For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

संतुलन - लघुकथा

'संतुलन'
"चाय ठंडी हो गयी छोटे, ले न।" भैया के शब्दों से हमारे बीच पसरी ख़ामोशी भंग हो गयी।
हाँ! लेता हूँ भाई साहब, आपको तो पता हैं कि मैं आपकी तरह चाय 'कड़क गर्म' नहीं बल्कि बिलकुल ठंडी करके पीता हूँ।" मैं हल्का सा मुस्करा दिया।
बरसों पहले अपने हिसाब से जीने की चाहत लिये मैं, भैया से जायदाद का हिस्सा ले बच्चों सहित शहर चला गया था। उसके बाद आपसी रिश्ते कब कम होते-होते एक अंतहीन चुप्पी में बदल गए थे, पता ही नहीं चला। आज किसी काम से इधर आया तो अनायास ही घर की ओर कदम उठ गए। लेकिन ढलती उम्र में बच्चों के साथ छोड़ जाने के बाद भैया और मकान, दोनों की खस्ता हालत देखकर मन अवसाद से भर गया।
"लेकिन भाई साहब, आपकी आर्थिक स्थिति तो बहुत अच्छी थी और बच्चों को हर तरह से लायक बनाने में भी आपने कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर आज इस स्थिति में।"
"गल्ती मेरी ही थी छोटे! बच्चों को हद से ज्यादा मोहब्बत करता रहा।" भैया के चेहरे पर एक फीकी मुस्कान उभर आई। "सब कुछ उन्हीं के भविष्य में लगा दिया, एक पाई भी नहीं बचाई अपने बुढ़ापे के लिये। वैसे तू ठीक ही कहता था, आदमी को दिल से नहीं दिमाग से सोचना चाहिए।"
"नहीं! मैं भी कहाँ सही निकला, सारी उम्र दिमागी चश्मा ही पहने रहा।" सहज ही आर्थिक सुदृढ़ता के आवरण तले, अपने बच्चों की बेरुखी मेरी आँखों में झलक आई। "सच कहूँ तो जमाने को समझने में हम दोनों ही मात खा गए।"
"मैं समझा नहीं!" भैया ने प्रश्नात्मक नजरें मेरे चेहरे पर टिका दी।
"जमाना बदल गया हैं भाई साहब आजकल दिल वाले, दिमाग वाले दोनों ही फेल है। अब तो वही सफल खिलाड़ी है जो वक़्त की कसी हुयी रस्सी पर, दिल और दिमाग दोनों को साध कर चलना जानता हो।" कहते हुये मैं अनायास ही ठंडी चाय एक तरफ कर दूसरी चाय की इच्छा जाहिर कर चुका था।

मौलिक व् अप्रकाशित

विरेंदर 'वीर' मेहता

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 16, 2018 at 10:38pm
रचना पर आपकी प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार भाई तेज वीर सिंह जी। प्रत्युत्तर में विलंब के लिये खेद है। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 16, 2018 at 10:37pm
आदरणीया बबिता जी रचना पर आपकी प्रोत्साहक टिप्पणी केलिये हार्दिक आभार। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 16, 2018 at 10:36pm
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी रचना पर आपकी सुंदर टिप्पणी के लिये दिल से आभार।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 16, 2018 at 10:35pm
आदरणीय समर कबीर सर रचना पर आपकी स्नेह भरी टिप्पणी के लिये तहे दिल से शुक्रिया। जवाब में देरी के लिये माफ़ी भाई जी
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 16, 2018 at 10:33pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी लघुकथा पर आपकी सार्थक उत्साहजनक टिप्पणी के लिये दिल से शुक्रिया। प्रत्युत्तर में विलंब के लिये खेद अवश्य है। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on May 16, 2018 at 10:30pm
रचना पर आपकी प्रथम प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार उस्मानी भाई जी। प्रत्युत्तर में विलंब के लिये खेद है। सादर।
Comment by TEJ VEER SINGH on May 11, 2018 at 1:08pm

हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी। बहुत सुंदर लघुकथा।

Comment by babitagupta on May 10, 2018 at 6:12pm

आदरणीय सर जी, लघु कथा के माध्यम से अभिभावको को संदेश दिया हैं कि आज जमाना सामंजस्य बैठाने का हैं ,न कि अपने हिसाब से चलाने का.बहुत ही सुंदर रचना ,प्रस्तुत रचना पर बधाई स्वीकार जीजियेगा. 

Comment by Neelam Upadhyaya on May 10, 2018 at 11:41am

आदरणीय वीरेंद्र वीर जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया लघुकथा के लिए बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 10, 2018 at 11:25am

जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service