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ताज़ा गर दिल टूटा है तो वक़्त ज़रा दीजै (४७ )

ताज़ा गर दिल टूटा है तो वक़्त ज़रा दीजै 
क़ायम रखना रिश्ता है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
सिर्फ़ शनासाई से होता प्यार कहाँ मुमकिन 
इश्क़ मुक़म्मल करना है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
पहले के दिल के ज़ख़्मों का भरना है बाक़ी 
ज़ख़्म नया गर देना है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
ख़्वाब कभी क्या बुनने से ही होता है कामिल 
पूरा करना सपना है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
जल्दी के सब काम हमेशा शैताँ के होते 
इन्सां बनकर रहना है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
काम तमाम तरह के शायद ही पीछा छोड़ें 
ख़ुद को ख़ुद से मिलना है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
सार-सँभाल बिना मर जाते बच्चे हों या पौध 
इनको रखना ज़िंदा है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
यार ख़ुमार-ए-इश्क़ उतरता धीरे धीरे ही 
और बुख़ार ज़ियादा है तो वक़्त जरा दीजै 
**
दीद 'तुरंत' नदी की करलें उतरें मत उसमें
गहराई में जाना है तो वक़्त ज़रा दीजै 
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'बीकानेरी
१२ /०६/२०१९

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 23, 2019 at 12:30pm

Rakshita Singh जी रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन | 

Comment by रक्षिता सिंह on June 22, 2019 at 11:20pm

आदरणीय गिरधारी जी नमस्कार, 


काम तमाम तरह के शायद ही पीछा छोड़ें 
ख़ुद को ख़ुद से मिलना है तो वक़्त ज़रा दीजै । 

बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ बहुत बहुत बधाई ।

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