For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बे-आवाज़ सिक्के /लघुकथा

‘अगर मैंने पाँच का यह सिक्का पाखाने में ख़र्च कर दिया और मुझे आज भी काम नहीं मिला तो फिर मैं क्या करूँगा?’ सार्वजनिक शौचालय के बाहर खड़ा जमाल अपनी हथेली पर रखे उस पाँच के सिक्के को देखकर सोच रहा था। तभी उसके पेट में फिर से दर्द उभरा। वह चीख उठा, ‘‘उफ! अल्लाह ने पाखाने और भूख का सिस्टम बनाया ही क्यों?’’


जिस उम्र में जवानी शुरु होती है उस उम्र में उसके चेहरे पर बुढ़ापा था। लेबर चैराहे के कुछ अन्य मजदूरों की तरह पिछले कई दिनों से जमाल को भी कोई काम नहीं मिला था। घर भेजने के बाद जो थोड़े से पैसे उसके पास थे उसमें से अब सिर्फ़ पाँच का एक सिक्का ही बचा था, या यूँ कहें कि उसने बचाया था, कई बार भूखे रहकर तो कई बार रातों को जाग कर। ‘‘यहाँ सोना है तो अब से आठ नहीं दस रुपया देना होगा।’’ मन्दिर के पुजारी ने रेट बढ़ा दिया था।

‘ग़रीबों को बीमारी आती ही क्यों है? और अगर आती है तो बिना दवा के ठीक क्यों नहीं हो जाती? यदि उसने इसे पाखाने में ख़र्च कर दिया और उसे पुनः जाना पड़ गया तो? वह दवा कैसे ख़रीदेगा? क्या वह गंगा जी के किनारे चला जाये?’ उसने अपनी पीठ को छुआ और कहा, ‘‘नहीं।’’ पिछली बार जब वह भोर में वहाँ बैठा था तो किसी ने पीछे से उसे ज़ोरदार लात मारी थी। यही हाल पेट्रोल पंप जैसे निःशुल्क शौचालयों का भी है जहाँ उस जैसे फटेहाल मज़दूरों को घुसने तक नहीं दिया जाता। ‘तो क्या ग़रीब मुफ़्त में पाखाने भी नहीं जा सकता?’ वह एक अन्य गूढ़ प्रश्न पर भी चिन्तन कर रहा था, ‘भला दो दिन भूखे रहने के बाद भी पेट कैसे ख़राब हो सकता है?’

‘शौचालय या दवा?’ बड़ी-बड़ी इमारतों से घिरा छोटे कद का जमाल इसी उधेड़बुन में ग़ुम था। उसके पेट में तू़फ़ान बढ़ता जा रहा था जिसे वह और देर तक नहीं रोक सकता था। तभी उसकी नज़र एक सुनसान नल पर पड़ी। उसे एक विचार सूझा। उसने आसपास देखा और सड़क के किनारे एक दीवार से सट कर खड़ा हो गया।

थोड़ी ही देर में उसका पायजामा पूरी तरह गीला हो चुका था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी। उसने सामने लगी उस होर्डिंग की तरफ़ देखा जिसमें एक बड़े से चश्मे के दोनों गोले शीशों के बीच काले रंग से कुछ लिखा था। उसने अपनी जेब से उस आख़िरी सिक्के को निकाला, फिर उसे चूमा और अपनी उँगली व अँगूठे से उसे पकड़कर चश्मे के उन दोनों शीशों को बारी-बारी सिक्के से ढककर देखने लगा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 737

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on February 3, 2018 at 10:58am

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by vijay nikore on January 18, 2018 at 8:35am

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2018 at 8:42pm

लघुकथा को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभार आ. तेज वीर सिंह जी. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2018 at 8:13pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आ. कल्पना मैम. आभारी हूँ. सादर.

Comment by TEJ VEER SINGH on January 16, 2018 at 11:52am

हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी। बेहतरीन लघुकथा।ज्वलंत समस्या पर सटीक कटाक्ष।सरकार आदेश तो पारित करती है लेकिन उनके अनुपालन की जिम्मेवारी सड़क पर घूमते आवारा लोगों को सोंप दी जाती है।एक आम आदमी की मज़बूरी का अच्छा चित्रण।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 15, 2018 at 9:22pm

बहुत सुंदर लघुकथा हुई है आदरणीय महेंद्र जी| सार्वजनिक शौचालयों में भी पैसे लिए जाते हैं, गरीबों के लिए वहां भी दिक्कत आती ही होगी, एक सामायिक विषय पर आपने कलम चलायी है साधुवाद आपको|

Comment by Mahendra Kumar on January 15, 2018 at 10:42am

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 15, 2018 at 10:41am

आपकी बात से सहमत हूँ आ. अजय जी. अभी इसे संशोधित करता हूँ. लघुकथा में आपकी उपस्थिति और मूल्यवान टिप्पणी का हृदय से आभार. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 15, 2018 at 10:39am

सादर आदाब आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. आपकी नि:शुल्क सार्वजनिक शौचालयों की बात सही है किन्तु एक मजदूर के साथ वहाँ भी समस्या आती है. मैं लघुकथा में इसे एड्रेस करना भूल गया था. अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया. आपकी इस समीक्षात्मक टिप्पणी का हृदय से आभार. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 5:49am
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन।आपने गरीब लेबर वर्ग की दिक्कतों को लेकर जो ताना बुना है, वह विचारणीय है। इस प्रस्तुति पर बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
46 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और सुख़न नवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सम्माननीय ऋचा जी सादर नमस्कार। ग़ज़ल तकआने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः।"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"//मशाल शब्द के प्रयोग को लेकर आश्वस्त नहीं हूँ। इसे आपने 121 के वज्न में बांधा है। जहाँ तक मैं…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह ख़ूब हुई सादर"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आ. भाई महेन्द्र जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा हुआ है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की सलाह से यह और…"
6 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service