For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

 

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 34 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

इस आयोजन में प्रयुक्त चित्र श्री कँवल आनन्द के सौजन्य से प्राप्त हुआ है जो जम्मू-कश्मीर में पत्रकार-फोटोग्राफर के रूप में कार्यरत हैं. इस चित्र को परिभाषित करती हुई छंद-रचना प्रस्तत करनी है.

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ – 

18 जनवरी 2014  दिन शनिवार

से

19 जनवरी 2014 दिन रविवार

 

 

 

छंदोत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |

 

 

 

 

इस बार से "चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के मूल स्वरूप को स्थायी रखते हुए व्यावहारिक परिवर्तन किया जा रहा है. छंदोत्सव का आयोजन अबसे निर्धारित छंदों पर ही आधारित होगा.

इस बार के आयोजन के लिए दो छंदों का चयन किया गया है, दोहा छंद और रोला छंद.

प्रस्तुतकर्ता एक बार की प्रवष्टि में अधिक-से-अधिक पाँच दोहे या/और दो रोले प्रस्तुत कर सकते हैं.

ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.

 

उन सदस्यों के लिए जो दोहा और रोला छंदों के आधारभूत विधानों से परिचित नहीं हैं, उनके लिये संक्षिप्त विधान प्रस्तुत किये जा रहे हैं.

 

लेकिन उससे पूर्व मात्रिक छंदों में गेयता की सुनिश्चितता हेतु निम्न विन्दुओं को ध्यान से देखें.

शब्दों के उच्चारण और उसकी मात्राओं के समवेत स्वरूप के अनुसार शब्दों के कल  बनते हैं. जैसे, शब्दों के द्विकल, शब्दों के त्रिकल, शब्दों के चौकल, षटकल आदि. इसी के अनुसार पदों का प्रवाह निर्धारित होता है.

द्विकल, चौकल आदि शब्दों को सम मात्रिक शब्द कहते हैं.

जैसे, हम, वह, निज आदि.

जबकि त्रिकल या षटकल आदि शब्दों को विषममात्रिक शब्द कहते हैं.

जैसे, हुआ, बड़ा, कहाँ आदि त्रिकल हैं.

 

यों, कोई शब्द षटकल हो तो वह उच्चारण के लिहाज से सममात्रिक ही हुआ करता है. यानि वह दो विषम शब्दों का पूर्ण स्वरूप होने से सम शब्द ही माना जाता है. 

दीवाना, आवारा, परंपरा आदि षटकल शब्द हैं.

व्यवहार जैसा शब्द द्विकल और त्रिकल के समूह है. व्यव द्विकल तथा हार त्रिकल.

 

इस तथ्य को समझ लेने से चरणों के कुल शब्दों की मात्रा को गिनने के अलावे शब्द-विन्यास को निर्धारित करने में भी सहुलियत हो जाती है. साथ ही साथ, गेयता को सुचारू रूप से निर्धारित करने के लिए मात्रिकता को निभाना भी सहज हो जाता है.

यानि यह अवश्य मान लें कि कोई मात्रिक पद (छंद की एक पंक्ति) मूलतः सम शब्दों का ही समुच्चय बनाता है.

अर्थात कोई विषम शब्द हो तो उसके ठीक बाद विषम शब्द रख कर षटकल बनाने से सम मात्रिकता का निर्वहन हो जाता है. यानि विषम शब्द के बाद विषम शब्द ही आवे और सम के बाद एकदम से विषम शब्द न आवे.  आवे भी तो उस विषम के बाद एक और विषम शब्द रख कर सभी शब्दों के समुच्चय को सम मात्रिक बना लेते हैं.

जैसे, बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर जैसे पद में बड़ा त्रिकल के बाद हुआ भी त्रिकल है. दोनो मिल कर षटकल का निर्माण करते हैं जो कि सम संख्या भी है. इस तरह गेयता या पढ़ने के (वाचन) प्रवाह में कोई दिक्कत नहीं आती.

