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गीत-इसलिये हैं नैन घायल आँसुओं से तर-ब-तर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

किसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर?

फिर किसी सुनसान कोने
चीख कोई जो उठी
रात की खामोशियों में
रातरानी रो उठी
दानवी अट्टाहसों में
आह तड़पी घुट गई
टूटती साँसें समेटे
लड़खड़ाती वो उठी

इस कदर बरपी क़यामत
बन गई मातम सहर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर

है नहीं जग में ठिकाना
आँख जाए नीर का
मोल कोई दे सकेगा
वेदना का पीर का
जिस नज़र पे था भरोसा
घात भी उससे मिली
हाथ ही अंधे हुये तब
धर्म क्या शमशीर का

आग बरसे आसमां से
तप रही है रहगुजर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 13, 2018 at 7:35am

बहुत बहुत आभार डा.साहब...

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 11, 2018 at 3:53pm

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी बहुत बेहतरीन कविता दिल खुश हो गया दिली बधाई कुबूल कीजिए

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 11:46am

आदरणीय तिवारी जी आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 11:46am

सुन्दर मनोहारी टिप्पड़ी के लिए आपका धन्यवाद आदरणीय डा.साहब

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 11:45am

आपका स्वागत है आदरणीय त्रिपाठी जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 11, 2018 at 11:44am

बहुत बहुत आभार आदरणीया नीलम जी..सादर नमन

Comment by Ajay Tiwari on October 10, 2018 at 5:21pm

आदरणीय बृजेश जी, अच्छा गीत हुआ है. हार्दिक बधाई.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 9, 2018 at 5:46pm

भाई ब्रिजेश जी ..मुझे ये गीत बेहद पसंद आया हाथ ही अंधे हुये तब
धर्म क्या शमशीर का  ये पंक्ति तो कमाल की है ..बहुत बहुत बधाई 

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 9, 2018 at 10:45am

आ0 ब्रजेश कुमार ब्रज जी बहुत सुंदर लिखा आपने । इसके लिए बधाई ।

Comment by Neelam Upadhyaya on October 8, 2018 at 12:10pm

आदरणीय ब्रजेश जी, अच्छी रचना की प्रस्तुति।  बधाई स्वीकार करें। 

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