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ओबीओ लाइव महा इवेंट/ महोत्सव अंक-42 की समस्त रचनाएं एक साथ

आदरणीय सुधीजनो,


दिनांक -13 अप्रैल'14 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-42 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए ‘कहमुकरी’ विधा को चुना गया था.

 

महोत्सव में 27 रचनाकारों नें अपनी 211 कहमुकरियों की प्रस्तुति द्वारा महोत्सव को सफल बनाया, साथ ही प्रतिक्रया छंदों में सुधि पाठकवृन्दों नें अपनी 106 कह-मुकरियों द्वारा रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया. दो दिन के लाइव महोत्सव में 326 कह-मुकरियों की प्रस्तुति अपने आप में एक बहुत बड़ा रिकोर्ड है. इस सफलतम आयोजन के लिए मैं ओपन बुक्स ऑनलाइन के प्रधान सम्पादक महोदय आदरणीय योगराज प्रभाकर जी को, मुख्य प्रबंधक महोदय आदरणीय गणेश जी ‘बागी’ को और समस्त सदस्यगणों को हार्दिक बधाई देती हूँ.

 

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करें.


सादर
डॉ. प्राची सिंह
संचालिका 
ओबीओ लाइव महा-उत्सव

 

 

 

 

रचनाकार

स्वीकृत रचनाएं

रचनाओं पर प्रतिक्रियात्मक छंद

1.

आ० योगराज प्रभाकर जी

पहली प्रस्तुति

 

गोरी सूरत भोला भाला 
हरसू महक लुटाने वाला 
सारी दुनिया इसकी कायल 
ऐ सखि साजन ? न सखी चावल 

बेशक इसके हाथ भी जोडूँ 
पर ये बोले कभी न छोड़ूँ 
बदनामी की आई नौबत  
ऐ सखि साजन ? न सखी आदत  

बुरी नज़र से करे हिफ़ाज़त  
दामन इसका दिल की राहत 
दिलफ़ेंकों को लगता दुश्मन
ऐ सखि साजन ? न सखी चिलमन 

सुबह सवेरे मिलने जाऊँ 
देख उसे सुधबुध बिसराऊँ 
याद रहे ना चूनर घूँघट 
ऐ सखि साजन ? न सखी पनघट  

 

मीठी बातों से बहला दे  
आशाओं के दीप जला दे
मोहक सपनो का विक्रेता 
ऐ सखि साजन ? न सखी नेता

 

दूसरी प्रस्तुति

 

बहुत प्यार से गले लगाये
बेगानों को भी अपनाये
सुंदर सूरत सुंदर सीरत 
ऐ सखि साजन ? न सखी भारत

अंबर बौना उसके आगे
सागर उथला उसको लागे
रहबर, शाकिर, साबिर, दिलबर  
ऐ सखि साजन ? न सखी शायर  

हरदम रहता सीना ताने
हर कठिनाई सहना जाने
चौकन्ना दिल से मनमौजी
ऐ सखि साजन? न सखी फ़ौजी

लिपट लिपट पाँवों को चूमे
छूने भर से तनमन झूमे
चंचल चपल निरंकुश पागल 
ऐ सखि साजन ? न सखी पायल

उसके दम से साँझ सवेरा
मेरे दिल में उसका डेरा
जीवन भर का है ये बंधन 
ऐ सखि साजन ? न सखी धड़कन

 

तीसरी प्रस्तुति

दुनिया उसके पीछे भागे 
मुझे मिले तो किस्मत जागे 
दुनियां को बतलाऊँ धत्ता 
ऐ सखि साजन ? न सखी सत्ता

ऊँचा लम्बा, बे नखरा है  
नस नस में मकरंद भरा है 
सीधा सादा रहता बन्ना  
ऐ सखि साजन ? न सखी गन्ना

शूरवीर ताकत लासानी 
पूरी करता मन की ठानी  
अनहोनी को करदे होनी  
ऐ सखि साजन ? न सखी धोनी 

सीने में बारूद छुपाये 
धधके जब कोई भड़काये 
लेवे फिर ना शोले वापिस 
ऐ सखि साजन ? न सखी माचिस 

छेड़छाड़ करने की आदत   
बरजोरी की करता जुरअत   
हाथ जोड़ भी नहीं पसीजा 
ऐ सखि  साजन ? न सखी जीजा 

 

चौथी प्रस्तुति

 

ऐसे रूठा फिर ना आया 
हाथ जोड़कर लाख मनाया 
बीता जाए मेरा यौवन     
ऐ सखि साजन ? न सखी बचपन 

जब छू ले सिहरन सी आये 
पर वो निर्मोही मुस्काये 
क्या जानूँ क्या उसकी मर्ज़ी
ऐ सखि साजन ? न सखी दर्ज़ी

उसको पाना सबकी चाहत 
वो तो मानो रब की नेमत 
जहाँ विराजे खोले किस्मत  
ऐ सखि साजन ? न सखी बरकत 

चाल बहुत दिलकश मतवाली 
भीमकाय अतुलित बलशाली 
लगता है परबत का साथी  
ऐ सखि साजन ? न सखी हाथी   

रात रात भर मुझे सताए
काट चिकोटी मुझे उठाए
छेड़े मुझको वो जी भरकर 
ऐ सखि साजन ? न सखी मच्छर

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सबके हित का है अभिलाषी

दिल से देता हैं शाबाशी
हरसू बांटे प्रेम हमेशा 
ऐ सखी साजन ? नहि अखिलेशा  

योगराज प्रभाकर

 आदत’ ’चावल’ खा पाने की 
’चिलमन’, ’पनघट’ जी जाने की 
बोल बचन ’नेता’ के काज 
ए सखी साजन ? ना योगराज 

सौरभ पाण्डेय

सागर की गहराई नापे 
अंबर की ऊंचाई मापे  
ऐसी प्रतिभा सच में दुर्लभ   
ऐ सखि साजन ? न सखी सौरभ

योगराज प्रभाकर

क्या गहराई, क्या ऊँचाई 
छलनी-छलनी प्रीत पराई 
मन का रूखा, बिन बादल नभ 
का वो साजन ? ना सखी सौरभ

सौरभ पाण्डेय

चावल बिन न खाना खावे 

पीने को पनघट पर जावे 

नेता करता न कोई काज

क्या सखी साजन ? न सखी योगराज

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

शुभ वचनो की करता वर्षा 
तारीफों से तन मन हर्षा 
आशीषों से भरता दामन  
ऐ सखि साजन ? न सखी लछमन

योगराज प्रभाकर

उसकी छाया प्रभु की माया 
सबके सर पर उसका साया  
हाथ मेरे भी आता काश !
ऐ सखि साजन ? नही आकाश

योगराज प्रभाकर

हम पर प्यार लुटाने वाला,

आते ही छा जाने वाला,

जाने सब पनघट के राज,

क्या सखी साजन ? न योगराज

अशोक कुमार रक्ताले

सोच गगन पर पाँव ज़मीं पर  
हिम्मत देने को हैं तत्पर 
अंधेरों में भरें उजाले 
ऐ सखी साजन ? नहि रकताले

योगराज प्रभाकर

मन के भावों को पढ़ जाये

यहाँ चले खुशियाँ बिखराये 

जाने सबके दिलों के राज 

क्या सखी साजन ?ना योगराज 

सरिता भाटिया

चाल गज़ब की है मतवाली 
जित पहुंचे उत उत हरियाली  
उसका गहना उसकी शुचिता  
ऐ सखी साजन ? न सखी सरिता  

योगराज प्रभाकर

हर महफिल में भरे उजाले 

छलकाए नव-रस के प्याले 

देना जाने बस हर्षा कर

क्या सखि साजन? नहिं प्रभाकर

डॉ० प्राची सिंह

सूरत सीरत का है संगम 
गुणग्राहकता अदभुत अनुपम   
बातें सीधी लेकिन साची 
ऐ सखी साजन ? न सखी प्राची

योगराज प्रभाकर

सारा गुलशन खिल खिल जाए 
प्रेम सुधा हरसू बरसाए 
स्नेह लुटाए दिल से दानी 
ऐ सखी साजन ? नहि रामानी

योगराज प्रभाकर

कह मुकरी जिसके मन भाये,

वह सबको मुकरी सिखलायें,

सबके मन वहबसता आज,

ऐ सखि साजन ?ना योगराज !

