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ऐसा लगा जमी पे आसमा उतर गया

*221 2121 2121 212*

‌मेरी गली के पास से वो यूँ गुजर गया ।
ऐसा लगा जमीं पे आसमा उतर गया ।।

माना मुहब्बतों का फ़लसफ़ा अजीब है ।
शायद नज़र खराब थी वो भी उधर गया ।।

मैं रात भर सवाल पूछता रहा मगर ।
उसका जबाब हौसलों के पर क़तर गया ।।

‌तुमने दिए जो जख़्म आज तक न भर सके ।
‌जब जब किया है याद दर्द फिर उभर गया ।


इस तर्ह उस हसीन की तू पैरवी न कर ।
मतलब निकलने पर जो रब्त से मुकर गया ।।

‌तू मेरी आजमाइशों की कोशिशें न कर ।
जो आया तोड़ने वो हो के दर बदर गया ।।

‌मत राज जिंदगी का पूछिए हुजूर अब ।
कातिल भी मेरी मुस्कुराहटों पे मर गया ।।

‌जब भी गए हैं आईने के पास वो सनम ।
‌किस्मत बुलंद पा के आइना निखर गया ।।


‌ --नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 8:24am

आदरणीय नवीन मणि भाई , बेहतरीन गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।

Comment by Mahendra Kumar on February 22, 2017 at 9:08pm
आदरणीय नवीन जी, बढ़िया अशआरों से सजी इस ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए। सादर।
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 21, 2017 at 7:05pm
आ0 नरेंद्र सिंह चौहान जी शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 21, 2017 at 7:04pm
आ0 नीलम उपाध्याय जी सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 21, 2017 at 7:03pm
आ0 सुरेन्द्र नाथ कुश क्षत्रप साहब सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 21, 2017 at 4:45pm
आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी सादर अभिवादन। उम्दा गजल के लिए शैर दर शैर दाद और मुबाकरबाद पेश करता हूँ।
Comment by Neelam Upadhyaya on February 21, 2017 at 4:17pm

अदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, बहुत ही उम्दा रचना है। बधाई ।

Comment by narendrasinh chauhan on February 20, 2017 at 6:07pm

सुन्दर रचना 

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 5:09pm
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on February 20, 2017 at 5:09pm
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब आभार

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