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मन में सद्विचार रहे, नेक करे वह काम,

फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करे निष्काम

कर्म करे निष्काम,  भाव संतोषी पाते

काम क्रोध मद लोभ स्वार्थ के रंग दिखाते

कर लक्षमण सद्कर्म नम्रता रहे वचन में

गीता में सन्देश, रहे निश्छलता मन में ||

(2)

करे प्रशंसा स्वयं की, और स्वयं से प्रीत,

आत्म मुग्ध के आग्रही, ये दर्पण के मीत

ये दर्पण के मीत,  संग चमचों के रहते

अपने को सर्वोच्च अन्य को तुच्छ समझते

कह लक्ष्मण कविराज इन्हें भाती अनुशंसा

इनको होता हर्ष, तभी जब करे प्रशंसा ||

(मौलिक व अप्रकाशित) 

 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 22, 2014 at 3:37pm

संशोधन की पुष्टि करने के लिए आभार आदरणीय |

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 3:32pm

सादर धन्यवाद आदरणीय

बहुत सही संशोधन किया है आपने. ..

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 22, 2014 at 3:27pm

छंद सार्थक बता उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार श्री सौरभ भाई जी | 

आपकी टिपण्णी की मै इसीलिए प्रतीक्षा करता हूँ कि छंद का सही परिक्षण से लाभान्वित हो सकूँ |

आपकी नजरों से छंद का दोष ओझल नहीं हो सकता |

प्रथम व तृतीय चरण का अंत यगण,जगण से नहीं हो सकता | 

करे प्रशंसा स्वयं की, और स्वयं से प्रीत, की जगह --- स्वयं प्रशंसा कर रहे, और स्वयं से प्रीत  क्या ठीक लगता है आदरणीय ?

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 22, 2014 at 3:09pm

हार्दिक आभार स्वीकारे आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 22, 2014 at 3:08pm

छंद के कथ्य और भाव पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री विजय मिश्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 1:09am

सार्थक और सटीक !  बहुत खूब !  दोनों कुण्डलिया मन भायीं.

बस एक प्रश्न, आदरणीय  ... स्वयं की क्या यगण नहीं बनाता ? तो क्या यगण से दोहे वाले भाग के विषम चरण का अंत हो सकता है ?

Comment by vijay nikore on August 21, 2014 at 2:53pm

अति सुन्दर। बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by विजय मिश्र on August 21, 2014 at 11:33am
दर्शन और यथार्थ का सुंदर ताल-मेल है इन सुंदर छंदों में |बधाई लक्ष्मण भाई |
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 20, 2014 at 10:25am

छंद सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिराज भंडारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 20, 2014 at 9:48am

कुण्डलिया छंद पसब्द करने के लिए शुक्रिया श्री लक्ष्मण धामी जी एवं श्री जवाहर लाल सिंह जी 

आप मेरी कुण्डलिया पढ़ते रहे है, यह जानकार ख़ुशी हुई श्री जवाहर लाल सिंह जी 

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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