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कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे

कब सुख से सूखे लोचन पर करुणा  के घन लाओगे

 

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

कब तक आलंबन पाओगे

व्योम प्रवृत्त विमानों का

कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे

 

नश्वर देह सुरक्षित कितना

रक्षक के समुदायों से

दंभ भरा अस्तित्व बचेगा

कब तक कठिन उपायों से

मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे

 

झूठा नाटक कब तक मरने

वालों पर सविनय  होगा

कब तक अधरों के फूलों से

मातम का अभिनय होगा

कब तक शव –पर्वत पर चढ़कर तुम परचम  लहराओगे

 

बंद कर सकोगे कब तक तुम

मुख निर्मम सच्चाई का

छिपा सकेगा छद्म आचरण

कब तक कृत्य कसाई का

भारत के माथे पर कब तक काला तिलक लगाओगे

 

वमन करेगा कब अंतर्मन

युग-युग की संचित हाला

कब प्रकाश का पुंज धंसेगा

अंतस में बनकर ज्वाला

कब अपने अन्तर्यामी को जयमाला पहनाओगे 

 

(मौलिक व अप्रकाशित )

 

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 5, 2017 at 5:06pm
बहुत ही सुन्दर सरस ओजमयी सृजन नमन है लेखनी को..सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 8:34pm

वाह | बहुत सुंदर रचना|

नश्वर देह सुरक्षित कितना

रक्षक के समुदायों से

दंभ भरा अस्तित्व बचेगा

कब तक कठिन उपायों से

मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे

 

झूठा नाटक कब तक मरने

वालों पर सविनय  होगा

कब तक अधरों के फूलों से

मातम का अभिनय होगा

कब तक शव –पर्वत पर चढ़कर तुम परचम  लहराओगे | बहुत खूब | हार्दिक बधाई सर |

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 3, 2016 at 8:59pm

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

कब तक आलंबन पाओगे

व्योम प्रवृत्त विमानों का

कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे..............वाह ! वाह ! खूब फटकार लगायी है साहब.

आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब सादर, एक सधे अंदाज में बहुत सुंदर ओज पूर्ण गीत रचना हुई है. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by रामबली गुप्ता on October 3, 2016 at 5:33pm
आदरणीय गोपाल नारायण जी, मन्त्रमुग्ध और अभिभूत कर दिया आपकी इस छंद आधारित गीत रचना ने। कालजयी रचना हुई है आदरणीय। आकाशभर बधाई लीजिये। नमन है आपको और आपकी लेखनी को।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 2, 2016 at 7:27pm
आ गोपाल नारायणजी बहुत ही ओज पूर्ण रचना को शत शत नमन।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 12:42pm

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत सुन्दर ओजपूर्ण गीत रचना हुई है , हृदय से बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on October 1, 2016 at 4:07pm

बंद कर सकोगे कब तक तुम
मुख निर्मम सच्चाई का
छिपा सकेगा छद्म आचरण
कब तक कृत्य कसाई का
भारत के माथे पर कब तक काला तिलक लगाओगे

वमन करेगा कब अंतर्मन
युग-युग की संचित हाला
कब प्रकाश का पुंज धंसेगा
अंतस में बनकर ज्वाला
कब अपने अन्तर्यामी को जयमाला पहनाओगे

नमन नमन नमन सदर नमन सर आपकी इस ओजपूर्ण प्रस्तुति को ... अलंकृत शब्दों ने प्रस्तुति में जोश भर दिया है .... देश प्रेम से ओत-प्रोत इस प्रस्तुति के लिए पंक्ति दर पंक्ति ... शब्द दर शब्द दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 1, 2016 at 3:14pm
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी बहुत ही सुन्दर छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 1, 2016 at 1:06pm

आ, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर बहुत सुंदर रचना हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 1, 2016 at 11:51am

आ. डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , बहुत सुन्दर सामयिक एवं सार्थक कुकुभ छंद के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें |

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