सत्यनारायण सिंह

उसका नाम लबों पर मेरे 
दूर करे जो सब अँधेरे 
जिसको पूजें है तारागण 
ऐ सखि साजन ? नहि नारायण

योगराज प्रभाकर

जो भी बोले सच ही बोले 
पीछे बोले पहले तोले 
तृप्त भये सब साधु संता 
ऐ सखी साजन ? नहि अनंता

योगराज प्रभाकर

वाह वाह कहकर मान बढ़ावे  
हाथ पकड़ कर राह दिखावे   
ह्रदय के मिटते सभी क्लेश 
ऐ सखि साजन ? नही राजेश

योगराज प्रभाकर

अपनी ही धुन मे सदा मगन  

रौशन जो कर दे धरा गगन 

रोज सुबह ही आए नहाकर 

क्या सखि साजन ? न सखि प्रभाकर 

अन्नपूर्णा बाजपेयी

बेशक अहमक निरा अनाड़ी  
उसके सर पर घर की गाड़ी   
इंजन बनकर खींचे बोगी 
ऐ सखि साजन ? न सखी योगी

योगराज प्रभाकर

कमी बेशियाँ खोल दिखाए
सही दिशा में लेकर जाए  
हर साधक से ऊंचा साधक 
ऐ सखि साजन ? न सखी पाठक

योगराज प्रभाकर

सभी विधा में हैं वो ज्ञानी 

खूब सुहाती उनकी वानी

किया महोत्सव का आगाज़ 

ऐ सखि साजन ? न सखी योगराज़

नादिर खान

मन में इतना अपनापन है
स्नेह देख भर जाता मन है 
उसके आगे झुकता है सिर 
ऐ सखि साजन ? न सखी नादिर   

योगराज प्रभाकर

स्वयं तलाशे मोती लाये।

जो सब रसिकों के मन भाए।

छंदों  के हैं वो सरताज,

क्या सखी साजन? न्न, योगराज॥ 

संजय मिश्रा ‘हबीब’ 

जब अपने परिधान उतारे 

शीश नवाते जन-गण सारे 

तन को लागे,तन से उज्ज्वल

क्या सखि साजन ? ना सखि चाँवल

अरुण निगम  

बुरी-भली पहचान बनाए 

संग न छोड़े लाख छुडाये

कभी-कभी तो ला दे सहमत 

क्या सखि साजन ? ना सखि आदत 

अरुण निगम  

बढ़ा-बढ़ा देता जिज्ञासा 

कभी बढ़ाता प्रेम-पिपासा 

रक्षक है पर लगता दुश्मन 

क्या सखि साजन ? ना सखि चिलमन 

अरुण निगम  

रंगीले जित गायें गाना 

बूढ़े भी उत मारें ताना 

देता तरह-तरह की झंझट 

क्या सखि साजन ? ना सखि पनघट  

अरुण निगम  

राज, योग का उसने जाना 

राज-योग  उसको ही पाना

करे महोत्सव का आगाज

क्या सखि साजन, ना योगराज  

अरुण निगम  

स्नेह लुटाए झोली भर भर 
खुलकर सब को देता आदर 
पूरी भीड़ में दिखे विशेष 
ऐ सखि साजन ? नही अखिलेश

योगराज प्रभाकर

सूझवान ऐसा नहि देखा 
पढ़ लेता माथे की रेखा 
सोच बुलंदी ज्यों ऊंचा नभ 
ऐ सखि साजन ? न सखी सौरभ

योगराज प्रभाकर

लानत भरता हर इस उस पर 
झींके  जो  झल्लाये  अक्सर 
कुछ भी अच्छा कह दे, दुर्लभ ! 
का सखी साजन ? ना सखी सौरभ 

सौरभ पाण्डेय

यूँ वशिष्ठ सा अच्छा खासा 
क्रोधित हो बनता दुरवासा     
कर देता दुनिया को हतप्रभ  
ऐ सखि साजन ? न सखी सौरभ

योगराज प्रभाकर

एक नदी तो दूजा परबत।

स्वस्थ्य हवा अरु मीठी शर्बत।

सेवन कर तर जाए रोगी,

और नहीं कुछ सौरभ-योगी॥

संजय मिश्रा’हबीब’

सबको दिल से अपना माने
स्नेह लुटाए खोल खज़ाने  
अंधेरों में करे उजाला 
ऐ सखि साजन ? न लड़ीवाला

योगराज प्रभाकर

"क्या कहने हैं" दिल ये बोला 
खुशियां दे दीं भरकर झोला 
रूह से पावन और पुनीत  
ऐ सखि साजन ? न सखी अजीत

योगराज प्रभाकर

कदम कदम पर साथ निभाता,

कभी-कभी तो माँ बन जाता,

शीश सदा शीतलता धारत,

क्या सखि साजन? ना सखि भारत || 

अशोक कुमार रक्ताले

वाह कहे तो आह करे दिल
खिलखिल जाए सारी महफ़िल  
हरसू बहने लगती कविता 
ऐ सखि साजन ? न सखी सरिता  

योगराज प्रभाकर

रंग भरे अपने शब्दों से

प्राण भरे निर्झर भावों से

मूर्त रूप में रख दे आखर

क्या सखि साजन? नहिं प्रभाकर

डॉ० प्राची सिंह

विषय अनोखे लाये  चुनकर 

शब्द जड़े उसमे गिन- गिन कर 

कैसा अद्भुत करे आगाज़ 

क्या सखी साजन ?ना योगराज |

राजेश कुमारी

अक्सर कहने से घबराये 
अपने मन के भाव छुपाये 
कहे अगर तो जड़े नगीना 
ऐ सखि साजन ? न सखी मीना 

योगराज प्रभाकर

कहना कुछ भी ठहरा मुश्किल।

मौन देखता बैठा है दिल।

राग मधुर देता ज्यों साज,

क्या सखी साजन? न्न, योगराज॥

संजय मिश्रा’हबीब’

पायल ,फौजी ,शायर ,भारत ,
ओ बी ओ की है जो धड़कन ,
मुकरियों की बहाई गंगा ,
ए सखी साजन ?नहीं प्रभाकर।

चौथमल जैन

कोई उसके जीजी-जीजा,

मामा-मामी कहीं भतीजा,

मुझको अपनी बहु बताता,

क्या सखि ससुरा ? ना सखि नेता ||

अशोक कुमार रक्ताले

जोश भरा मदमस्त खिलाड़ी

डरते उससे सभी अनाड़ी

कर्म-सधे करता मुस्काकर

क्या सखि साजन? नहिं प्रभाकर

डॉ० प्राची सिंह

कह मुकरी वह हमें सुनाए,  

देश प्रेम मन भाव जगाए,

छलकाएं वह रस की गागर,

ऐ सखि साजन ? नहीं प्रभाकर !

सत्यनारायण सिंह

जब जब अपनी लय मे आवे 

मुख पर  वो  मुस्कान ले आवे 

रोज ही  नए कमाल दिखाकर 

क्या सखि साजन ? न सखि प्रभाकर

अन्नपूर्णा बाजपेयी

कोशिश करके कुछ तो लिक्खूँ।

उन्हें देख कर मैं भी सीखूँ।

सहज बता दे सारे राज,

क्या सखी साजन? न्न, योगराज॥

संजय मिश्रा ‘हबीब’

कहमुकरी का अद्भुत ज्ञाता
कहमुकरी से अजब है नाता
कहमुकरी का सोम - दिवाकर
ऐ सखी साजन ? ना, प्रभाकर

सतीश मापतपुरी

चौथेपन भी बाज न आये,

रात रजाई में दुबकाए,

अबके तो बस हद ही कर दी,

ए सखि साजन ? ना सखि सर्दी ||

अशोक कुमार रक्ताले

एक बार जो दिल में ठानें

हर हालत में करके मानें 

जीतें हर शय लक्ष्य उठाकर

क्या सखि साजन? नहिं प्रभाकर 

डॉ ० प्राची सिंह  

रुक रुक कर वह गीत सुनाये। 

मन को मेरे वह गुदगुदाए।

दरिया सा बहता है आज,

क्या सखी साजन? न्न, योगराज॥

संजय मिश्रा’हबीब’

शब्द बहे सरिता के जैसे 

गहरे भाव, झील हो ऐसे 

सबके दिल का बना दिवाकर 

क्या सखि साजन , नही प्रभाकर ।

गिरिराज भंडारी

 

 

2.

आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

ध्यान समय का रख न पाया     

मनमर्जी से आये-जाए       

करता है हर दिन यही खेल            

हे सखि साजन, ना सखी रेल॥

       

बिन माँगे सब कुछ पा जाये।

जो भी आये, खुश कर जाये॥

हर दिन, हर पल, है शुभ अवसर।

हे सखि गणिका, ना सखि अफसर॥ 

*गणिका  =  तवायफ  

लूट खसोट, काम है इनका।

करें हमेशा, अपने मन का॥

गलत काम के यही प्रणेता।

हे सखि डाकू, ना सखि नेता॥  

         

भोर भये हर दिन वो आये               

मीठे सुर में मुझे जगाए          

उसके बिन सूनी हैं रतियाँ।       

हे सखि साजन, ना सखि चिड़ियाँ॥  

 

रेलमपेला ठेलमठेला,

लगा रखे यह दिन भर मेला,

बैठ रहे सखी खोले द्वार,

क्या सखी साजन ? ना बाजार  ||

अशोक कुमार रक्ताले

नव छंदों को सीखें बढ़चढ़

नित्य सँवारें शिल्प सुघड़ गढ़  

यह गुण उनको करे विशेष

क्या सखि साजन? नहिं अखिलेश

डॉ० प्राची सिंह

 इंतजार का मजा दिलाये 

इसीलिए देरी से आये 

आपस में करवाये मेल 

क्या सखि साजन ? ना सखि रेल 

 अरुण निगम

पावर से त्रुटियों को ढाँपे

सदा मातहत थर-थर काँपे

और समझते खुद को ईश्वर

क्या सखि साजन ? ना सखि अफसर 

 अरुण निगम

बातों से होता मिठलबरा 

मन से होता है चितकबरा 

नाव डुबोता , जब भी खेता 

क्या सखि साजन ? ना सखि नेता 

अरुण निगम

जिनकी कहमुकरी मन भाई 

उनको देता अरुण बधाई 

उनके सर पर काले केश 

क्या सखि साजन ? नहिं अखिलेश 

अरुण निगम

चुपके से शामिल हो जाये

सुंदर सुंदर छंद बनाये

खुश रहे हमेशा न उसे गम 

हे सखि साजन, न न , अरुण निगम 

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

 

 

3.

आ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी

घन देखे आवाज लगावे 

छिटक छिटक कर प्रिय बोलावे 

बरसे पानी होए आतुर 

क्या सखी साजन ? ना सखि दादुर ।

 

उसके बिना तन है बेकार 

उसके बिना है फीका प्यार 

धड़के काया मे वो तिल तिल 

क्या सखि  साजन ? ना सखी दिल । 

 

सिंगार उसके बिन अधूरा 

उसको देखूँ होये पूरा 

तन मन सब उस पर है अर्पण 

क्या सखि साजन ? न सखि दर्पण । 

 

तन  मन मेरा वो महकाए 

प्यार प्रीत की रीत निभाए 

संग मे रहता जैसे मित्र 

क्या सखि साजन ? ना  सखी इत्र । 

 

आयी गरमी मन को भाये

देखूँ उसको मन  ललचाये 

सुंदर सूरत सुनहरी चाम 

क्या सखि साजन ? ना  सखी आम । 

 

 

सुन दादुर धुन दौड़ लगा दें 

आम उन्हें जब-तब ललचा दें 

नेह पगी उर शुभ्र-धारणा 

क्या सखि साजन ? न अन्नपूर्णा 

डॉ० प्राची सिंह जी

जबतब उनकी राह निहारूँ 

कहा सुनूं फिर काव्य निखारूँ 

वो हर बात बताएं साँची 

क्या सखि साजन ? न सखि प्राची 

अन्नपूर्णा बाजपेयी जी

4.

आ० चौथमल जैन जी

वो आए तो खुशियाँ छाए ,
बच्चों को ये बड़ा ही भाए ,
रास्ता जोवे बच्चे दिन -गिन ,
ए सखी उत्सव ? नहीं जन्मदिन

 

खेलें -कूदें मौज मनाए ,
अपनों के संग बढ़ते जाए ,
है चिन्ता न कोई तपना ,
क्या ये सपना ?नहीं बचपना

 

गया लड़कपन वो आजाए ,
अपने में भी ना रह पाए ,
जीवन में आगई रवानी ,
सखी दिवानी ? नहीं जवानी

 

वो आये तो मै थक जाऊँ ,
बोझा खुद का उठा न पाऊँ ,
मैने अपना खोया आपा ,
सखी संतापा ?नहीं बुढ़ापा

 

 

इसकी उसकी बात बताये,

पर उसकी ही कह ना पाए,

सखियों में थी जिससे  अनबन,

क्या सखि साजन ? ना सखि सौतन

अशोक कुमार रक्ताले

मुकर मुकर हर बात कही है 

पर प्रियवर की बात नहीं है 

सद्प्रयास  करते हैं निर्मल 

क्या सखि साजन? नहिं चौथमल 

डॉ० प्राची सिंह

जहाँ कहीं भी मुकरी होगी ,
साजन की ही बात कहूँगा ,
सीख ये मैने उससे ली है ,
क्या साजन से ?नहीं प्राची से !

चौथमल जैन 

5.

आ० सतीश मापतपुरी जी

पहली प्रस्तुति

 

बात करे दिल को छू जाये .
मन में एक उम्मीद जगाये .
ठण्ड पड़ गयी बाहर - भीतर .
ऐ सखि साजन ! न सखि लीडर .


आते - जाते तिरछे ताके .
कभी आगे कभी घूमे पाछे .
ना देखा मैं ऐसा दूसरा .
ऐ सखि साजन ! न सखि भसुरा .


दिल को भाये बहुत सुहाए .
जेठ में भी पावस बन जाए .
पतझड़ में जैसे हरियाली .
ऐ सखि सजनी ! न सखि साली .


सबसे सुन्दर सबसे पावन .
कैसे कहें कितना मनभावन .
जीवन की खुशियों का लॉकर .
ऐ सखि साजन ! न सखि कोहबर .

 

दूसरी प्रस्तुति

 

रह - रह कर वो सामने आये .
रात में सपनों में दिख जाए .
छीन न ले वो मेरी कमाई .
ऐ सखी साजन ? ना मंहगाई .

 

आँख मिचौली शाम को खेले .
पूरी रात ही उसको झेलें .
यहां -वहाँ फिरती जस तितली .
ऐ सखी साजन ? न सखी बिजली .

 

उसके पास वो रहते हरदम .
जैसे वो ही उनकी दुल्हन .
सॉरी कहते रहते अक्सर .
ऐ सखी सौतन ? न सखी दफ्तर .

 

 

बहुत दिनों में मिलने आयें 

पर जब आयें खुशियाँ लायें 

धुन छेड़ें ज्यों मधुर बाँसुरी

क्या सखि साजन? नहिं मापतपुरी

डॉ० प्राची सिंह

लीडर साली समझ गए हैं 

भसुरा कोहबर शब्द नए हैं 

अर्थ जानना हमें जरूरी 

समझा दीजे, मित्र मापतपुरी........

अरुण निगम

बहुत दिनों के बाद मिले हैं

मिलकर मन में सुमन खिले हैं 

सदा सभी को दें आशीष 

क्या सखि साजन ? नहीं ....सतीष

अरुण निगम

 

6.

आ० लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी

पहली प्रस्तुति

 

कांटो भरी सेज पर सोते

दुश्मन उनको नहीं सुहाते 

मै कहती हूँ उनको मौजी 

ऐ सखी साजन ? न सखी फौजी 

 

दिनभर जिससे ऊर्जा मिलती

जब तनाव हो राहत मिलती

मन से माने सभी पुरोधा

ऐ सखी साजन ? न सखी पौधा

 

वादे करता कभी न थकता

प्यार लुटाते नहीं अघाता

अवसर को नहीं जाने देता

ऐ सखी साजन ?न सखी नेता

 

जिस पर प्यार लुटाती सारा

मुझको जो प्राणों से प्यारा

स्नेह लुटाती जिस पर सच्चा

ऐ सखी साजन ? न सखी – बच्चा

 

जिससे रिश्ता कभी न टूटे

हाथ पकडले कभी न छूटे

उसका मानूँ सदा अहसान

ऐ सखी साजन ? न सखी –भगवान

 

दूसरी प्रस्तुति

 

रोज सवेरे उठ कर जाता

खेतों से है उनका नाता

उनका काम नहीं आसान 
ऐ सखी साजन ? न सखी किसान

 

कहे धरा को धरती माता

हलधर से है गहरा नाता

बैलों को भी पूजे इन्सान

ऐ सखी साजन ? न सखी किसान

 

फसल उगाए क्यारी क्यारी

जीर्ण भू हो,चले मन आरी

हम माने उसका अहसान

ऐ सखी साजन ? न सखी किसान  

 

उसे शीत भी नहीं सताता

आतप भी ठंडा  पड़ जाता  

वर्षा की रखता जो आन

ऐ सखी साजन ? न सखी किसान

 

जीर्ण धरा जिसको दुख देती

अतिवर्षा से चोपट खेती

उसको प्यारा है खलिहान  

ऐ सखी साजन ? न सखी किसान

 

 

ढूंढ़ रहा था कूंचा कूंचा

मै देखूं नित उंचा उंचा

नभ का कोई दिखे न अंत 

ऐ सखी साजन ? न सखी अनंत

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

दिल से गाए छंद सुनाए,

नेह जताए प्यार बढाए,

लाये जब छन्दों की माला,

क्या सखि साजन ? न लड़ीवाला 

अशोक कुमार रक्ताले

सीख सके जो विद्वजनों से 

वह खिल जाए सौरभ जैसे 

ओबीओ के ये है गौरव 

ऐ सखी साजन ? न सखी सौरभ

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

बच्चा नेता पौधा फौजी 

लेकर आये हैं मनमौजी 

इनका हर अंदाज निराला 

क्या सखि साजन ? न ...लडीवाला

अरुण निगम

अरुण बिना क्या उगता पौधा

सैनिक क्या बन सकता जोधा/ योद्धा 

कभी कभी ढा देता है सितम 

ऐ सखी साजन ? न सखी निगम 

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

सुन्दर -सुन्दर लड़ी पिरोई ,
मुकरियों की माल बनाई ,
संकोच जरा न उसने पला ,
रे सखी साजन ?ना लड़ीवाला 

चौथमल जैन

  

  

7.