 

दोहा छंद

दोहा एक ऐसा छंद है जो शब्दों की मात्राओं के अनुसार निर्धारित होता है. इसके दो पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में दो चरण होते हैं. पहले चरण को विषम चरण तथा दूसरे चरण को सम चरण कहा जाता है. विषम चरण की कुल मात्रा 13 होती है तथा सम चरण की कुल मात्रा 11 होती है. अर्थात दोहा का एक पद 13-11 की यति पर होता है. यति का अर्थ है विश्राम.

यानि भले पद-वाक्य को न तोड़ा जाय किन्तु पद को पढ़ने में अपने आप एक विराम बन जाता है.

 

दोहा छंद मात्रा के हिसाब से 13-11 की यति पर निर्भर न कर शब्द-संयोजन हेतु विशिष्ट विन्यास पर भी निर्भर करता है. बल्कि दोहा छंद ही क्यों हर मात्रिक छंद के लिए विशेष शाब्दिक विन्यास का प्रावधान होता है.

 

यह अवश्य है कि दोहा का प्रारम्भ यानि कि विषम चरण का प्रारम्भ ऐसे शब्द से नहीं होता जो या तो जगण (लघु गुरु लघु या ।ऽ। या 121) हो या उसका विन्यास जगणात्मक हो

अलबत्ता, देवसूचक संज्ञाएँ जिनका उक्त दोहे के माध्यम में बखान हो, इस नियम से परे हुआ करती हैं. जैसे, गणेश या महेश आदि शब्द.

 

दोहे कई प्रकार के होते हैं. कुल 23 मुख्य दोहों को सूचीबद्ध किया गया है. लेकिन हम उन सभी पर अभी बातें न कर दोहा-छंद की मूल अवधारणा पर ही ध्यान केन्द्रित रखेंगे. इस पर यथोचित अभ्यास हो जाने के बाद ही दोहे के अन्यान्य प्रारूपों पर अभ्यास करना उचित होगा. जोकि, अभ्यासियों के लिये व्यक्तिगत तौर पर हुआ अभ्यास ही होगा. 

 

दोहे के मूलभूत नियमों को सूचीबद्ध किया जा रहा है.

 

1. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण विषम शब्दों से यानि त्रिकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 3, 3, 2, 3, 2 के अनुसार होगा  और चरणांत रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) होगा.

 

2. दोहे का आदि चरण यानि विषम चरण सम शब्दों से यानि द्विकल या चौकल से प्रारम्भ हो तो शब्दों का संयोजन 4, 4, 3, 2 के अनुसार होगा और चरणांत पुनः रगण (ऽ।ऽ) या नगण (।।।) ही होगा.

 

देखा जाय तो नियम-1 में पाँच कलों के विन्यास में चौथा कल त्रिकल है. या नियम-2 के चार कलों के विन्यास का तीसरा कल त्रिकल है. उसका रूप अवश्य-अवश्य ऐसा होना चाहिये कि उच्चारण के अनुसार मात्रिकता गुरु लघु या ऽ। या 21 ही बने.

यानि, ध्यातव्य है, कि कमल जैसे शब्द का प्रवाह लघु गुरु या ।ऽ या 1 2 होगा. तो इस त्रिकल के स्थान पर ऐसा कोई शब्द त्याज्य ही होना चाहिये. अन्यथा, चरणांत रगण या नगण होता हुआ भी जैसा कि ऊपर लिखा गया है, उच्चारण के अनुसार गेयता का निर्वहन नहीं कर पायेगा.

 

३. दोहे के सम चरण का संयोजन 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 के अनुसार होता है. मात्रिक रूप से दोहों के सम चरण का अंत यानि चरणांत गुरु लघु या ऽ। य 21 से अवश्य होता है.

