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ग़ज़ल -- 'दिनेश' तुम इतने बदल गये

1221--2121--1221--212

ख़तरे में जब वज़ीर था प्यादे बदल गए
मौक़ा परस्त दोस्त थे पाले बदल गये

आये न लौट कर वे नशेमन में फिर कभी
उड़ने को पर हुये तो परिन्दे बदल गये

होंठों पे इनके आज खिलौनों की ज़िद नहीं
ग़ुरबत का अर्थ जान के बच्चे बदल गए

हालाँकि मैं वही हूँ मेरे भाई भी वही
घर जब बँटा तो ख़ून के रिश्ते बदल गये

ढलने पे आफ़ताब है मेरे नसीब का
देखो ये मेरी आँखों के तारे बदल गये

लहजे में गुल-फ़िशानी न रंगे-जदीदियत
शेरो-सुख़न के सारे सलीक़े बदल गये

सागर को फ़त्ह करने चले थे तो नाख़ुदा
तूफ़ाँ को देखते ही इरादे बदल गये

मुद्दत के बाद देखा जो कल मैंने आइना
दिल कह उठा 'दिनेश' तुम इतने बदल गये

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Ravi Shukla on June 7, 2017 at 2:17pm

आदरणीय दिनेश जी.बहुत ख़ूब! इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए बह्र लिखने में पहले रक्‍न में टंकण त्रुटि हो गई है

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 6, 2017 at 10:58pm
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई आदरणीय हर एक शे'र लाजबाब..
Comment by Mahendra Kumar on June 5, 2017 at 8:32pm

वाह! वाह!! वाह!!! हर शेर एक से बढ़कर एक है. बहुत ख़ूब! इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए आ. दिनेश जी. बह्र मुझे लगता है आपने गलत लिख दी है. सादर.

Comment by दिनेश कुमार on June 5, 2017 at 5:21pm
शुक्रिया मुहतरम मोहम्मद आरिफ साहब। इनायत आपकी।
Comment by दिनेश कुमार on June 5, 2017 at 5:21pm
शुक्रिया मुहतरम मोहम्मद आरिफ साहब। इनायत आपकी।
Comment by Mohammed Arif on June 5, 2017 at 4:39pm
आदरणीय दिनेश कुमार जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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