डॉ० प्राची सिंह

पहली प्रस्तुति

 

दृढ़ निश्चय की ओढ़े चद्दर

गढ़ते अपना स्वयं मुकद्दर

हमदम मेरे, बिलकुल अपने

ऐ सखि साजन? ना सखि सपने

 

तन्हा देख मुझे वो घेरें

लाख चिढूं पर मुख ना फेरें

मंद-मंद दिल में मुस्का दें

ऐ सखि साजन? ना सखि यादें

 

वो दीपक, मैं जलती बाती

प्रेम प्रिया मैं, वो प्रिय पाती

पर, अनुबंधित साथ अक्षरी

ऐ सखि साजन? न सखि नौकरी

 

मैं उसमें वो मुझमें लय है

अंग रमा फिर किसका भय है

वो सुनता अन्तः क्रंदन स्वर

ऐ सखि साजन? ना सखि ईश्वर

 

उससे कदम मिला चलती हूँ

उसके रंग संग ढलती हूँ

सदा समर्पित उसको जीवन

ऐ सखि साजन? ना सखि फैशन

 

दूसरी प्रस्तुति

 

कठिन घड़ी हो चाहे कैसी

कर दे सबकी ऐसी तैसी 

उसनें मात कभी ना खाई

ऐ सखि साजन? नहिं सच्चाई

 

घुप्प अँधेरा जब-जब छाए

तन्हा छोड़ मुझे वो जाए

बस उजले क्षण साथ निभाया

ऐ सखि साजन? ना सखि साया

 

एक छुअन को तरसे जब-तब

छू लूँ जो, दिखलाए करतब

अग्ली रूप लगे फिर लवली

ऐ सखि साजन? ना सखि खुजली

 

मेरी खातिर वो जलता है

मै सोती हूँ वो जगता है

पर बैरी है, मुझको डाउट

ऐ सखि साजन? नहिं ऑल-आउट

 

तन-मन से उसको अपनाया

उसने हरपल साथ निभाया

वो ही मेरा सच्चा हमदम

ऐ सखि साजन? नहिं परिश्रम

 

तीसरी प्रस्तुति

 

गाल चूम कर मचला जाए

लट छेड़े ठुमके इतराए

देखें उसको सब मुड़-मुड़कर

ऐ सखि साजन? नहिं डैंगलर

 

भाग्यवान जो उनको पाया

शब्द-शब्द उनका अपनाया

तप्त मरू में शीतल तरुवर

ऐ सखि साजन? न सखि गुरुवर

 

उसपर मैं दिल जान लुटा दूँ

उसकी खातिर ‘रब’ बिसरा दूँ

वो ही अम्बर और आधार

क्या सखि साजन? नहिं परिवार

 

हरजाई नें ऐसा पकड़ा

तन-मन-धन जीवन सब जकड़ा

कल-मुँख बैरी, एक अवरोध

ऐ सखि साजन? ना सखि क्रोध

 

उसने मुझको यूँ दौड़ाया

रोज़ रोज़ का नाच नचाया

भूख-प्यास पर मारा छापा

ऐ सखि साजन? नहिं मोटापा

 

चौथी प्रस्तुति

 

उन्हें सहेजा जबसे प्रतिपल  

हृदय हिलोरें खाता अविरल

महकें चहकें दिन और रतियाँ

क्या सखि साजन? न सखि खुशियाँ

 

यूँ तो मधुमय प्याले भर दे

पर करीब से सिर्फ ज़हर दे

आतंकी छवि उसकी, झख्खी

क्या सखि साजन? नहिं मधु-मख्खी

 

रंग रूप फूलों सा पाया

पर ज़ालिम नें बहुत सताया

उससे खुदा बचाए दैया

क्या सखि साजन? नहिं ततैया

 

लाख भगाऊँ पर ना जाए

गुपचुप घर में सेंध लगाए

आदत उसकी बहुत मनचली

क्या सखि साजन? नहिं छिपकली

 

खून पिए सीधे आर्ट्री से

करे दुखी अपनी एंट्री से

हो ना उससे कभी कनेक्शन

क्या सखि साजन? नहिं इन्जेक्शन

 

 

उनका नेह मुझे भाता है

ज्ञान देख मन हर्षाता है 

रंग रचीं वो लगें अल्पना 

क्या सखि साजन? नहिं कल्पना 

डॉ० प्राची सिंह

उसका भोलापन निश्छल है 

मनस भाव निर्मल शीतल है 

शब्द कहे मीठे वो चुन-चुन  

क्या सखि साजन? न सखि अरुण 

डॉ० प्राची सिंह

खिले कभी जो उनका चेहरा 

रंग जमा दें सबसे गहरा 

नेह बरसता झीना झीना 

क्या सखि साजन? न सखि मीना 

डॉ० प्राची सिंह

रचे  मुकरियां सुन्दर बहना,

इतना बस मुझको है कहना,

बात कहे वह नित साँची जी ,

ऐ सखि साजन ? ना प्राची जी !

सत्यनारायण सिंह

दूर रहें तो प्यार जताते,

पास रहें तो और लुभाते,

मीठे बोलों से मुस्काते,

ए सखि साजन ? ना सखि नाते ||

अशोक कुमार रक्ताले

उनसे नाता बहुत निराला 

रस छंदों की वो मधुशाला 

पाठक बन पीलूँ रस प्याले 

क्या सखि साजन? नहिं रक्ताले 

डॉ० प्राची सिंह

आदि अंत का छोर कहाँ है 

हर जवाब संतृप्त यहाँ है 

शून्य शून्य बस शून्य शून्य नभ 

क्या सखि साजन? न सखि सौरभ 

डॉ० प्राची सिंह

हर अठखेली उसकी भाए 

हर महफ़िल में वो छा जाए 

बदल बदल दिखलाए भेष

क्या सखि साजन? नहिं राजेश 

डॉ० प्राची सिंह

रंगबिरंगे सोये-जागे 

ले जायें अम्बर से आगे 

हैं जैसे भी लेकिन अपने 

ऐ सखि साजन? ना सखि सपने

अरुण कुमार निगम

जुगनू बनकर करें उजाला 

इनमें शबनम, इनमें ज्वाला 

बिछुड़ों से ये तुरत मिला दें 

ऐ सखि साजन? ना सखि यादें

अरुण कुमार निगम

बने प्रेम में हरदम बाधा

पिया-मिलन को कर दे आधा 

मजबूरी यह, नहीं शौक री ! 

ऐ सखि साजन? न सखि नौकरी

अरुण कुमार निगम

जाने कब आता कब जाता 

युवा-वर्ग को बहुत सुहाता 

हरा-भरा रखता है जीवन 

ऐ सखि साजन? ना सखि फैशन

अरुण कुमार निगम

हर रचना से तान मिलाते 

महफ़िल महफ़िल वो छा जाते 

बाटें सबकी खुशियाँ और गम 

ऐ सखि साजन? न सखि निगम 

डॉ० प्राची सिंह

सच्चाई से मुंह ना  मोड़े

साया जिसको कभी न छोड़े

कहदे जो भी साँची साँची

ऐ सखी साजन ? न सखी प्राची  

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

हाय मुझे देवें क्यों धमकी 

बात यही जब उनके मन की 

कारण क्या जो ऐसा द्वेष 

क्या सखि साजन ? नहिं राजेश 

डॉ० प्राची सिंह   

 

 

 

 

 

8.