 

कुछ प्रसिद्ध दोहे -

 

कबिरा खड़ा बजार में, लिये लुकाठी हाथ

जो घर जारै आपनो, चलै हमारे साथ

 

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर

पंछी को छाया नहीं फल लागै अति दूर

 

साईं इतना दीजिये, जामै कुटुम समाय

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय

 

विद्या धन उद्यम बिना कहो जु पावै कौन

बिना डुलाये ना मिले, ज्यों पंखे का पौन

 

रोला छंद

रोला छंद भी मात्रिक छंद ही है. रोला छंद के चार पद होते हैं. अतः आठ चरण होंगे.

लेकिन इसका मात्रिक विधान दोहे के विधान का करीब-करीब विपरीत होता है. यानि मात्राओं के अनुसार चरणों की कुल मात्रा 11-13 की होती है.

यानि, दोहा का सम चरण रोला छंद का विषम चरण बन जाता है और उसके विन्यास और अन्य नियम तदनुरूप ही रहते हैं.

किन्तु, रोला का सम चरण दोहा के विषम चरण की तरह नहीं होता.

 

प्राचीन छंद-विद्वानों के अनुसार रोले के भी कई और प्रारूप हैं तथा तदनुरूप उनके चरणों की मात्रिकता. लेकिन हम यहाँ इस छंद की मूलभूत और सर्वमान्य अवधारणा को ही प्रमुखता से स्वीकार कर अभ्यासकर्म करेंगे.

यहाँ प्रस्तुत उपरोक्त नियमों को फिलहाल रोला के आधारभूत नियमों की तरह लिया जाय.

 

रोला छंद के चरणों के विन्यास के मूलभूत नियम -

 

1. रोला के विषम चरण का संयोजन या विन्यास दोहा के सम चरण की तरह ही होता है,

यानि 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3 तथा चरणांत गुरु लघु या ऽ। या 21

 

2. रोला के सम चरण का संयोजन 3, 2, 4, 4 या 3, 2, 3, 3, 2 होता है. रोला के सम चरण का अंत दो गुरुओं (ऽऽ या 22) से या दो लघुओं और एक गुरु (।।ऽ या 112) से या एक गुरु और दो लघुओं (ऽ।। या 211) से होता है. साथही, यह भी ध्यातव्य है कि रोला का सम चरण ऐसे शब्द या शब्द-समूह से प्रारम्भ हो जो प्रारम्भिक त्रिकल का निर्माण करें.

 

रोला छंद के उदाहरण -

 

नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है.

सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है.

नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारा-मंडल हैं

बंदीजन खगवृन्द, शेष-फन सिंहासन है. .....(मैथिली शरण गुप्त)

 

ये मेरा खरगोश बड़ा ही प्यारा-प्यारा

गुलथुल गोल-मटोल, सभी को लगता न्यारा

खेले मेरे साथ, नित्यदिन छुपम-छुपाई

चोर-सिपाही दौड़, और पकड़म-पकड़ाई...  .....(कुमार गौरव अजीतेन्दु)

 

 

आयोजन सम्बन्धी नोट :

(1) 17 जनवरी 2013 तक Reply Box बंद रहेगा, 18 जनवरी दिन शनिवार से 19 जनवरी दिन रविवार  यानि दो दिनों के लिए Reply Box रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

 

विशेष :

यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

अति आवश्यक सूचना :

आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक रचना,   कि एक ही दिन में दो रचनाएँ.

 

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.

नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

 

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

 

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.

 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

 

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहा...

 

मंच संचालक

सौरभ पाण्डेय

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13077

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

इस छंदोत्सव का श्रीगणेश आपके सुमधुर रोला छंद से हुआ, चित्र को शब्द प्रदान करती आपके इन रचनाओ पर हार्दिक बधाई

हृदय से धन्यवाद, भाई रमेशजी.

आदरणीय सौरभ सर जी छंदोत्सव का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. रोला एवं दोहा छंद के जरिये चित्र को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने. सुन्दर भावों से परिपूर्ण मनमोहक रोला एवं दोहा छंदों पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

जय हो...

