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लघुकथा : बंद गली (गणेश जी बागी)

                  नंद वन अपने नाम के अनुसार ही आनंद पूर्ण वातावरण के लिए जाना जाता था, सभी जानवर शांति और भाईचारा से जीवन व्यतीत करते थे किन्तु अब यहाँ सब कुछ बदल गया था, कालू भेड़िया और दुर्जन भैस राजा की छत्र - छाया में आनंद वन में अत्याचार कर रहे थे, यहाँ तक की दिनदहाड़े ही बहु बेटियों को अपने अड्डे पर उठा ले जाते थे और विरोध करने वालों को जान से मार देते थे ।
                 भोलू हिरन की पत्नी को भी कालू और दुर्जन ने अपने गुंडों के साथ आकर सबके सामने उठा ले गए, भोलुआ कुछ न कर सका । शिकायत लेकर भोलुआ संतरी से लेकर मंत्री तक गया किन्तु कई दिन बीतने के बाद भी कोई सुनवाई न हो सकी ।
                "आनंद टाइम्स" में आज की हेड लाइन थी, "कालू और दुर्जन की हत्या, भोलुआ नक्सलियों में शामिल" 

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : बदलाव

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Comment by rajesh kumari on September 21, 2014 at 10:50am

प्रतीकात्मक बिम्बों के माध्यम से आपने समाज के एक घ्रणात्मक चेहरे का अनावरण किया है ,बहुत प्रभावशाली लघु कथा बनी है ,हार्दिक बधाई आपको आ० गणेश जी  

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 21, 2014 at 10:24am
न्याय का आभाव , न्याय में देरी और अन्याय अन्याय को ही बढ़ावा देता है . इन सिद्धांतों को पुष्ट करती कथा के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय इंजीo गणेश जी बागी जी .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 9:58am

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया छाया शुक्ला जी।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 9:53am

आदरणीय संतलाल करुण जी, लघुकथा पर आपकी मुक्तकंठ से सराहना उत्साहवर्धन करती है जिसके लिए मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूँ, किन्तु मैं यह नहीं मानता कि ओ बी ओ पर अधिकतर लघुकथाएँ लघुकथा विधा पर खारिज हैं, हाँ कुछ जरूर हो सकती हैं किन्तु अधिकतर नहीं।
पुनः आपकी सहृदयता हेतु आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 9:42am

उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 21, 2014 at 9:40am

सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

Comment by Neeraj Nishchal on September 21, 2014 at 12:58am
आदरणीय बागी जी इतनी बेहतरीन लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये ।
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 11:35pm

और क्या करता बेचारा भोलुआ ?  राजा मंत्री पुलिस शासन प्रशासन नेता सभी दुर्जन का साथ देते हैं, सज्जन न्याय के लिए भटकते रहता  है । या मर मर के जिये, या स्वयं बदला ले या किसी ऐसे गुट में शामिल होकर बदला ले जिससे पुलिस स्वयं डरती हो। भोलू ने तीसरा विकल्प चुना। इस देशमें  पुलिस के व्यवहार और अन्याय के कारण ही ज़्यादातर अपराधी और नक्सलवादी बने है। पहले डाकू बनते थे। 

आदरणीय गणेश भाईजी , भारत जैसे भ्रष्ट देश में आपकी यह कथा हमेशा प्रासंगिक रहेगी। 

हार्दिक बधाई । कथा का शीर्षक और भी मज़ेदार हो सकता था ... कथा के अनुरूप .... समरथ को नहीं दोष गोंसाई या ऐसा ही कुछ ।

आदरणीय .....  दुर्जन भैस ने राजा........ यहाँ  ने  की ज़रूरत नहीं ..... हटा दीजिए ।

सादर 

Comment by Chhaya Shukla on September 20, 2014 at 10:09pm

नक्सल वाद की समस्या को सलीके से रेखांकित करती सुंदर लघु कथा बधाई आपको आदरनीय सादर नमन ! 

Comment by Santlal Karun on September 20, 2014 at 10:09pm

आदरणीय बागी जी,ओबीओ पर अधिकतर लघुकथाएँ रचना न होकर समाचार-पत्र के एक-दो सूचनापरक अनुच्छेद-जैसी लगती हैं | पढ़ने के बाद कुछ ख़ास हाथ नहीं लगता | इसलिए लघु कथाओं को पढ़ने के लिए मन लहरता नहीं | किन्तु  'बंद गली' ने हमें अपनी रचनात्मकता के साथ आकृष्ट किया है | यह कथा हौले से की गई सपाट बयानी से पूरी तरह मुक्त, रुचिपूर्वक पठनीय तथा सन्देशपरक है | मानवीय पशुता को पशुओं के कथानक के माध्यम से  आप ने रूपक और प्रतीकात्मकता के साथ लघुकथा को अत्यंत प्रभावी ढंग से कहा है | ...हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ | 

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