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पूरा दिन धूप में गुजर गया रग्घू का, लेकिन आज ठीक ठाक दिहाड़ी मिल गई थी उसको| आजकल मौसम कुछ बदल सा गया है, इस समय तो ठण्ड शुरू हो जाती थी और काम करने में दिक्कत नहीं होती थी, रग्घू सोचते हुए घर की तरफ चला| ठेला चलाना वैसे तो काफी श्रमसाध्य होता है, लेकिन जब घर पर पत्नी और बच्चे इंतज़ार में हों तो कोई और रास्ता भी नहीं बचता| मंडी के पास से गुजरते हुए उसकी नज़र किनारे बैठे एक बुढ़िया पर पड़ी जो केले बेच रही थी| केले पिलपिले और काले हो गए थे लेकिन काफी सस्ते मिले तो उसने एक दर्जन खरीद लिए|
रास्ते में ठेका भी पड़ता था और उसे देखते ही उसके कदम अपने आप ही बढ़ जाते| आज उसने एक अद्धा लिया और जल्दी जल्दी ख़त्म करके घर चल पड़ा| रोज उसकी बीबी पीने के लिए किचकिच करती लेकिन उसकी आदत अब जरुरत बन चुकी थी| अपनी कोठरी के सामने पहुँचते पहुँचते रात हो चुकी थी और आज दरवाजा खुला ही हुआ था|
घर में घुसते ही बेटी दौड़ के आयी और केले को पाकर खुश हो गई| उसने अपना धूल भरा कुरता निकाला और खाट पर बैठ गया| इतने में पत्नी आयी और उसने मुस्कुराते हुए उसको पानी का ग्लास पकड़ाया| पानी लेते समय उसकी नज़र पत्नी पर पड़ी, आज कुछ अलग और अच्छी लग रही थी| उसे कुछ समझ नहीं आया तो उसने पूछ लिया "आज बहुत सज धज के हो, क्या बात है?
"अरे आज मेमसाब लोग बरती थीं, कौनो करवा चौथ है, मरद के लंबी उमर के लिए होत है| त हम भी रख लिए तुम्हरी उमर के लिए, आज चाँद देखकर खाना खाएंगे", पत्नी ने बहुत उल्लास से कहा|
"हूँ, अब हमको खाना कब मिलेगा", थकान उसके ऊपर भारी हो रही थी|
"अबहीं लाते हैं तुम्हरे लिए खाना", कहते हुए पत्नी खाना लेने चली गई|
थोड़ी देर बाद रग्घू बिस्तर पर पड़ा खर्राटे भर रहा था, बेटी भी केले खाकर सो गई थी लेकिन पत्नी बार बार बाहर आसमान देख रही थी| आखिर उसने अपने मरद के लंबी उमर के लिए व्रत जो रखा हुआ था|
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on October 19, 2016 at 2:01pm

बहुत बहुत आभार आ शिज्जु शकूर जी 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2016 at 10:46am

आदरणीय विनय कुमार सिंह जी अच्छी लघुकथा हुई है

Comment by विनय कुमार on October 18, 2016 at 6:45pm

बहुत बहुत आभार आ समर कबीर साहब 

Comment by Samar kabeer on October 18, 2016 at 5:37pm
जनाब विनय कुमार सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने ईद प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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