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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-117

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 117वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  जलील ’आली’ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"एक दिन में कहाँ अंदाज़-ए-नज़र बनता है "

2122       1122   1122    22

 

फाइलातुन      फइलातुन         फइलातुन       फेलुन

(बह्र:  रमल मुसम्मन मख्बून मक्तुअ )

रदीफ़ :- बनता है।
काफिया :- अर( नज़र, सफर, सर, क़मर, हुनर, बशर आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीय जनाब समर कबीर साहिब, इस्लाह का बेहद शुक्रिया मुहतरम, बहुत जल्दी में कही गई ग़ज़ल खासकर वो पहला मतला. उसे हटा दूंगा. वैसे वो शब्द रिज्क के लिए आया था जो पुल्लिंग है....रिज्क खुमर बनता है, मगर खुमर शब्द ही गलत है....सादर.  

आदरनीय राज़ जी , बहुत ही सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई हो 

 आदरनीय सालिक जी, अच्छी ग़ज़ल के बधाई हो 

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, बेहद शुक्रिया आपका. 

आ.  राज़ साहब उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

आ. भाई राजनवादवी जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

धीरे - धीरे सही यादों का शहर बनता है
एक पौधा कहाँ इक दिन में शजर बनता है

देखते - देखते ही साल गुज़र जाते हैं
एक दिन में कहाँ अंदाज-ए-नज़र बनता है

काट डाले गए थे हाथ कई लोगों के
तब कहीं जाके ही मुमताज़ का घर बनता है

नाम फौलाद का होता है असल में लेकिन
कारखानों में तो दिन रात ज़हर बनता है

पैकर - ए-ख़्वाब हक़ीक़त तो नहीं बन पाया
तुम बना ही लो कहीं तुमसे अगर बनता है

मौलिक एवं अप्रकाशित

जनाब सालिक जी आदाब,तरही मिसरे पर आपका प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'धीरे - धीरे सही यादों का शहर बनता'
इस मिसरे में क़ाफ़िया दोष है,सहीह शब्द "शह्र" और इसका वज़्न 21 है,'श हर, की जगह 'नगर' कर लें ।
'काट डाले गए थे हाथ कई लोगों के
तब कहीं जाके ही मुमताज़ का घर बनता है'
इस शैर का ऊला यूँ होना था:-
'काटे जाते हैं यहाँ हाथ कई लोगों के'
'नाम फौलाद का होता है असल में लेकिन
कारखानों में तो दिन रात ज़हर बनता है'
इस शैर के ऊला में सहीह शब्द है "अस्ल"वज़्न 21,और सानी मिसरे में क़ाफ़िया ग़लत है,सहीह शब्द है "ज़ह्र" वज़्न 21,देखें ।

"ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-117 को सफ़ल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों का हार्दिक आभार व धन्यवाद ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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