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तू ही तो मेरा अपना है

लगता यह इक सपना है 

कहता मेरा पागल दिल 

बस तेरे लिए धड़कना है

ना मेरे दिल ना मेरे में कोई बुराई है

लगता है किस्मत में  ही जुदाई है

चल दिल भी तेरा मैं भी तेरा 

यह सपना तू कर दे बस पूरा

अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको,

इस दिल में बड़ी गहराई  है

अब अकेला हूँ मैं यारों …. 

बस साथ मेरी तन्हाई  है 

बस साथ मेरी तन्हाई है 

                    "मल्हार"

  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 25, 2017 at 8:14am

सुरेंद्र नाथ सिंह"कुशक्षत्रप" जी आपका कोटि कोटि आभार
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए "धन्यवाद"

Comment by नाथ सोनांचली on April 25, 2017 at 7:46am
जनाब मल्हार साहिब आदाब,अच्छी लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on April 24, 2017 at 12:32pm

Samar kabeer# साहब आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद,एवं आभार करता हूँ

Comment by Samar kabeer on April 24, 2017 at 11:50am
जनाब मल्हार साहिब आदाब,अच्छी लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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