बहुत-बहुत धन्यवाद भाई अरुन अनन्तजी. आपकी प्रविष्टि की प्रतीक्षा है.

शुभ-शुभ

प्रदत्त चित्र से पूर्णतः न्याय करते दोनों छंद बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ जी इतनी सुन्दर शुरुआत की 

आपका सकारात्मक अनुमोदन मिला, मैं उत्साहित हो गया, आदरणीया. 

सादर

आदरणीय सौरभ भईया, आयोजन का शुभारम्भ बहुत ही शानदार रोले से हुआ है, सभी दोहे बहुत ही उम्दा लगें,अंतिम दोहा बहुत ही गंभीर प्रकृति का हुआ है, एक जगह मैं तनिक भ्रमित हूँ, आपकी प्रस्तुति में दो जगह पत्थर तोड़ने का उल्लेख है, किन्तु प्रदत्त चित्र में इसका अभाव है।
मुझे यह प्रस्तुति अच्छी लगी, बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये ।

समीक्षात्मक प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईजी. मन प्रसन्न हुआ.

//एक जगह मैं तनिक भ्रमित हूँ, आपकी प्रस्तुति में दो जगह पत्थर तोड़ने का उल्लेख है, किन्तु प्रदत्त चित्र में इसका अभाव है। //

इस पर प्रधान सम्पादक कुछ कहें कि वे प्रदत्त चित्रों को और उनपर रचनाओं को वे कैसे लेते हैं या लेते रहे हैं.

और, पत्थर से कोई क्या समझता है.. ! .. :-))

मेरी समझ से पत्थर पत्थर ही होते हैं, चट्टान नहीं. पत्थरों को ही हथौड़ों से मज़दूर और मज़दूरिन तोड़ते / फोड़ते हैं. इन्हींको एक और नाम दिया जाता है  --गिट्टी.
ऐसा न होता तो, महाप्राण निराला कब के ख़ारिज़ कर दिये गये होते जब उन्होंने ये लिखा था--

वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर -
वह तोड़ती पत्थर.

शुभ-शुभ

///मेरी समझ से पत्थर पत्थर ही होते हैं, चट्टान नहीं. पत्थरों को ही हथौड़ों से मज़दूर और मज़दूरिन तोड़ते / फोड़ते हैं. इन्हींको एक और नाम दिया जाता है  --गिट्टी.///

आदरणीय यहाँ मैं भी असहमत नहीं हूँ, मेरे कहे को अलग दिशा में समझ लिया गया, मैं पुनः कहने का प्रयत्न करता हूँ…….

प्रस्तुत चित्र में चट्टान / पत्थर / गिट्टी तोड़ते नहीं दिखाया गया है, जबकि आपकी काव्यात्मक व्याख्या में पत्थर / गिट्टी तोड़ने का उल्लेख है, शायद मैं स्पष्ट कर सका होऊंगा ।

अब इस पर क्या कहा जाय ..

प्रदत्त चित्र का वातावरण तो यही बताता है कि वह रेजा/ मजदूरिन / श्रमिक इस कार्य विशेष के लिए ही वहाँ बैठी है जिसे पत्थर तोड़ना कहते हैं और चित्रानुसार तृषापोषण हेतु जल-घूँट ले रही है.

वैसे भाईजी, स्क्वैटिंग पोश्चर है, इसको अब अन्य अर्थ क्यों दिया जाय ..  :-))))

हा हा हा हा...

