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उर-विदारक उलझन

बर्फ़ीला एहसास

गूँजता-काँपता

एक सवाल

तुम्हा्रा स्नेह भरा संवेदित हृदय 

सुनता तो हूँ उसमें नित्य  नि:सन्देह

संगीत-सी तरंगित अपनी-सी धड़कन

फिर क्यूँ  तुम्हारे आने के बाद

मन के तंग घेरों में लगातार

सिर उठाए ठहरा रहता है हवा में

आदतन एक ख़याल 

एक अंगारी सवाल --

शीशे के गिलास का

हाथ से छूट जाना

तुम्हारे लिए

सामान्य तो नहीं है न ?

         -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by vijay nikore on July 30, 2019 at 10:32pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई समर कबीर जी।

Comment by vijay nikore on July 30, 2019 at 10:31pm

 सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी

Comment by Samar kabeer on July 24, 2019 at 12:17pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,

'आदतन एक ख़याल 

एक अंगारी सवाल --

शीशे के गिलास का

हाथ से छूट जाना

तुम्हारे लिए

सामान्य तो नहीं है न ?'

बहुत उम्द: कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on July 23, 2019 at 8:23pm

बहुत सुंदर सृजन आदरणीय विजय निकोर जी .... अंतर्मन गांठे खोलता अनुपम सृजन। ... हार्दिक बधाई सर।

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