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ग़ज़ल--खुदा की कसम शायरी हो न पाई

ग़ज़ल

फ ऊलन -फ ऊलन- फ ऊलन- फ ऊलन 

.

ये हसरत मुकम्मल कभी हो न पाई।

मिले वह मगर दोस्ती हो न  पाई ।

मुलाक़ात का सिलसिला तो है जारी

मगर इब्तदा प्यार की हो न पाई ।

त अज्जुब है बदले हैं महबूब कितने

मगर काम रां आशिक़ी हो न पाई।

गए वह तसव्वुर से जब से निकल कर 

खुदा की क़सम शायरी हो न पाई ।

करें नफ़रतें भूल कर सब मुहब्बत

अभी तक ये जादूगरी हो न पाई ।

मुसलसल वो करते रहे बे वफाई 

मगर हम से यह दिल लगी हो न पाई।

फ़क़त गम ये तस्दीक़ है जाते जाते 

मुलाक़ात उनसे मेरी हो न पाई।

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 1, 2017 at 8:06pm
मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया

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Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 9:43am

आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल कही है आपने ...  हार्दिक बधाइयाँ प्रेषित हैं ...स्वीकार करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 28, 2017 at 7:48am
मुहतरम जनाब रवि साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
Comment by MANINDER SINGH on April 27, 2017 at 6:42pm

आदरणीय रवि शुक्ला तहे दिल आभार आपके द्वारा दी गयी जानकारी के लिए.......

Comment by Ravi Shukla on April 27, 2017 at 5:46pm

आदरणीय मनिन्‍दर जी जहा तक आपकी शंका का प्रश्‍न है किसी मिसरे का पहला हर्फ नही वरन  किसी लफ्ज का आम तौर पर पहला हर्फ नहीं गिराया जाता । पर इसमे भी कुछ अपवाद है जैसे मेरे तेरे कोई आदि इनमें कोई एक या दाेनो साथ मे गिराए जा सकते है । इसी पटल पर गजल की कक्षा और गजल की बाते दो आलेख है उनको पढ लीजिये बहुत आसानी हो जाएगी ।

Comment by Ravi Shukla on April 27, 2017 at 5:46pm

आदरणीय तसदीक साहब आदाब  बहुत अच्‍छी गजल कही आपने अच्‍छा लगा पढकर दिली दाद और मुबारक बाद कुबूल करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 27, 2017 at 5:33pm

जनाब मनिंदर साहिब , ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का
बहुत बहुत शुक्रिया ------जहाँ तक मेरी जानकारी है एसा कोई नियम नहीं है

Comment by MANINDER SINGH on April 27, 2017 at 1:11pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही आप ने सर........मेरा एक सवाल है सर आप से....मैंने ग़ज़ल थोड़ी बहुत जो सीखी है वो पूछ पूछ कर ही आप जैसे गुणीजनों से पूछी है......इसलिए आप मेरी बात का बुरा मत मानियेगा.....सर आप के पहले मिसरे में ये को वजन वजन गिरा कर लिखा है....पर जहाँ तक मुझे बताया गया की आप किसी भी मिसरे के पहले लफ्ज़ को मात्रा गिरा कर नहीं लिख सकते है.....आप ने निवेदन है की इस नासमझ को अपनी राय दे....धन्यवाद सर ....

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