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बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.

हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,

आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,

यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,

रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से यही करवा रही है बेबसी.

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 9:14pm

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.

स्नेही अनन्त जी सुन्दर 

सादर 

बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 20, 2014 at 8:09pm

आदरणीय अरुण भाई काफी दिनों बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली है, हर शेर लाजवाब है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Maheshwari Kaneri on April 20, 2014 at 7:27pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल ....... आदरणीय अरुण जी 

Comment by ram shiromani pathak on April 20, 2014 at 2:30pm

यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती निगाहों की नदी,

रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से यही करवा रही है बेबसी./////////////////वाह वाह वाह क्या कहने आदरणीय भाई जी,बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 20, 2014 at 11:58am

आदरणीय भाई अरुण अनंत जी एक लाज़वाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी --- बहुत खूब

Comment by Saarthi Baidyanath on April 20, 2014 at 11:21am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय , अरकान का जिक्र शायद जरूरी था यहां ! ...ग़ज़ल के सारे शे'र खुबसूरत हैं ..दिली दादो-मुबारकबाद कबूल करें 

आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको, 
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी...वाह जनाब 

Comment by vandana on April 20, 2014 at 6:04am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल ....... आदरणीय अरुण जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 20, 2014 at 12:19am

लाजवाब गजल कही आदरणीय अरुण अनंत जी, हर एक शेर जिंदाबाद. तहे दिल से बधाइयाँ आपको

Comment by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 9:02pm

वाह बहुत सुन्दर अरुण भाई .. बेहतरीन ग़ज़ल.. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 8:43pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है , सभी शे र बहुत बढिया कहे ! आपको बहुत बहुत बधाइयाँ !

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