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आँखों को रतजगे मिले हैं जल भराव भी
उल्फ़त में दुख मिले तो मिले गहरे भाव भी

कानों को आहटें सुने बर्षों गुज़र गये
बुझने लगे हैं आँखों के जलते अलाव भी

कुछ इसलिये खमोशियाँ ये रास आ गईं
दुनिया न जान ले कहीं अंतस के घाव भी

गर डूबना नसीब है तो फ़िक़्र क्यों करूँ
दरिया में अब उतार दी है टूटी नाव भी

वो साथ दे सका न बहुत देर तक मेरा
इक तो हवा ख़िलाफ़ थी उसपे बहाव भी

वो चाँद है,वो चाँद भला किसका हो सका
बे-वज़्ह क्यों बढ़ा रहे पीड़ा तनाव भी

सुधबुध गवाँ के रात में उसको निहारना
अच्छा नहीं है चाँद से 'ब्रज' ये लगाव भी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 7, 2022 at 10:12am

आदरणीय समर कबीर जी आपका हार्दिक अभिनंदन एवं आभार...बे-बज़्ह गूगल कीबोर्ड की गलती है...सुधार करता हूँ...सादर

Comment by Samar kabeer on November 5, 2022 at 7:03pm

जनाब 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I  

'बे-बज़्ह क्यों बढ़ा रहे पीड़ा तनाव भी'---' बे-बज़्ह'  को "बे-वज्ह" लिखें I 

जनाब रवि भसीन जी से सहमत हूँ I 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 4, 2022 at 9:50pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय महेंद्र जी...आदरणीय रवि जी से असहमति का कोई कारण नहीं है...जल्द ही पोस्ट एडिट करूँगा।

Comment by Mahendra Kumar on November 4, 2022 at 12:42pm

बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय बृजेश जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आदरणीय रवि जी से मैं भी सहमत हूँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 4, 2022 at 11:20am

आपका बहुत बहुत शुक्रिया भाई जैफ...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 4, 2022 at 11:19am

स्वागत संग आभार आदरणीय धामी जी...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 4, 2022 at 11:18am

आदरणीय अमीरुद्दीन जी हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद...

Comment by Zaif on November 3, 2022 at 11:47pm

आदरणीय ब्रज सर, क्या काफ़िये लिए है अपने, कमाल। हर शेर लाजवाब। दाद स्वीकार कीजिए। ज़िंदाबाद

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2022 at 12:45pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। एक अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on November 2, 2022 at 9:31pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, जनाब रवि भसीन जी के साथ बहुत अहम और सार्थक चर्चा हुई है। 

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