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एक ग़ज़ल-सतविन्द्र कुमार राणा

2122 2122 212
क्यों रहा गुस्ताखियों पे तू अड़ा
इसलिए ही गाल पर झापड़ पड़ा।

बैठ जा खाली पड़ी हैं कुर्सियाँ
तू रहेगा कब तलक यूँ ही खड़ा।

बेसुरी आवाज तेरी हो गयी
इसलिए ही तो तुझे अंडा पड़ा।

देख जिसके हाथ में अंडा नहीं
पास उसके है टमाटर इक सड़ा।

शाइरी को छोड़ के कुछ और कर
देख ले के फैसला ये तू कड़ा।

आब ‘राणा’ को मिला पूरा नहीं
देख खाली ही पड़ा उसका घड़ा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 27, 2016 at 10:40pm
आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी,आपको यह प्रयास पसन्द आया,यह सार्थक हुआ।सादर हार्दिक आभार।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 27, 2016 at 7:50pm

सुन्दर प्रस्तुति 

अब अंडे और सड़े टमाटर पड़ने वाले हों तो शायरी करने का इरादा किसी को भी बदलना ही पड़ेगा ............हाहाहा 

बधाई स्वीकारिये 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 26, 2016 at 6:19pm
आदरणीय समर कबीर जी नमन!अनुमोदन के लिए बहुत बहुत आभार।मार्गदर्शन के लिए भी शुक्रिया!मैं इसे ठीक करने का निवेदन करूँगा।सादर
Comment by Samar kabeer on October 26, 2016 at 3:03pm
जनाब सतविन्द्र कुमार'राणा'साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
पांचवे शैर में 'फैंसला' को "फैसला" कर लें ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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