आ० रमेश कुमार चौहान जी

जब वो आये गांव सहेली ।
अपना जीवन लगे पहेली ।।
चुनने का मन पले तनाव ।
क्या सखि साजन ?ना सखि चुनाव ।।

देखूं वही जो वो दिखाये ।
उसको रखती नाक बिठाये ।।
उनके रंग से जहां रौनक ।
क्या सखि साजन ?ना सखि ऐनक ।।

निकट नही पर दूर कहां है ?
उनके नयन सारा जहां है ।
पलक झपकते करते कमाल
क्या सखि साजन ?न अंतरजाल ।।

मित्र न कोई उनसे बढ़कर  ।
प्रेम भाव रखे हृदय तल पर ।।
सीधे दिल पर देते दस्तक ।
क्या सखि साजन ?ना सखि पुस्तक ।।

हाथ धर उसे अधर लगाती ।
हलक उतारी प्यास बुझाती  ।।
मिलन सार की अमर कहानी ।
क्या सखि साजन ?ना सखि पानी ।।

 

 

भाव चुनिन्दा सुन्दर-सुन्दर 

शब्दों का भी  धरें समुन्दर

पर प्रवाह पर रखें न ध्यान

क्या सखि साजन ? न सखि चौहान  

अरुण कुमार निगम

9.

अरुण कुमार निगम

हर्षित कर जाता था आना

लगता था वह मीत पुराना

संस्था जैसा एक अकेला

क्या सखि साजन, नहिं अलबेला |

 

हास्य व्यंग्य का कुशल चितेरा

हर कोई कहता वह मेरा

छोड़ गया दुनियाँ का मेला

क्या सखि साजन, नहिं अलबेला |

 

सबके मन में रहा समाया

सदा बाँटने में सुख पाया

संचित करके रखा न धेला

क्या सखि साजन, नहिं अलबेला |

 

अनायास उसका यूँ जाना

सुनकर जड़वत हुआ जमाना

छीन, खेल विधुना ने खेला

क्या सखि साजन, नहिं अलबेला |

 

आहत कविताई की पाँखें

व्यथित ह्रदय भर आईं आँखें

थमे नहीं स्मृतियों का रेला  

सखि हुई मौन, नहीं....अलबेला |

 

 

लूट रहा था हर मन हर दिल 
चकित पड़ी थी बज्मो-महफिल 
हँसा-हँसा कर गाया-खेला 
क्या सखि साजन ? ना अलबेला

सौरभ पाण्डेय

हँसी खुशी का इक सौदागर 

यूँ बिछुड़ा है आज रुलाकर 

आवागमन अजब है खेला 

ऐ सखि साजन? नहिं अलबेला 

डॉ० प्राची सिंह

दुनियादारी बड़ा झमेला,

आना-जाना पड़े अकेला,

गया बंद कर मेला ठेला,

क्या सखि बोलूं ? कह अलबेला !

अशोक कुमार रक्ताले

हास्य बिखेरे जह तह देखो 

मन उदास तो उसको लेखो 

मांगे न किसी से कोई धेला

ऐ सखी साजन ? न सखी अलबेला 

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

 

10.

अजीत शर्मा आकाश

पहली प्रस्तुति

 

धूप और बरसात बचाये

थोड़ा छू दो झट तन जाये

उसका श्याम रंग है भाता

क्या सखि साजन ?ना सखि,  छाता 

š

बिस्तर से तन पर चढ़ आये

काटे और झुरझुरी मचाये

तन-मन में कर दे वो हलचल

क्या सखि साजन ?ना री,  खटमल

š

जब देखूँ तब मन ललचाये

मुँह का बढ़िया स्वाद बनाये

बड़ी निराली उसकी शान

क्या सखि साजन ?ना सखि,  पान

š

उस पर चढ़कर मैं इतराऊँ

ऊपर जाऊँ,  नीचे आऊँ

सावन में मुझको न भूला

क्या सखि साजन ?ना री,  झूला

š

रोज़ समय पर मुझे बुलाये

दिन भर मुझसे काम कराये

हड़काता रहता है अक्सर

क्या सखि साजन ?ना सखि,  अफ़सर

 

दूसरी प्रस्तुति

 

हरदम पैरों में रहता है

सारा दिन बोझा सहता है

उसको त्यागे, किसका बूता

क्या सखि साजन ?ना सखि,  जूता

 

तिकड़म से हर काम बनाये

छल -प्रपंच कर ख़ूब कमाये

दिन भर आश्वासन ही देता

क्या सखि साजन ?ना सखि,  नेता

 

ठीक समय पर घर आ जाये

नयी- नयी नित ख़बर सुनाये

जोड़े दुनिया भर से तार

क्या सखि साजन ?ना,  अख़बार

 

दुनिया भर से बात कराये

फ़ोटो खींचे , गीत सुनाये

अजब-ग़ज़ब उसकी स्टाइल

क्या सखि साजन ?ना,  मोबाइल

 

उछल-कूद में सबसे आगे

शैतानी कर-कर के भागे

बड़ी अक़्ल है उसके अन्दर

क्या सखि साजन ?ना सखि,  बन्दर

 

 

 

11.

आ० शिज्जू शकूर

शाम सवेरे जो तड़पाये

तन का ये पानी पी जाये

देखो तो इसकी बेशर्मी

क्या सखि साजन? ना सखि गर्मी

 

माथे से जब तब चू जाये

कपड़ा तन ये खूब भिगाये

इसकी हरक़त जाये सही ना

क्या सखि साजन? नहीं पसीना

 

कहते रखना पास हमेशा

जब भी हो लू का अंदेशा

क्या जानूँ इसका क्या है राज

क्या सखि साजन? ना सखी प्याज

 

तन मन मेरा कर दे शीतल

मिल जाये खोया तन को जल

वाह क्या बात है! क्या कहना!

क्या सखि साजन? आम का पना!

 

 

 

12

आ० कल्पना रामानी जी

दुपहर, शाम, सुबह या रैना।

देख न लूँ तो मिले न चैना।

ऐसा मन में बसा हुआ वो,

क्या सखि साजन?ना, ओबीओ!

 

कल तक थी जिससे अनजानी।

आज उसी की हूँ दीवानी।

ज्ञान गुणों का है संगम वो,

क्या सखि साजन?ना ओबीओ!

 

उसने सात्विक प्रेम सिखाया।

अन्तर्ज्ञान उसीसे पाया।

मन-माला का है सुमेरु वो,

क्या सखि साजन?ना ओबीओ!

 

देखा था उसको चित्रों में।

अब शुमार है प्रिय मित्रों में।

हर दिन-रैन मिला करता वो,

क्या सखि साजन?ना ओबीओ!

 

उसका प्रेम सखी अति पावन,

इसीलिए लगता मनभावन।

जीवन का वरदान बना वो,

क्या सखि साजन?ना, ओबीओ!

 

 

सबसे सुंदर हैं मनभावन 

सूरत सीरत से हैं पावन 

भाव रंग से सजी अल्पना 

क्या सखि साजन ?न सखि कल्पना 

अन्नपूर्णा बाजपेयी

भाव हृदय के सब कह डाले

भरे प्रीत के मधुमय प्याले 

परी कथा सी प्रेम-कहानी 

क्या सखि साजन? नहिं रामानी 

डॉ० प्राची सिंह

प्रेम  प्रीति के रंग  बरसते 
आपस में सब मिलजुल रहते 

लुप्त छंद ढूंढ रहा सभी वो 

ऐ सखी साजन ? न सखी ओबीओ 

लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

 

 

13.

आ० सत्यनारायण सिंह जी

पहली प्रस्तुति


नित रहता स्वागत में तत्पर,
हर दिन भोर मिले वह बिस्तर,
मिले नहीं वह मन अकुलाय,
ए सखि साजन ? ना सखि चाय !  (बेड-टी)

आलस सुस्ती दूर भगाए,
तन मन में वह जोश जगाए,
छुए अधर वह मन हर्षाय,
ए सखि साजन ?  ना सखि चाय !

करता परख वह पीर निदान,
सबकी नज़र में वह भगवान,
सुनता वह चुप दिल की धड़कन,
ए सखि साजन ? ना सखि सर्जन!

आस बँधाये साँस चलाए,
खून शुद्ध सम्बन्ध बनाए,
सूनी वा बिन जीवन महिफिल,
ऐ सखि साजन ? ना सखि दिल !

जीवन की वह रेल चलाए,
वा बिन जीवन ना चल पाए,
करे सुगम वह जीवन मंजिल,
ए सखि साजन ? ना सखि दिल!
पुछल्ला :
रंग गेहुँवा अंग कठोरा,
मधुर भाव मन लेत हिलोरा,  
सहज तरल वह दिल का दरियल,  
ऐ सखि साजन ? नहीं नारियल!

 

 

प्रतिक्रिया वा मन को भाए,

काव्य विधा के राज सिखाए,

उनके आगे सब निष्प्रभ जी,

ऐ सखि साजन? नहिं सौरभ जी !

