For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अदावत भी हमी से, हमदमी भी ( गिरिराज भन्डारी )

1222     1222      122  ---  

कभी महसूस कर मेरी कमी भी

तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी

 

नदी की धार सी पीड़ा बही, पर

किनारों के दिलों में क्या जमी भी ?

 

खुशी तो है उजालों की, मगर क्यों

कहीं बाक़ी दिखी है बरहमी* भी     ( खिन्नता )

 

उड़ाने आसमानी भी रखो पर

तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी

 

ये रिश्ता किस तरह का है बताओ ?

अदावत* भी हमी से, हमदमी भी       ( दुश्मनी )

 

उफ़क पे देख लाली है खुशी पर

हवायें लग रहीं हैं कुछ थमी भी  

 

मुझे अफ़सोस है सारे इरादे 

अभी कमज़ोर हैं, कुछ मौसमी भी

******************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 24, 2014 at 9:12am

आदरणीय सौरभ भाई , आपने सही कहा है , ज़मीं काफिया इस ग़ज़ल के हिसाब से गलत ही है ॥ आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 24, 2014 at 9:09am

आदरणीय राम अवध भाई , बहुत बड़ी ग़लती की तरफ धयान दिलाने के लिये आपका दिल से आभारी हूँ , अन्यथा ले ने का तो कोई सवाल ही पैदा नही होता , यही तो सीखना- सिखाना है । आपका बार बार आभारी हूँ । निः संकोच आगे भी मेरी ग़लतियाँ बतायें ॥

वैसे तो इस शे र को ग़ज़ल से निकलाना ही पड़ेगा फिर भी पहले सुधारने की कोशिश करूँगा ।

ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2014 at 11:24pm

आदरणीय राम अवध विश्वकर्माजी का ज़मीं को लेकर अपनी बातें कहना एकदम सही है. यह आश्चर्य ही है कि इस ओर विद्वान ग़ज़लकार और पाठकों का ध्यान नहीं गया.

सादर

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on July 23, 2014 at 9:46pm

उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई परंतु आदरणीय गिरराज जी निम्न शेर में जो शब्द जमी का इस्तेमाल काफिया के लिए किया गया गया है वह
मेरी जानकारी के अनुसार ज़मीन का लघु रूप ज़मीं होता है न की जमी मै तो उर्दू नही जानता ये तो उर्दू भाषा के जानकार ही बता सकते हैं की काफिया जमी होगा या ज़मीं अगर ज़मीं है तो शेर को दुरुस्त करना होगा और अगर जमी है तो मुझे गुस्ताख़ी के लिए माफ़ करना. कृपया अन्यथा न लेना
उड़ानें आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो जमी भी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 23, 2014 at 1:32pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2014 at 10:54am

कभी महसूस कर मेरी कमी भी
तेरी आँखों में हो थोड़ी नमी भी ..... बहुत ही दमदार मतला
उड़ाने आसमानी भी रखो पर
तुम्हे महसूस होती हो ज़मी भी ...... क्या कहने अच्छी सीख देता शेर
ये रिश्ता किस तरह का है बताओ घ्
अदावत’ भी हमी सेए हमदमी भी       ..... बहुत ही मार्मिक शेर
मुझे अफ़सोस है सारे इरादे
अभी कमज़ोर हैंए कुछ मौसमी भी .......यह भी कम नहीं

आ0 भाई गिरिराज जी , सीधे सरल शब्दों में कही गयी इस बेहतरीन गजल के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई  ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2014 at 8:42pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपने गज़ल पसंद की तो मानो मेरी  कोशिश सफल हो गई , उत्साहवर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2014 at 8:40pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 22, 2014 at 8:38pm

आदरणीय जी एस मिश्रा भाई , गज़ल पर आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 22, 2014 at 3:01pm

जानदार मतला से शुरू हुई ग़ज़ल मानो बहती हुई चली जाती है. वाह-वाह !

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service