For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आम चुनाव और समसामायिक संवाद (लघुकथाएं) :

(1).चेतना :

ग़ुलामी ने आज़ादी से कहा, "मतदाता सो रहा है, उदासीन है या पार्टी-प्रत्याशी चयन संबंधी किसी उलझन में है, उसे यूं बार-बार मत चेताओ; हो सकता है वह अपने मुल्क में किसी ख़ास प्रभुत्व या किसी तथाकथित हिंदुत्व या किसी इमरजैंसी के ख़्वाब बुन रहा हो!"

आज़ादी ने उसे जवाब दिया, "नहीं! हमारे मुल्क का मतदाता न तो सो रहा है; न ही उदासीन है और न ही किसी उलझन में है! उसे चेताते रहना ज़रूरी है! हो सकता है कि वह तुष्टीकरण वाली सुविधाओं, योजनाओं, क़ानूनों से आज़ादी का मतलब भूल गया हो या सही उड़ान भरना भूल गया हो या ख़ुद को कठपुतली समझने लगा हो!"

(2).जनता ही तो :

आज़ादी ने लोकतंत्र से कहा, "तुम जनता के, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन रूप में पहचाने जाते हो; लेकिन हो ये रहा है कि व्यापारी-उद्योगपतियों के, उनके ही लिये, उनके ही द्वारा तुम हांके जा रहे हो!"

लोकतंत्र ने उसे जवाब दिया, "नहीं! मैं अब भी उसी रूप में परिभाषित, प्रचलित व स्थापित हूँ! इस सदी में जनता ही व्यापारी है; सौदागर है; उद्योगपति है! कोई लघुत्तम, तो कोई मध्यम और कोई बहुत ही बड़ा विश्वस्तरीय!"

(3).अस्तित्व :

लोकतंत्र ने ग़ुलामी से कहा, "मैं इस मुल्क में शताब्दी की ओर बढ़ रहा हूँ! अब भी मुझे संशय है कि मुल्क की जनता आज़ादी में मेरे साथ अधिक सुखी है या तुम्हारे दिनों में ज़्यादा सुखी थी?"

ग़ुलामी ने उसे सैल्यूट करते हुए जवाब दिया, "आयुष्मान भव; यशस्वी भव! ग़ुलामी के दिनों में कुछ एक ग़ुलाम ही अधिक सुखी थे और आज़ादी के दिनों में तुम्हारे साथ कुछ एक लोग ही ज़्यादा सुखी हैं बस; शेष नहीं! ... लेकिन मेरे समय में उन शेष के कारण ही मुल्क ने आज़ादी पाई और अब तुम्हारे समय में इन शेष के कारण ही तुम्हारा अस्तित्व है!"

(4).असंतुष्टि :

आज़ादी ने ग़ुलामी से कहा, "हमारे मुल्क के लोगों को मैं या तो रास नहीं आ रही या वे मुझे सही ढंग से समझ ही नहीं पा रहे हैँ! लोकतंत्र क़ायम है, पर संतुष्ट नहीं! सतत तुष्टिकरण के बावजूद जनता संतुष्ट नहीं!"

ग़ुलामी ने उसे सैल्यूट करते हुए कहा, "आयुष्मान भव; यशस्वी भव! तुम रास तो सब को आ रही हो! लोग तुम्हें समझ भी रहे हैं! कुछ अलोकतांत्रिक असंतुष्टों की वजह से तुम पर और लोकतंत्र पर लोग उंगलियां उठाते हैं; चोटिल करते और करवाते हैं!"

(5) ख़तरा :

आज़ादी ने जनता से कहा, "तुम्हारे द्वारा चलाया जा रहा लोकतंत्र विशाल और परिपक्व होते हुए भी ख़तरे में बताया जा रहा है! जागो और जगाओ! अबकी चुनाव में लोकतंत्र बचाओ!"

जनता ने उसे जवाब दिया, "ख़तरे में न लोकतंत्र है और न ही हम! ख़तरे में तो कुछ नेता हैं और उनके राजनैतिक दल, बस!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 349

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 30, 2019 at 6:41pm

आदाब। मेरे इस भिन्न अभ्यास पर.समय देकर अवलोकन करने और.मुझे टिप्पणी द्वारा यूं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहिब। सभी व्यूअर्स को हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Samar kabeer on April 23, 2019 at 3:41pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथाएं हुईं,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service