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स्वतंत्रता दिवस पर ३ रचनाएं :

स्वतंत्रता दिवस पर ३ रचनाएं :

एक चौराहा
लाल बत्ती
एक हाथ में कटोरा
भीख का
एक हाथ में झंडा बेचता
कागज़ का
न भीख मिली
न झंडा बिका
कैसे जलेगा
चूल्हा शाम का
क्या यही अंजाम है
वीरों के बलिदान का

सुशील सरना
.... .... ..... ..... ..... ..... ....

हाँ
हम आज़ाद हैं
अब अंग्रेज़ नहीं
हम पर
हमारे शासन करते हैं
अब हंटर की जगह
लोग
आश्वासनों से
पेट भरते हैं
महंगाई,भ्रष्टाचार
और
रोटी की
मरीचिका में जीते हैं
और उसी में मरते हैं

सुशील सरना
.... ..... ...... ...... ...... ...


ये किस दीमक ने
अपने घर को कमजोर कर दिया
शहीदों की कसमें
किर्चियों सी बिखरने लगीं
उनका सपना
एक सपना बन कर रह गया
कल
वीरों ने कसमें खाईं तो
आज़ादी भी दिलवाई
आज के दिन
एक कसम
हम भी खाएं
भ्रष्टाचार की दीमक से
हिन्दुस्तान बचाएं
अपने हिन्दुस्तान को
भीख मुक्त बनाएं
शहरी सैनिक बन कर हम
अपना फ़र्ज़ निभाएं
भूले जो वीरों की कसमें
उनको हम दोहराएं
जय हिन्द के नारे से हम आज
तिरंगे को फहराएं

सुशील सरना
मौलिक एवं अपक्राशित

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Comment by Sushil Sarna on August 21, 2018 at 5:13pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Neelam Upadhyaya on August 20, 2018 at 4:06pm

आदरणीय सुशिल सरना जी, नमस्कार।  वर्तमान में समाज में व्याप्त विसंगतियों कटाक्ष करती बहुत ही  सूंदर रचना।  प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Sushil Sarna on August 17, 2018 at 3:58pm

आदरणीया समर कबीर साहिब , आदाब ... सृजन के भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार। सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभार है। सर आपकी पैनी दृष्टि का मैं कायल हूँ। आपका मार्गदर्शन सदा मेरे सृजन को सशक्त करता है। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on August 17, 2018 at 3:52pm

आदरणीया सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का आभार है।

Comment by Sushil Sarna on August 17, 2018 at 3:51pm

आदरणीया लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का आभार है।

Comment by Sushil Sarna on August 17, 2018 at 3:50pm

आदरणीया मो.आरिफ साहिब , आदाब ... सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on August 17, 2018 at 3:49pm

आदरणीया डॉ विजय शंकर जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on August 17, 2018 at 3:48pm

आदरणीया बबितागुप्ता जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on August 16, 2018 at 10:49pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,क्या तारीफ़ करूँ इन रचनाओं की,वाह  बहुत ख़ूब, बेहद सटीक,और मार्मिक,दिल को छू गईं पहली दो रचनाएँ,लेकिन तीसरी भावनाओं में बह गई, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें ।

'किर्चियों सी बिखरने लगी'--"किर्चियों सी बिखरने लगीं"

' वीरों ने कसमें खाई तो'--"वीरों ने क़समें खाईं तो"

Comment by नाथ सोनांचली on August 16, 2018 at 1:29pm
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। देश की वर्तमान विसंगतियों पर बढ़िया प्रहार किया है आपने अपनी कलम से। बधाई स्वीकार कीजिये

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