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ग़ज़ल-लिए दर्द दिल में पुराने चला हूँ-रामबली गुप्ता

वह्र-122 122 122 122

लिए दर्द दिल में पुराने चला हूँ
गमे इश्क के गीत गाने चला हूँ

जहाँ पल खुशी के बिताये थे तुम सँग
वहीं आज आँसू बहाने चला हूँ

बयाँ हाले' दिल भी करूँ क्या किसी से
मैं' सब खुद से' ही अब छिपाने चला हूँ

थी ये जिंदगी आप ही की ऐ' साहिब
उसे आप ही पे लुटाने चला हूँ

मुबारक तुम्हें चाँद सूरज सितारे
अँधेरों को' मैं आजमाने चला हूँ

खुली आँख का ख्वाब था प्यार तेरा
यकीं आज दिल को दिलाने चला हूँ

छुपा कर गमों को सरे बज़्म यारों
है' मुश्किल मगर मुस्कुराने चला हूँ

लिए आँसुओं का छलकता हुआ जाम
'बली' जश्न गम का मनाने चला हूँ

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:39pm
आद0 विजय निकोरे जी सादर धन्यवाद
Comment by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:38pm
हृदय से आभार आद0 गिरिराज भाई जी
Comment by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:37pm
हृदय से आभार भाई आद0 गोपाल नारायन जी। सुझाव के लिए धन्यवाद
Comment by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:33pm
हृदय से आभार भाई ब्रजेश कुमार जी
Comment by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:32pm
हृदय से आभार भाई ब्रजेश कुमार जी
Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:28pm

गज़ल अच्छी लगी। बधाई।

Comment by रामबली गुप्ता on October 23, 2016 at 11:01pm
हार्दिक आभार आद0 भाई बैजनाथ शर्मा

जी

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Comment by गिरिराज भंडारी on October 23, 2016 at 2:08pm

आदरणीय रामबली भाई , अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 23, 2016 at 12:21pm

जहाँ पल खुशी के बिताये थे तुझ सँग------------यहाँ तुझ संग से प्रवाह बाधित हो रहा है  'मिलकर' कर सकते हैं या फिर कुछ और सोंच ले . सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 23, 2016 at 11:28am
बहुत ही मधुर ग़ज़ल...बधाइयाँ

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