For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हुस्न पर पर्दा रहा

2212 2212 2212 2212

ऐ चाँद अपनी बज़्म में तू रातभर छुपता रहा ।।

आखिर ख़ता क्या थी मेरी जो हुस्न पर पर्दा रहा ।।

कुछ आरजूएं थीं मेरी कुछ थी नफ़ासत हुस्न में ।

वो आशिकी का दौर था चेहरा कोई जँचता रहा ।।

मासूमियत पर दिल लुटा बैठा जो अपना फ़ख्र से ।

उस आदमी को देखिए अक्सर यहाँ तन्हा रहा ।।

रुकता नहीं है ये ज़माना लोग आगे बढ़ गए ।

मैं कुछ खयालातों को लेकर अब तलक ठहरा रहा ।।

था मुन्तजिर मैं आपके वादे को लेकर आज तक ।

किसने कहा है आपसे मेरा नहीं रिश्ता रहा ।।

ये तिश्नगी जिंदा रही लौटा दिया दरबान ने ।

देखा तुम्हारी महफिलों में इश्क़ पर पहरा रहा ।।

मैं रब्त को बस ढूढता ही रह गया अब तक सनम ।

जो थी ग़ज़ल तुमने लिखी मैं बारहा पढ़ता रहा ।।

जलती गयी दिल की वो बस्ती जल गयीं सब ख्वाहिशें ।

तुमने लगाई आग जो अब तक मकां जलता रहा ।।

गर फिक्र होती कुछ उन्हें देते मेरे खत का जबाब ।

मैं इक जमाने से हजारों खत जिन्हें लिखता रहा ।।

मैं कह न पाया उम्र भर जो बात उसकी खौफ में ।

वह नूर मेरे शाद का यह दिल मेरा कहता रहा ।।

--- नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

Views: 453

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 22, 2018 at 8:45pm

आ0 कबीर साहब सादर प्रणाम सर अभी दुरुसुस्त करता हूँ ।

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 6:05am

आद0 नवीन जी अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई। कुछ शेर बेहद अच्छे लगे। शेष आद0 समर साहब कह चुके हैं। सादर

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 10:43pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

4थे शैर के सानी मिसरे में 'ख़यालातों' ग़लत है, ख़याल शब्द का बहुवचन 'ख़यालात' होता है इसे 'ख़यालों' भी लिख सकते हैं ।

6ठे शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये 'दरबान ने'

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 20, 2018 at 6:46pm

आदरणीय सुशील शरण साहब सादर आभार

Comment by Sushil Sarna on March 20, 2018 at 6:34pm

ऐ चाँद अपनी बज़्म में तू रातभर छुपता रहा ।।

आखिर ख़ता क्या थी मेरी जो हुस्न पर पर्दा रहा ।।

कुछ आरजूएं थीं मेरी कुछ थी नफ़ासत हुस्न में ।

वो आशिकी का दौर था चेहरा कोई जँचता रहा ।।

वाह आदरणीय एक से बढ़कर एक शेर। ...मजा आ गया। ... इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
13 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
13 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
14 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service