For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दादी, हामिद और ईद (लघुकथा) // --सौरभ

हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !

इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !

 

ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.
".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं पड़ेगा.. जब हामिद वापस चला जायेगा, अपनी बहुरिया के साथ, अपने बेटे के साथ.. "
************************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 2653

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2014 at 9:49am

अमीना के लिए ईद पर लाया हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है -- और वास्तव में ये पंक्तिया ही इस सुन्दर कहानी

जान भी है, जिसमें गहरे स्नेह भाव साझा हो रहे है | ये सुन्दर लघु कथा ईद के तोंफे की तरह कबूल है आदरणीय श्री सौरभ भाई जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2014 at 6:02pm

आदरणीय सौरभ जी 

किस-किस दौर से गुजरा होगा नन्हा हामिद... 

कैसे टूटे होंगे उसके ख्वाब जब नहीं लौटे होंगे अब्बा रूपयों भरी थैलियों के साथ..ना ही अम्मी अल्लाह मियाँ के घर से सौगातें ले आई होंगी कभी.... क्या वक्त की कठोरता नें संवेदनहीन नहीं कर दिया होगा उसे हर गुज़रते पल के साथ..

क्या वही त्याग भावनाएं और प्यार फूड-प्रोसेसर लेते हुए भी रहा होगा उसके मन में...

क्या यही चाहिए इस अवस्था में दादी अमीना को...एक संवेदना शून्य फ़ूड प्रोसेसर , तिस पर बहुरिया भी अब हामिद के साथ चली जायेगी

आपकी प्रस्तुत लघुकथा ऐसे ही बहुत से प्रश्न मन में उठाती है..फिर उनके ज़वाब भी खुद ब खुद देती जाती है.... जैसे मुंशी प्रेमचंद की ईदगाह के हामिद और आपकी इस लघुकथा में अब बड़े हो चुके हामिद नें पाठकों के मन में बीच के काल खंड को भी कल्पनाओं के पटल में सजीव कर दिया और चलचित्र सा तैर गया...

सोच को तंतुओं को दो दृश्यों की सापेक्षता में स्पंदित करती इस सफल सशक्त लघुकथा के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई

सादर.

Comment by Satyanarayan Singh on July 31, 2014 at 4:42pm
परम आदरणीय सौरभ जी सादर,
प्रसिद्ध कहानी ईदगाह आर्थिक विपन्नता के साथ साथ जीवन के आधारभूत यथार्थ के माध्यम से पाठकों के दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ती है उसी कथा पर पर आधारित आपकी यह लघुकथा आज के आर्थिक सम्पन्न समाज के सन्दर्भ में जीवन के आधारभूत यथार्थ को रेखांकित करती है जिसकी दूसरी विशेषता यह है कि कई बार पढ़ने पर हर बार उसमे सार्थकता नजर आती है.
आदरणीय, बहुत ही सुन्दर, रोचक एवं सार्थक सन्देश सम्प्रेषित करती इस लघुकथा के प्रस्तुति हेतु सादर बधाई स्वीकार करें. सादर
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on July 31, 2014 at 4:06pm

आदरणीय सौरभ भाईजी,

बूढ़ी दादी के लिए न दिल में जगह है न विदेश के उस घर में। आजकल तो शिक्षा भी यही मिलती है चालाक बनो !!! अंदर कुछ और रहे पर बाहर से कुछ और दिखो। यही अंतर है उस बालक हामिद में और शादी शुदा एवं बच्चों के पिता इस हामिद में। भोली भाली दादी को हामिद के दोनों रूप से प्यार है। पर सच यह भी है कि चिमटे वाला हामिद दादी के दिल में बस गया है, हमेशा साथ रहता है, और उसकी याद आज भी जीने का सहारा है।

आ. सौरभ भाई, आज उस भोले भाले सरल हृदय कालजयी रचनाओं के रचनाकार, कलम के सिपाही का जन्म दिन है। प्रेमचंदजी करोड़ों भारतीय पाठकों के दिल में आज भी उसी तरह विद्यमान हैं जिस तरह दादी के दिल में चिमटेवाला पोता।

इस लघु कथा पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

 

Comment by नादिर ख़ान on July 30, 2014 at 11:22pm

क्या चित्र खींचा है आदरणीय सौरभ सर आँखें नम हो गईं , आज कल ऐसी स्थिति घर घर मे आम है। टूटते समाज और सिमटते परिवार में बुजुर्गों को ईश्वर भरोसे छोड़ दिया जाता है। (बाकी औपचारिकताएं निभाई जाती है महीने दो महीने मे फोन .......... साल दो साल मे घर की सैर   .................)

Comment by savitamishra on July 30, 2014 at 3:08pm

बहुत बढ़िया कहानी ..आदरणीय भैया ._/\_


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 2:31pm

आदरणीय गोपालनारायनजी, आपकी बातों से पूर्ण सहमति है कि कथा के पात्र अमीना द्वारा यथास्थिति स्वीकार कर लिया जाना इस कथा का अहम विन्दु है. आपने जिस ढंग से इस सामाजिक महीनी को रेखांकित किया है वह आप जैसे पारखी पाठकों के बूते की बात है.
आपके अनुमोदन का मैं आभारी हूँ.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 2:27pm

आदरणीय हरि भाईजी, आपके उदार अनुमोदन का सादर आभारी हूँ. सहयोग बना रहे..
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 2:24pm

आदरणीया कुन्तीजी, आपने मेरी प्रस्तुति पर समय दिया, मुझे भी एक रचनाकार के तौर पर अपार संतोष हुआ है. आपके मुखर हेतु मैं आभारी हूँ.
सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 2:17pm

रवि भाई, लघुकथाओं पर आपकी पकड़ से वाकिफ़ हूँ. आपकी कथाओं के विन्यास पर एक पाठक के तौर पर जहाँ चकित होता रहा हूँ, वहीं साहित्य के विद्यार्थी के तौर पर मैंने कई विन्दु ग्रहण भी किये हैं.
इतने विलम्ब से इस विधा पर हाथ आजमाने को लेकर मैं यह तो नहीं कहूँगा कि इस विधा के आवश्यक विन्दुओं को ’सीख-समझ’ लेने के बाद मैं रचनाकर्म कर रहा हूँ. लेकिन यह अवश्य है कि यह मेरी पहली लघुकथा होने से कथ्य-संप्रेषण के प्रति सचेत अवश्य था. आपके उदार और मुखर अनुमोदन ने मुझे उत्साहित किया है, इसमे कोई शक नहीं.
अनुज, मुंशीजी मेरी इस प्रस्तुति पर क्या सोचते यह तो व्याकरण के ’हेतु-हेतु मदभूत’, यानि, ऐसा हुआ तो ये होता, का विषय है. लेकिन मुंशीजी के गंभीर पाठकों का मिलता अनुमोदन आह्लादित कर रहा है.
हार्दिक धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
45 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
46 minutes ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
46 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
46 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
47 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
57 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service