सत्यनारायण सिंह

14.

आ० माहेश्वरी कनेरी जी

नैनों में वो बसता मेरे

उस बिन सब श्रृंगार अधूरे

शीतल जैसे गंगा का जल

का सखि साजन ? ना सखि काजल

 

मंद मंद चलता मुस्काता

सुरभित वो सब जग कर जाता

आने से खिल खिल जाता मन

का सखि साजन ? ना सखि पवन

 

संग संग चलते वो मेरे

झूम झूम कदमो को घेरे

दीवाना मुझ पर है कायल

का सखि साजन ? ना सखि पायल

 

तपित ह्रदय जब मेरा तरसे

नेह बूँद बन झर झर बरसे

देख् चातक सा मन है हर्षा

का सखि साजन ? ना सखि वर्षा

 

अमूल्य बहुत अजब है नाता

वही धरा का जीवन दाता

इसकी महिमा गाते ज्ञानी

का सखि साजन ? ना सखि पानी

 

 

 

15.

आ० राजेश कुमारी जी

उसके बिन मैं रह ना पाऊँ
साथ चले जब बाहर जाऊँ
बिन उसके ये जीवन कैसा
क्या सखि साजन?ना सखि पैसा  

 

हर पल उसके साथ बिताऊँ

ना देखूं तो चैन न पाऊँ

मिलकर चुमूँ उसका मस्तक

क्या सखि साजन?ना सखि पुस्तक

 

घर आँगन को जो महकाए 
साँस-साँस में घुल-मिल जाए
कली-कली मन ही मन हुलसी
क्या सखि साजन?ना सखि तुलसी.


 हवा चले मस्ती में आये
तन से मेरे चिपटा जाये
कंठ लिपटता बनके पट्टा
क्या सखि साजन ?नहीं दुपट्टा |

दिल का कौना – कौना महके

पुहुप- पुहुप पर भँवरा लहके

पावन जैसे कोई संत

क्या सखि साजन?ना सखि बसंत | 

 

 

उनको प्रिय पुस्तक औ' पैसा

चाहे फिर मौसम हो जैसा 

कथ्य संजोएँ सदा विशेष  

ऐ सखि साजन? नहिं राजेश 

डॉ० प्राची सिंह

पैसा पुस्तक तुलसी आँगन,

लगता सब उसको मनभावन,

गुलशन गुल हर क्यारी-क्यारी,

क्या सखि साजन ? न राजेश कुमारी

अशोक कुमार रक्ताले

जिससे घर का आँगन महके 

किलकारी से हम सब चहके 

सबको लगे वह आज्ञाकारी

ऐ सखी साजन ? न सखी राजकुमारी

 लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

 

 

16.

आ० गुमनाम पिथोरागढ़ी जी

मोहक रूप है गुण की खान 
करता दूर अवगुण को छान 
रहे तैयार जब भी खोलियो 
ए सखी साजन ! ना ओ बी ओ

 

धीर गंभीर रहते हैं सदा 
देखें सब बोले यदा कदा  
साथ हों जब होता नाज़ 
ए सखी साजन ! ना योगराज ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  [क्षमा ]

 

मन से बिलकुल किशोर हैं ये 
रखते नज़र चहुँ ओर हैं ये 
जाने मन के सारे राज 
ए सखी साजन ! ना गिरिराज  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, [क्षमा ]


पकड़े हाथ फिर नहीं  छोड़े 
कितना ही हाथ पैर जोड़े 
जीवन भर की प्रीत लगाईं 
ए सखी साजन ! ना महंगाई

आती है जब डर जाता मन 
नीदें खोई खोया भोजन 
विदा समय भी दे जाय शिक्षा 
ऐ यार सजनी ! ना परीक्षा

 

 

 

17.

आ० सरिता भाटिया जी

पहली प्रस्तुति 

 

सांस का लेखा उसके संग 
जीवन में न उस बिन रंग 
महकाये मेरा हर कण कण 
क्यों सखि साजन ?ना सखि धड़कन


सुबह सवेरे पास बुलाये 
घर बैठे सब राज बताये 
उसका करती मैं इंतज़ार 
क्यों सखि साजन ?नहीं अखबार


मीठी लगती उसकी बात 
साथ वो चिपके दिन औ रात 
सदा बोल वो बोले सच्चा 
क्यों सखि साजन ?ना सखि बच्चा 

साथ हमेशा मेरे आता 
अंधकार से डर छुप जाता 
देखो उसकी अद्भुत माया
क्यों सखि साजन ?ना सखि साया

 

यौवन आते लगे जरूरी 
सह ना पाती उससे दूरी 
मुझको मिला वो ज्यों वरदान 
क्यों सखि साजन ? नहीं मतदान

 

दूसरी प्रस्तुति 

 

सुख दुख उस बिन रहे अधूरा 
कोई काम न उस बिन पूरा 
जीवन उस बिन लगे है शूल 
ऐ सखि साजन ?नहीं सखि फूल 

सर्दी गर्मी साथ निभाए 
उस बिन आँसूं कौन मिटाए
छुपाता मेरा हर हाल 
ऐ सखि साजन ?नहीं रुमाल

दिन में वैरी गुस्सा करता 
सांझ ढले गुस्सा है घटता 
गर्मी में चलता वो तनकर 
ऐ सखि साजन ?ना सखि दिनकर 

जीवन सफ़र है उसके संग 
वो दिखाए दुनिया के रंग 
समझ ना पाती उसके खेल 
ऐ सखि साजन ?नहीं सखि रेल 

उसके आते आई बहार 
चहुँ दिशा ने किया शृंगार 
मिलता मुझे है लेकर दाम 
ऐ सखि साजन ? ना सखि आम 

 

तीसरी प्रस्तुति 

 

बिना उसके शादी अधूरी 
उससे होती आशा पूरी 
मीठे लगते उसके बोल 
ऐ सखि साजन ?नहीं सखि ढोल

 

प्रेम बांटता प्रेम दिखाता 
सुख दुख में है साथ निभाता 
देखते उसको धड़के जिया 
क्या सखि साजन ?नहीं डाकिया

 

इसमें बसी है सबकी जान 
केवल वो है सबकी शान 
उस बिन रिश्ता झूठा भैया 
क्या सखि साजन ?नहीं रुपैया

सत्य अहिंसा को अपनाया 
खुद को विजयी कर दिखलाया 
कहलाया वो तब शूरवीर 
क्या सखि साजन ?ना महावीर

 

देखके उसको हुई शौदाई 
झूम झूम के ख़ुशी मनाई 
आया आँगन जैसे पाखी 
क्या सखि साजन ?ना बैसाखी

 

 

 

18.

आ० सचिन देव जी

मीठी मीठी बात बनाता  

स्वपन लोक की सैर कराता

बातों से मन को हर लेता

ऐ सखी साजन ? न सखी नेता

 

दिन भर रहता जो मंडराता

गुनगुन गुनगुन गीत सुनाता

ना ये तोरा ना ये मोरा

ऐ सखि साजन ? न सखी भौंरा

 

छवि मोहिनी मन भरमाता

रास रचैय्या रास रचाता

चंचल मन को वश कर लेता

ऐ सखि साजन ? न सखि अभिनेता

 

अंग-अंग को ये छू जाता

रस पीता व्याकुल कर जाता

है वो गुदड़ी, वो है मखमल

ऐ सखि साजन ? न सखी खटमल

 

प्रीत प्रेम की सदा निभाता

मधुर मिलन को जान लुटाता

प्रेम रंग मैं जो है रंग्गा

ऐ सखि साजन ? न सखि पतंगा

 

 

उत्सव में लाया वो नेता 

कीट पतंगे औ' अभिनेता 

रंग नहीं जमता उसके बिन 

क्या सखि साजन? न न सचिन 

डॉ० प्राची सिंह

19.

आ० अरुण शर्मा ‘अनंत’ जी

पहली प्रस्तुति

 

अम्बर के जैसे लगते हैं,
कष्टों से वंचित रखते हैं,
जीवन दाता मेरे रहबर 
क्या सखि साजन ? न सखी फादर

करुणा का सागर लहराता,
नतमस्तक हों स्वयं विधाता,
दुर्लभ है परिभाषा लिखनी
क्या सखि साजन ? न सखी जननी,

सागर से ज्यादा गहराई,
कितनी दुनिया भांप न पाई,
अधिक विधाता से है क्षमता,
क्या सखि साजन ? न सखी ममता,

बिन बोले हर बात समझता,
सुख दुख का वो कर्ता धर्ता,
प्रातः संध्या और दोपहर,
क्या सखि साजन ? न सखी ईश्वर,

उसके मुंह ना उसके कान,
फिर भी बना है वो भगवान,
बांधे जो नदिया औ सागर,
क्या सखि साजन ? न सखी पत्थर

 

दूसरी प्रस्तुति

 

जीवन खातिर बहुत जरुरी,
उससे सही न जाये दूरी,
उसकी आवश्यकता प्रतिपल,
क्या सखि साजन ? न सखी जल 

सबका पालन पोषण करती,
सुख दुख सदा अकेले सहती,
फिर भी ममता कभी न घटती,
क्या सखि माता ? न सखी धरती.

