येक विसंगतियों से
पर यह क्या किया .....
सब कुछ बदल दिया !
तू उगलता रहा
अपनी चाँदनी में अदृश्य अंगारे
सुलगती रही जीवन की लहरें
झुलसा- झुलसा तन-मन  
अंतरमन का हाहाकार लिए
अब तू ही बता
तुझे कैसे पूजूँ अब .....
बता ना चाँद ??
बता दे !!

मीना पाठक 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 449

Comment

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Comment by Meena Pathak on October 25, 2014 at 10:07pm

बहुत बहुत आभार प्रिय राम

Comment by ram shiromani pathak on October 13, 2014 at 9:07pm
आह बहुत मार्मिक।।बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया
Comment by Meena Pathak on October 13, 2014 at 2:51pm

आदरणीय  जितेन्द्र जी ..बहुत बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on October 13, 2014 at 2:50pm

आदरणीय केवल जी , बहुत बहुत आभार स्वीकारें 

Comment by Meena Pathak on October 13, 2014 at 2:49pm

आभार आदरणीया सविता जी 

Comment by Meena Pathak on October 13, 2014 at 2:41pm

रचना आप के दिल तक पहुँची लिखना सफल हुआ | बहुत बहुत आभार आ० राजेश जी 

Comment by savitamishra on October 13, 2014 at 12:31pm

सुंदर रचना

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 12, 2014 at 11:37pm

सुंदर रचना किन्तु नकारात्मक भाव ? निशब्द हूँ आदरणीया मीना दीदी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 12, 2014 at 5:39pm

बहुत ही सुन्दर, सामयिक और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। आ0 मीना जी,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2014 at 7:03pm

आज के दिन चाँद के प्रति ऐसे नकारात्मक भाव ???दिल को झकझोर गई ये रचना . मीना जी |

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