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ग़ज़ल(शबाब पहने हुए )

फाइलातुन-मफाइलुन-फइलुन

कमसिनी में शबाब पहने हुए |
हुस्न निकला निक़ाब पहने हुए |

तुहमते बेवफ़ाई का कब से
हम हैं बैठे खिताब पहने हुए |

कौन आया है चीखी तारीकी
बज़्म में माहताब पहने हुए |

आँख में इंतज़ार दिल में तड़प
मैं हूँ यह इंक़लाब पहने हुए|

मत यक़ीं करना उसपे आया है
जो वफ़ा का हिजाब पहने हुए |

सामना अस्ल का ज़रूरी है
क्यूँ हैं आँखों में ख्वाब पहने हुए |

किस की तस्दीक़ आई है शामत
आए हैं वह इताब पहने हुए |

इताब-----गुस्सा

( मौलिक वअप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 25, 2016 at 7:39pm

जनाब राम बली साहिब ,   ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 1:32am
हर शैर सुंदर हुए हैं। दिल से बधाई लीजिये भाई तस्दीक जी
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 24, 2016 at 9:09pm

मोहतरम जनाब विजय साहिब ,  हौसला अफ़ज़ाई का  शुक्रिया ----

Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:36pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by Samar kabeer on October 23, 2016 at 9:29pm
ये मिसरा बहतर है ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 23, 2016 at 7:23pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---
आपका कहना दुरुस्त है , इस मिसरे को पहले इस तरह लिखा था --" मेरे घर माहताब पहने हुए " मगर बाद में तब्दील कर दिया , अब इसी को
रख लूंगा ----शुक्रिया

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 23, 2016 at 7:16pm

मोहतरम जनाब  सौरभ  साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी ---

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 23, 2016 at 7:16pm

मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत करने और आपकी हौसला अफ़ज़ाई बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on October 23, 2016 at 3:17pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे शैर में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये'बज़्म में'

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2016 at 2:36pm

एक अच्छी ग़ज़ल हुई है, आदरणीय. बधाइयाँ 

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