आस पास हरदम मँडराती,
बाहर आती भीतर जाती,
छूकर पैदा करती सिरहन,
क हो सजनी? अरे नहीं पवन 

वही सलोना मेरा सपना,
एक बार हो जाये अपना,
कर देता है मगर हताश,
क्या सखि साजन? ना आकाश 

सच में बिलकुल नहीं सुहाए,
पास ग्रीष्म में जब वह आए,
सर्दी में भाये अनुराग,
क्या सखि साजन? न सखी आग.

 

 

शब्दों की गागर जब लाए

प्रेम समंदर उर लहराए 

शुद्ध हृदय, जैसे एक संत 

क्या सखि साजन? नहीं अनंत 

डॉ० प्राची सिंह

20.

आ० मीना पाठक जी

पहली प्रस्तुति

 

मारे जब वो खींच के धार 
प्रेम से भीगूँ मैं हर बार 
मारे मन मेरा किलकारी 
क्या सखी साजन ?ना पिचकारी |

जब वो गालों को छू जाये 
मन मेरा पुलकित हो जाये 
शर्म से हो जाऊं मै लाल 
क्या सखी साजन ?ना री गुलाल |

खुशबू उसकी मन को भाये 
अधर चूमता उसको जाये 
झंझट बहुत कराये रसिया 
क्या सखी साजन ?ना सखी गुझिया |

यादें जब आती है उसकी
मन मेरा मारे है सिसकी 
दौड़ाए ले रंग हथेली 
क्या सखी साजन ?ना सहेली | 

 

दूसरी प्रस्तुति

 

दूसरी प्रस्तुति :-

१-
हर इक गुण मे वो हैं माहिर 
सब की गलती कर दें जाहिर 
करती हूँ मै उनका आदर 
क्या सखी सजन ?
ना प्रभाकर !

ओबीओ के है वो परधान
सभी शिष्यों का रखते ध्यान 
सब पर रहती उनकी नजर 
क्या सखी सजन ?
ना प्रभाकर-सर !

उनका आदर बहुत मै करती 
आँखों से उनके मै डरती 
उनके शब्द जैसे मुकेश 
क्या सखी साजन ?ना सखी बृजेश |

सुन्दर भोर भई अरुणाई 
उसने राहें खूब तकाई
उम्र है उसकी अभी तरुण 
क्या सखि साजन ? ना ना अरुण

सूरत उनकी है मनभावन 
बोली उनकी मन लुभावन 
सुन्दर लेख जैसे अल्पना
क्या सखी साजन ?ना, दी कल्पना |

 

तीसरी प्रस्तुति

 

दिन भर उसको बहुत पकाती, 
मात्राओं का ज्ञान बढाती, 
धैर्य का उसके नही है अंत, 
क्या सखि साजन? ना सखी अनंत 

उनसे कहती जब पढ़ लो सर 
कहते अभी रुको वो पल भर 
पढ़ने को बहुत है भर-भर 
क्या सखी साजन ? ना, सौरभ सर |

 

 

उत्सव में लाकर पिचकारी 

रंग बिरंगी कर दी सारी 

छंद रचे ज्यों गढ़ा नगीना 

क्या सखि साजन? न सखि मीना 

डॉ० प्राची सिंह

21.

आ० गिरिराज भंडारी जी

प्रथम प्रस्तुति

 

दुख-सुख रंगा , है बहु रंगी

दुश्मन बने, कभी है संगी

कुछ खूबी तो कुछ है कमियाँ

क्या सखि साजन , ना रे दुनियाँ

 

अंदर तक मेरे छा जाये

कुछ भी कर लूँ , दूर न जाये 

ज्यों बना लिया है मन मे घर

क्या सखि साजन , ना सखि डर

 

साथ रहे तो बहुत सताये

केवल अपनी बात सुनाये

बाक़ी सबको कर दे गैर

क्या सखि साजन, ना सखि बैर

 

बर आये तो अन्धा करदे

पागल हर इक बन्दा कर दे

सभी हक़ीक़त कर दे किस्सा

क्या सखि साजन , ना रे गुस्सा

 

जब भी हो तो मेल कराये

अच्छा सबसे खेल कराये

बांटे गिन गिन सबको हर्ष

क्या सखि साजन , नही विमर्श 

 

दूसरी प्रस्तुति 

 

यों खूब भला, वो लगता है

लेकिन सोते ही रहता  है  

बस बातों में छूता उत्कर्ष 

क्या सखि साजन, नहीं आदर्श

 

रोज़  मुझे अपना  बतलाता  

लेकिन हरदम मुझे रुलाता

मौके पर अन्धा बन जाय         

क्या सखि साजन, ना सखी न्याय

 

अन्दर बाहर सभी जला दे

ना जाने क्या काम करा दे

जिसे भी धेरा किया तबाह  

क्या सखि साजन, ना सखी डाह

 

जब मिल जाये खुश हो जाऊँ

नही मिले तो हँस ना पाऊँ  

उसको पाने हाथ मचलता  

क्या सखि साजन, नही सफलता

  

मिले अगर तो कुछ सिखलाए 

परिवर्तन मुझमे कर जाए 

लेकिन उसका आना खलता 

क्या सखि साजन ? नहिं विफलता

 

 

 

22.

आ० ज्योतिर्मयी पन्त जी

प्रथम प्रस्तुति

 

उसका आना ज़रा न भाये
चमक धमक से  जिया जलाये 
तेज़  स्वभाव  नहीं है  नर्मी
क्या सखि साजन ? नहीं री गर्मी .

रातों को वह सदा जगाता 
कभी कान में कुछ कह जाता 
साँझ पड़े वो आता अक्सर 
क्या सखि साजन ?ना वो मच्छर .

पैरों लिपट साथ ही चलता 
शोर मचाता और मचलता 
सबका मन मोहे उसके सुर 
क्या सखि साजन ?नहिं री नूपुर .


बैठे गोद  खूब  बतियाता 
खोल खिड़कियाँ विश्व दिखाता 
दूर करे संदेह    संताप  
क्या  सखि साजन ? नहिं 'लैपटॉप`.

धीरे से मुखड़ा सहलाये 
चुनरी और लटें उलझाये 
छूकर शीतल कर दे तन -मन 
क्या सखि साजन ?नहीँ वो पवन.

 

दूसरी प्रस्तुति

 

द्वितीय प्रस्तुति ...

 
गालों को जब मर्ज़ी चूमे 
मस्ती में हरदम वह झूमे 
रुचता जैसे उसको ठुमका 
क्या सखि साजन ?नहिं री झुमका .

उसके बिन नहिं घर से निकलूँ
हाथ पकड़ कर साथ  ले चलूँ
भूलूँ तो  हो परेशान  दिल
क्या सखि साजन ?नहिं मोबाइल .

इंतज़ार हर रात उसी का  
और न रहता  ध्यान किसी का 
सुख सपनों की एक उम्मीद 
क्या सखि साजन ?नहीँ री नींद .


उसके  बिन  धुँधला जग लागे 
कुछ भी सुन्दर मुझे न लागे
मिल  उस के  संग  आँखें चार 
क्या सखि साजन ?नहिं चश्मा यार   .

नज़र उठाकर उसे न  देखूँ 
घूँघट -परदे छुप के देखूँ 
तेजोमय  अति दिव्य  है  रूप 
क्या सखि साजन ?नहीँ री धूप.

