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" कितने गंदे लोग हैं , छी , सब तरफ गन्दगी ही गन्दगी , उधर किनारे चलते हैं " कहते हुए लड़का बड़े प्यार से हाथ पकड़ कर उसे किनारे ले गया और आँखों में आँखें डाल कर खो गए दोनों |

" साहब मूंगफली ले लो , टाइम पास " |

" ठीक है , दे दो " , और फटाफट पैसे देकर रुखसत किया उसको |

पता ही नहीं चला , कब मूंगफली ख़त्म हो गयी और अँधेरा हो गया | दोनों उठ कर चलने लगे |

लेकिन जैसे ही लड़की ने झुक कर छिलके उठाये , लड़के का हाथ अपने गाल पर चला गया |  

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on August 22, 2014 at 9:40pm

आभार डॉ आशुतोष मिश्राजी..

Comment by विनय कुमार on August 22, 2014 at 9:39pm

आभार गिरिराज भण्डारीजी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 22, 2014 at 7:04pm

अच्छी सीख देती सार्थक लघु कथा ...बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 22, 2014 at 3:55pm

गंदगी फैलाने वालो को कोसते हुए सब साफसुथरी जगह की तलाश में रहते है, मगर स्वयं ही गंदगी फैलाते समय अपने अंतस को नहीं टटोलते | ऐसे में लड़की का छिलके उठाने पर आपनी गलती का अहसास हुआ जो किसी तमाचे का कम नहीं | यही बात 

इस लघु कथा का सार्थक सन्देश भी है | बहुत बहुत बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 3:36pm

अच्छी-भली जगह को अक्सर लोग ऐसे ही गन्दा करते हैं.  अच्छे विन्दु को उठाया है आपने.

प्रस्तुति हेतु बधाई

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 2:38pm

आदरणीय विनय  जी इस सुंदर संदेशप्रद लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई सादर ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 21, 2014 at 10:05pm

अच्छी लघुकथा , आदरणीय बधाई इस रचना के लिए |

Comment by विनय कुमार on August 21, 2014 at 8:44pm

आभार आपका जवाहरलाल जी , जो आपने समय दिया कहानी पर | दरअसल लड़का कुछ ही देर पहले गन्दगी के लिए सबको कोस रहा था और खुद मूंगफली के छिलके वहीँ फैलाकर ( गन्दगी करके  ) चलने लगता है | लेकिन लड़की को गन्दगी फैलाना उचित नहीं लगता और वो झुककर छिलके उठा लेती है ताकी कहीं डस्टबिन में डाल सके | इसी को प्रतीक रूप में मैंने लिखा है कि लड़के को अपनी हरक़त पर लड़की का तमाचा लगता महसूस हुआ | 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 21, 2014 at 8:33pm

लेकिन जैसे ही लड़की ने झुक कर छिलके उठाये , लड़के का हाथ अपने गाल पर चला गया |  - मुझे समझ में नहीं आया, कृपया समझाने का प्रयास करेंगे? आदरणीय श्री विजय कुमार सिंह जी!

Comment by विनय कुमार on August 21, 2014 at 1:47am

आभार सविता मिश्राजी..

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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