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गज़ल -16 ( पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिए)

बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊलु, फ़ाइलातु, मुफ़ाईलु, फ़ाइलुन
221, 2121, 1221, 212

ग़ज़ल
*****
उनकी नज़र ने मेरे सभी ग़म भुला दिए
पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिए//१


जैसे छुआ हो अब्र ने तपती ज़मीन को
छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिए//२

ख़ुशबू उठी है क़ल्ब में सोंधी सी इश्क़ की
यादों ने उनके प्यार के छींटे गिरा दिए//३

हल्की सी बस ख़बर थी कि निकलेगा चाँद कल
स्वागत में उसके मैंने सितारे सजा दिए//४

आंखों में उनकी देखा जो इक इश्क़ का भँवर
नैया को अपनी हम तो उसी में डुबा दिए//५

एहसास तब हुआ कि मज़ा इश्क़ में ही है
जब हम खुशी से खुद की ही हस्ती मिटा दिए//६

-- क़मर जौनपुरी

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Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:51am

आदरणीय क़मर जौनपुरी साहब, आदाब. ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है. बधाई क़ुबूल करें. आदरणीय समर कबीर साहब से एक बात पूछनी थी- 

'पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिए' --- यदि ये काम उनकी नज़र ने किया है तो मिसरा यूँ बनना चाहिए

(उनकी  नज़र ने) 'पत्थर जिगर को प्यार का दरिया बना दिया' 

इस मिसरे में भी मुझेए लगता है- 

'छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिए'

'छू कर वो मेरी रूह को शीतल बना दिया' //२ या और सही ये कि 'छू कर उसने मेरी रूह को शीतल बना दिया' ऐसा होना चाहिए.

इस मिसरे में भी-

'नैया को अपनी हम तो उसी में डुबा दिए' ऐसा होना चाहिए- नैया को अपनी हमने तो उसी में डुबा दिया'. 

इस मिसरे के बारे में भी मुझे कुछ ऐसा ही लगता है-

'जब हम खुशी से खुद की ही हस्ती मिटा दिए' इसे ऐसा होना चाहिए- जब हमने खुशी से खुद की ही हस्ती मिटा दी' 

समर साहब से दरख्वास्त है के मार्गदर्शन करें. 

सादर 

Comment by क़मर जौनपुरी on December 21, 2018 at 10:49am

इस्लाह के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम। कोशिश करूंगा सही करने की।

Comment by Samar kabeer on December 17, 2018 at 10:52am

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

2रे और छटे शैर में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं होस सका ।

यादों ने उनके प्यार के छींटे गिरा दिए'

इस मिसरे में 'उनके' की जगह "उनकी" कर लें ।

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