 

 

 

23

आ० संजय मिश्रा ‘हबीब’ जी

पहली प्रस्तुति

 

पूरी कभी न करता ख़्वाहिश। 
वादों की कर जाता बारिश। 
बरसों फिर दरसन नहिं देता, 
क्या सखि साजन? ना सखि नेता॥

काम नहीं उसके बिन बनता। 
वही मिटा डाले हर चिन्ता। 
मैं तो हूँ उसकी ही आदी। 
क्या सखि साजन? ना सखि खादी॥  

रात गए सपनों में आए। 
मुझे नींद में पास बुलाये।
जाग उठूँ मैं हो आतुर सी, 
क्या सखि साजन? ना सखि कुर्सी॥


दूर रहे जब उसे बुलाऊँ। 
पास आ जाये तो घबराऊँ।
पता न पड़ जाये क्या दांव, 
क्या सखि साजन? नहीं चुनाव॥

साथ मिले उसका तर जाऊँ।
मुंह फेरे वह जब डर जाऊँ। 
उसे मनाऊँ गाकर, रोकर, 
क्या सखि साजन? ना सखि वोटर॥ 

 

दूसरी प्रस्तुति


कभी रंगीला कभी है कोरा। 
बदन वही छू सकता मोरा। 
इठलाता फिरता है पागल, 
क्या सखि साजन? ना सखि आँचल॥ 

भोर दोपहर साँझ बुलाये। 
मुझको छप्पन भोग खिलाये। 
रखती उसको जैसे दूल्हा, 
क्या सखि साजन? ना सखि चूल्हा॥

गोदी में सिर रख सो जाऊँ। 
कभी रात भर संग बतियाऊँ।
रस्ता मेरा देखे दिन भर, 
क्या सखि साजन? ना सखि बिस्तर॥

खोज खबर दुनिया की लाता। 
जब मैं कह दूँ गीत सुनाता।
सबसे मेरा वही करीबी, 
क्या सखि साजन? ना सखि टीवी॥  

मीठी करता रहता बातें। 
उसके बिन तपती हैं रातें। 
तन मन शीतल करता छूकर, 
क्या सखि साजन? ना सखि कूलर॥

 

 

सभी विधा में सिद्धहस्त है 

चीज बड़ी वह मस्त-मस्त है 

शब्द बाण का वही धनञ्जय 

क्या सखि साजन ? ना री ! संजय 

अरुण कुमार निगम

24.

आ० कृष्णासिंह पेला जी

लेकर मुझकाे उड उड जाएँ 

सुन्दर सा घर एक बसाएँ 

उनका काेई नहीं जवाब 

क्या सखि साजन ? नहीं नहीं ख्वाब । 

 

नकल उतारै, मुझे चिढावै 

अपने में मुझकाे दिखलावै 

हरपल घूरता जाए तन 

एे सखि साजन ? नहीं दरपन । 

 

हाैले से छू कर वाे निकले

बालाें काे सहला उलझाए 

प्राणाें में लाए नर्तन 

क्या सखि साजन ? नहीं पवन । 

 

वाे कहकर यूँ नहीं मुकरता 

मीठी गजलें, गीत सुनाता 

कहता मित्राें से मिल लाे 

क्या सखि साजन ? नहीं अाेबीअाे । 

 

बैठी हूँ मैं नैन बिछाकर

अाएगा वाे बहार लेकर

छाएगा चाराें अाेर हर्ष 

क्या सखि साजन ? नहीं नववर्ष ।

 

 

 

25.

आ० अनीता मौर्या जी

प्रेम की जब धुन वो बजाये, 
जी भरमाये सुध बिसराये, 
नाचे मन संग तन भी मेरा, 
क्या सखी साजन? न सखी सपेरा।


नैनो में बस जाता है जब, 
जगत नया दिखलाता है तब, 
लगता है वो मुझको अपना, 
क्या सखी साजन? न सखी सपना ।


प्रेम पुष्प पल्लवित हो जाये, 
ठंडी फुहारें अगन जगाएँ 
वो हरजाई वो मनभावन, 
क्या सखी साजन? न सखी सावन ।


मोहनी सूरत जी ललचाए, 
बातें करे तो सुध खो जाए, 
कर जाये वो दिल को घायल, 
क्या सखी साजन? न सखी पायल ।


जहाँ मैं जाऊँ संग लग जाए , 
भरी दुपहरिया छुप छुप जाए, 
तंग मुझे करता हरजाई, 
क्या सखी साजन? न परछाई ।

 

 

 

26.

आ० सौरभ पाण्डेय जी

आन-बान की चढ़ी खुमारी 
ताकत पर धन की बलिहारी 
शासन की चौपड़ का गत्ता 
क्या सखि साजन ? ना सखि सत्ता !

जिसे कमाया, तिल-तिल नोंचे 
संचित मेरा रह-रह कोंचे 
तंग करे.. कर दे लाचार  
क्या सखि साजन ? न, भ्रष्टाचार ! 

उसके कारण तन-मन गद्-गद् 
विस्तृत उर का धर्म-विषारद  
उसके प्रति मनभाव विशेष  
क्या सखि साजन ? ना सखि देश !

छन में तोला छन में माशा 
किन्तु बँधी उससे ही आशा 
भरूँ उसीके कारण मैं दम 
क्या सखि साजन ? ना सखि मौसम !

रौद्र सूर्य की कांति प्रखर में 
ओजपूर्ण है तेजस स्वर में  
होती तेवर में कुछ नर्मी 
क्या सखि साजन ? ना सखि गर्मी !

 

 

अपना अलग रंग बिखराए।

बात सहज गहरी कह जाये।

उड़ा साथ ले जाये वो नभ,

क्या सखि साजन? ना सखि सौरभ॥

संजय मिश्रा ‘हबीब’

शब्दों के अद्भुत बाजीगर

छंद विधा के हैं जादूगर 

ऐसा कविवर होता दुर्लभ 

क्या सखि साजन ? ना सखि सौरभ 

अरुण कुमार निगम

27.

आ० अशोक कुमार रक्ताले जी

भर बांहों में लगा उठाने,

रूठी तो फिर लगा मनाने,

दिल का सच्चा मन का साधू,

क्या सखि साजन ? ना सखि बापू ||

 

हरदम उनके दिल में रहती,

बिन उनके तो अँखियाँ बहती,

प्यार करें ज्यों खोये आपा,

क्या सखि साजन ? ना सखि पापा ||  

 

मुख चूमें तो मैं इतराऊँ,

दिल की सारी उन्हें बताऊँ,

मन्दिर मस्जिद वो ही काबा,

क्या सखि साजन ? ना सखि बाबा ||

 

मुझसे सह ना पाएं दूरी,

ख्वाहिश भी हर करते पूरी,

हरदम मेरी खातिर रैडी,

क्या सखि साजन ? ना सखि डैडी ||

 

उपहारों से मुझे लुभाते,

वादे करते और निभाते,

मेरी हर हाँ ना में राजी,

क्या सखि साजन ? नहीं पिताजी ||

 

 

 

 

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आदरणीया प्राची जी , महा उत्सव का सफलता पूर्वक संचालन और सफलता के लिये आपको दिली बधाइयाँ । संकलन जैसा श्रम साध्य कर्म को इतनी जल्दी पूरा कर उपलब्ध कराने के लिये आपका  हार्दिक आभार ॥ प्रतिक्रिया-रचनाओं को भी संकलन मे देख कर बहुत खुशी हुई ।

संकलन के पन्नों से गुज़र कर संकलन कार्य के श्रम को मान देने के लिए आपका आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी सादर, मंच द्वारा प्रतिक्रया छंदों को भी संकलित करने का यह अभिनव कार्य सिर्फ वाह - वाह करने की बात नहीं है. यह कार्य रचनाओं को संकलित करने से भी जटिल है.तब इस संकलन कार्य के सभी सहयोगकर्ताओं का भरपूर उत्साहवर्धन होना चाहिए. मैं इस जटिल कार्य में सहयोगी बने हर सहयोगकर्ता को दिल से बधाई देता हूँ और उनके प्रति आभार भी व्यक्त करता हूँ. सादर.

संकलन में प्रविष्टि रचनाओं के साथ ही प्रतिक्रया छंद भी देखना आपको अच्छा लगा ...यह जान संकलन कार्य सार्थक हुआ 

धन्यवाद आ० अशोक कुमार रक्ताले जी 

इस अभिनव संकलन के लिए हार्दिक बधाई. इस बार का संकलन न केवल अपनी प्रस्तुतियों की संख्या से बल्कि प्रस्तुति ढंग से भी अभिनव है.

बधाई बधाई बधाई !!

आदरणीय सौरभ जी,

इस बार प्रस्तुतियों की क्वानटिटी और क्वालिटी दोनों ही चौकाने वाली थी... आपको प्रस्तुति का टेब्युलर ढंग पसंद आया तो श्रम सार्थक हुआ.

सादर धन्यवाद 

वाह अद्भुत एक अलग ही अंदाज जो कि मन को बहुत भाया आदरणीय प्राची दीदी प्रस्तुत रचनाओं के साथ छंद के रूप में प्रस्तुत टिप्पणियां भी साथ में बहुत ही श्रम साध्य कार्य किया है आपने. निःसंदेह यह आयोजन बहुत ही सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ जिस हेतु सभी को हार्दिक बधाई. आपके इस अनोखे और कठिन कार्य हेतु दिल से बहुत बहुत बधाई दी.

आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी  इस सुन्दर संकलन के लिए हार्दिक बधाई. अपनी प्रस्तुति देख मन को बहुत अच्छा लगा...आभार

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