For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं

2122   1222  2122   22/112

दिल से ज्यादा हमें करता कोई मजबूर नहीं

रोज कहता कि घर है उनका बहुत दूर नहीं

 

मैकदे की चुनी खुद मैंने डगर है साकी

रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं

 

आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी

रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं

 

गर जो होती नहीं मजबूरी वो आती मिलने

प्यार मेरा कभी हो सकता है मगरूर नहीं

 

रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया  है

आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं

 

यार  माना कि पी सागर से  है मैंने छककर

बेटी अंगूर की पी यूं तू  मुझे घूर नहीं  

 

  

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 790

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:04pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..आपका स्नेह मुझे हमेश ही मिला है ..आपके परामर्श की तरफ ध्यान दूंगा ..मुझे भी ठीक से ध्यान नहीं है ..२२/११२ की छूट किसी ग़ज़ल में होती है फिर से देखूँगा ..बस आपका स्नेह यूं हे मिलता रहे सादर प्रणाम के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:02pm

आदरणीय नीरज जी ..मेरी रचना को प्रोत्साहन देने के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 1:00pm

अरुण जी ..बस यूं ही स्नेह बनाये रखें ..स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल धनयवाद ..सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 12:45pm
आदरणीय जीतेन्द्र जी ..आपके शब्द हमेशा ही मुझे हौसला देते हैं.बस यूं ही स्नेह बनाए रखें
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2014 at 12:43pm
आदरणीया मीना जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 14, 2014 at 10:36am

आदरनीय आशुतोष भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ !! इस बह्र मे 22 को 112 करने की छूट है या नही,  मुझे शंका है ।

Comment by Neeraj Neer on May 12, 2014 at 10:18pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल.. 

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 2:48pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय आशुतोष जी बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 9:00am

रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया  है

आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं.........वाह! लाजवाब शेर

बहुत बेहतरीन गजल कही आपने आदरणीय डा.आशुतोष जी, हार्दिक बधाई आपको

 

Comment by Meena Pathak on May 11, 2014 at 2:23pm

क्या बात है ... लाजवाब ... ढेरों दाद कबूलें आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
6 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service