जय-जय

//बहुत कड़ी है धूप, प्यास से त्रस्त दिखे है
है औरत मज़बूत, किन्तु कुछ लस्त दिखे है
बहुत जान की सख़्त, तभी तो इतनी हिम्मत
दिनभर गिट्टी तोड़, जोड़ती तिल-तिल किस्मत //

बिन चाहे भी रोज़, फाँक ले कितनी मिट्टी

पानी पी पी खूब, बिछाती रहती गिट्टी

तन से बेपरवाह, करे है मेहनत चोखी 

भूख भयानक चीज़, पेट की आग अनोखी 



//रोड़ा-पत्थर-ईंट,  कुदाल-हथौड़ी-डलिया
या, गारा-सीमेण्ट, उठाने वाली अढिया*
माह जेठ-बैसाख, यही कुछ इसके साधन    
इनसे नाता जोड़, करे रेजा** आराधन  //

क्या गर्मी क्या धूप, अगर कुनबा हो भूखा

लगता छप्पन भोग, मिले जो रूखा सूखा

मिल जाए जो काम, तभी हल होता मसला

भूख भगाए दूर, यही गैंती औ तसला

रोले हैं दमदार, कथन और शिल्प निराला

जो कहता है चित्र, सभी कुछ तो कह डाला,

सीधी सादी बात, मगर कितनी गहराई

छंद रचे अनमोल, करोड़ों बार बधाई


दोहा
===
//गिट्टी-पत्थर दिन सभी, रातें चुभती खूँट
किस्मत लगी उदार-सी, मिल जाती जल-घूँट//

बा आसानी कह गए, कितनी गहरी बात

पैनी हैं कितनी नज़र, धन्य धन्य हे तात,  



//जबतक तन में जान है, इच्छा रखे अधीन
चला रहा है पेट ही सबकी देह-मशीन //

ना कोई सरकार है, ना कोई कानून

आग बुझायें पेट की, रोज़ जला कर खून,



//औरत पत्थर तोड़ती जोड़ रही संसार
जीना भारी ज़ंग है, भाँज रही तलवार//

मजबूरी मज़दूर की, रही धूप में सूख

बदलेगा कुछ भी नहीं, जब तक घर में भूख 



//आम ज़िन्दग़ी के लिए सपने हैं अधिकार
हाड़तोड़ की झोंक पर निर्भर सब संसार //

नए ज़माने की हवा, रहती इनसे दूर

सदियों से मजबूर हैं, सदियों से मज़दूर



//दे पाया क्या सोचिये, जन-गण का उन्माद
वही सड़क, पत्थर वही, वही इलाहाबाद//

शासन को सुनती नहीं, ग़ुरबत की आवाज़

इन तक भी पहुँचो कभी, अगर हिंद पर नाज़ 

***********

आदरणीय योगराजभाईसाहब, आपने निरुत्तर कर दिया है.

आपका काव्यात्मक अनुमोदन सौ बातों की एक बात बन कर उभरा है. प्रदत्त चित्र पर मेरे निवेदन-प्रस्तुति को जिस ऊँचाई से परखता हुआ आपका अनुमोदन सामने आया है वह भाव-दशा प्रस्तुति को सार्थक स्वर देता हुआ मुखर है.

आपके प्रतिक्रिया छंद इतने सक्षम हैं कि इनकी महत्ता स्वयंसिद्ध है. ये पूरक कथ्य बन कर अवश्य प्रस्तुत हुए हैं लेकिन इनकी संज्ञा अद्वितीय है.
सदियों से मजबूर हैं, सदियों से मज़दूर .. आपके इस एक पद ने मेरी समस्त प्रस्तुति को सस्वर कर दिया है. मैं आपकी संवेदनशीलता और आपके आशुरचना-गुण को नमन करता हूँ.

अपने दोहा छंदो में से अंतिम प्रस्तुति को मैंने महाप्राण निराला की उस अमर कविता के नाम समर्पित किया है जिस कविता ने हिन्दी साहित्य में कविताई का अर्थ ही बदल दिया.

छंदोत्सव आयोजन के प्रदत्त चित्र के माध्यम से प्रतिभागियों द्वारा काव्य की जिस ऊँचाई, भाव-दशा और व्याप्त वातावरण के जिस सर्वांगी रूप को निभाने की आपने सदा से बात की है, उसके समकक्ष या कसौटी पर इस प्रस्तुति के छंद कितने उतरे हैं, इसके प्रति आपका उत्तर मिल गया है, आदरणीय.     
सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
10 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service