For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की -कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?

कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?
मुझ को भेजा है जहाँ में कि सचाई देखूँ.
.
ये अजब ख़ब्त है मज़हब की दुकानों में यहाँ
चाहती हैं कि मैं ग़ैरों में बुराई देखूँ.
.
उन की कोशिश है कि मानूँ मैं सभी को दुश्मन
ये मेरी सोच कि दुश्मन को भी भाई देखूँ.
.
इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को,   
मुस्कुराहट में फ़क़त उस की लिखाई देखूँ.
.
दर्द ख़ुद के कभी गिनता ही नहीं पीर मेरा  
मुझ पे लाज़िम है फ़क़त पीर-पराई देखूँ.
.
अब कि बरसात में ऐ काश कि बन जाऊँ किसान   
और फिर धरती की मैं गोद भराई देखूँ.  
.
दोस्त निकले थे मेरे, शह्र में कल ले के जुलूस
अब मैं निकला हूँ.. कहाँ आग लगाई.. देखूँ.      
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2018 at 2:39pm

शुक्रिया आ. डॉ आशुतोष जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 21, 2018 at 2:39pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2018 at 3:50pm

आदरणीय भाई निलेश जी आपकी रचना पर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से बहुत कुछ सीखने को मिला ..इस रचना पर भी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2018 at 6:38pm

आ. भाई नीलेश जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2018 at 4:02pm

धन्यवाद आ. समर सर,
जुलूस वाले शेर को भी आपके कहे अनुसार बदल लिया है ... कभी -कभी मान भी लेता हूँ, कभी नहीं भी मानता हूँ..
किताब पर भरोसा ज़रूरी है या रब पर? जब ये सवाल मैं ख़ुद से करता हूँ तो पाता हूँ कि रब पर भरोसा कर के मनुष्य अधिक विनम्र  और सहिष्णु बनता है.. किताब पर भरोसा करने वालों में ऐसा नहीं देखा मैंने..
शायद भविष्य में सोच बदले मेरी...वैसे उम्मीद कम ही है...
फिर शाइरी ख़ुद में मनोभावों को व्यक्त करने का साधन मात्र है.. अगर दिल की आवाज़ को शब्द देना भी ज़रूरी हैं ..
फिर ..
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में ...
मुझे भी ये सब कहने की प्रेरणा वही ईश्वर देता है जिसने दूसरों से कुछ किताबें लिखवाई हैं..अत: मैं भी इसे ईश्वरीय आदेश मान कर कलमबद्ध करता रहूँगा.. 
सादर  

Comment by Samar kabeer on May 11, 2018 at 3:44pm

मतला बहुत उम्दा हो गया है ।

'इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को

मुस्कुराहट में किसी,रब की लिखाई देखूँ'

ऊला मिसरा कहता है कि "अब"मुझ को भरोसा नहीं,यानी पहले भरोसा था,तो फिर ऐसा क्यों हुआ कि अब भरोसा नहीं?आपकी कही हुई बात स्पष्ट नहीं हो रही है,अब रहा ये सवाल कि क्या कोई किताब जैसा कि कहा जाता है,माना जाता है कि ये ईश्वर ने लिखी है,को सिर्फ़ इसलिये नकार देना कि ये बात आपको नहीं जँचती,मुनासिब नहीं,क्या आपने उस किताब या किताबों का गहन अध्यन किया है?मैं समझता हूँ कि आप कभी उनके क़रीब भी नहीं गए होंगे,दुनिया के बड़े बड़े दानिश्वर जो उस ज़माने में हुए उन्होंने भी इसका इंकार किया था,लेकिन उन किताबों के अध्यन के बाद उनके विचारों में बड़ा बदलाव देखा गया,ख़ैर ये अपनी अपनी सोच है,लेकिन अपनी ऐसी सोच को क्यों दूसरों पर थोपा जाये?और भी बहुत से मज़ामीन हैं,ज़ाहिर है जो लोग इस पर यक़ीन रखते हैं,ईमान लाये हैं,हम अपने शैर से उनका दिल दुखाने का क्या अधिकार रखरे हैं,जो आप सोचते हैं,ज़रूर सोचिये,लेकिन किसी दूसरे की सोच या ऐतिक़ाद को ठेस पहुंचाकर क्या मिलेगा,इसलिये मेरी आपसे मोद्दीबाना गुज़ारिश है कि ऐसे अशआर लिखने या कहने से परहेज़ करें ।

'दोस्त फिरते थे मेरे शह्र में भी लेके जुलूस'

इस मिसरे से बहतर मुझे ये मिसरा लगा:-

'दोस्त निकले थे मेरे शह्र में फिर लेके जुलूस'

इस मिसरे में 'फिर' शब्द ने जो मज़ा पैदा किया है,उसे महसूस कीजिये,,वैसे जो आपको अच्छा लगे वो करें,तनाफ़ुर तो निकल गया ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2018 at 3:06pm

धन्यवाद आ. तेजवीर सिंह जी 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2018 at 3:06pm

आ. समर सर,
ग़ज़ल पर आप की इस्लाह पाकर ग़ज़ल समृद्ध होती है ...
वैसे तो सच्चाई को सचाई भी   लिखा/ कहा जाता है जैसे नदी को नद्दी ...लेकिन फिर भी शंका के निवारण के लिए मतला ही बदल देता   हूँ...
अब मतला यूँ पढ़ें ..
.
क्यूँ खँडर जिस्म पे जमती हुई काई देखूँ  
रूह की क़ैद-ए-अनासिर से रिहाई देखूँ.   ..
.
मुस्कुराहट वाला शेर शायद कमज़ोर रह गया इस मायने में कि जो मैं कहना चाहता हूँ वो आप तक पहुँचा ही नहीं ..
.
किताबों से मेरी मुराद उन तमाम धार्मिक किताबों से है जो स्वयं के ईश्वरीय शब्द होने का दावा करती हैं..जिन्हें माना जाता है कि स्वयं ईश्वर ने कहा है अथवा अपने दूत के माध्यम से कहलवाया है ..मैं ऐसी पुस्तकों को ईश्वर  कृति मानने से इनकार करते हुए कहता हूँ कि सिर्फ मनुष्य की मुस्कुराहट में ही उस परमात्मा की लिखाई दिखती है मुझे ..... और अधिक स्पष्ट करने के लिए सानी मिसरे को 
मुस्कुराहट में किसी, रब की लिखाई देखूँ. 
.
तनाफुर को कुछ यूँ काफ़ूर किया है ..देखें 
.
दोस्त फिरते थे मेरे शह्र  में भी ले के जुलूस ..
.
तीनों तर्मीमों पर आपका अनुमोदन चाहता हूँ ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2018 at 2:46pm

आ. राजेश दीदी,
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हौसला देने के लिए पर्याप्त है ..उस   पर समीक्षा और इस्लाह हो जाय तो क्या  कहने ..
बहुत बहुत आभारी हूँ ... भाई वाले शेर में //में// किये लेता हूँ ..बाकी पर विचार   करता हूँ,
सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 11, 2018 at 1:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नीलेश जी।बेहतरीन गज़ल।

दोस्त निकले थे मेरे, शह्र में कल ले के जुलूस 
अब मैं निकला हूँ.. कहाँ आग लगाई.. देखूँ.      

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय ज़ैफ़ भाई आदाब, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें।"
31 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
47 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
49 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service