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ग़ज़ल (तेरे खाने के लिए मुफ्त का माल अच्छा है)

अरकान- 2122  1122   1122   112/22

तेरे  खाने  के  लिये  मुफ्त  का माल  अच्छा है
इसलिये  लगता  चुनावों का  वबाल  अच्छा है

ये  अलग  बात  कि  सूरत  न  भली  हो  लेकिन
कुछ न कुछ हर कोई करता ही कमाल अच्छा है

हम  जवाबों  से  परखते  हैं  रज़ामन्दी  को
मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है

हद से बाहर तो हर  इक  चीज़  बुरी  लगती है
हद में रह कर जो किया जाए धमाल अच्छा है

अस्मतें रोज़ ही माँ बहनों की बिकती हैं मगर
वो समझते हैं कि इस देश का हाल अच्छा है

अच्छे  दिन कैसे कहूँ इनको  बताओ  यारो
हाल बदला नहीं फिर कैसे मआल अच्छा है

कर गुज़रने की तमन्ना हो अगर कुछ दिल में
फिर जो आये वो ज़वानी का उबाल अच्छा है

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Rachna Bhatia on January 6, 2021 at 7:10pm

आदरणीय। बेहतरीन ग़ज़ल हुई

वाह वाह वाह वाह।

Comment by Ajay Kumar on January 6, 2021 at 1:48pm
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल कही आपने....

हम जवाबों से परखते हैं रज़ामन्दी को
मुस्कुरा दे वो अगर समझो सवाल अच्छा है

मजा आ गया भैया जी
बधाई स्वीकार कीजिए
Comment by TEJ VEER SINGH on January 5, 2021 at 6:32pm

हार्दिक बधाई आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।बेहतरीन गज़ल।

अस्मतें रोज़ ही माँ बहनों की बिकती हैं मगर
वो समझते हैं कि इस देश का हाल अच्छा है

अच्छे  दिन कैसे कहूँ इनको  बताओ  यारो
हाल बदला नहीं फिर कैसे मआल अच्छा है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2021 at 6:18pm

आ. भाई सुरेन्द्रनाथ जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on January 5, 2021 at 5:40pm

जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

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