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ग़ज़ल - हम भी कुछ पत्थर लेते हैं ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22  22  22 -- बहरे मीर

छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं

और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं

 

वहाँ ज़मीरों की सच्चाई हम किसको समझाने जाते

दिल पे पत्थर रख के यारों रोज़ ज़रा सा मर लेते हैं

 

चाहे चीखें, रोयें, गायें फ़र्क नहीं उनको पड़ता, पर

जैसे बच्चा कोई डराये , वालिदैन सा डर लेते हैं

 

कल का नीला आसमान अब रंग बदल कर सुर्ख़ हुआ है

पंख नोच कर सभी पुराने, चल बारूदी पर लेते हैं

 

वैसे तो ईमान सभी के खून पसीने में है शामिल

लेकिन गंगा भ्रष्ट बही तो वो भी थोड़ा तर लेते हैं

 

कहीं कहीं सूराखें ताज़ा दिखते तो हैं आसमान में

शायद सच हो ! चल हाथों में हम भी कुछ पत्थर लेते हैं

 

उख़ड़ी सांसे काबू करने जिस जा रुकती है पगड़ंडी

वहीं कहीं वीरान ज़मीं पे आ चल अपना घर लेते हैं

***********************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by Ashok Kumar Raktale on August 30, 2016 at 8:06am

वाह ! वाह ! बहुत खूबसूरत गजल कही है आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब भरपूर दाद कुबूलें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2016 at 8:31pm

आदरनीय बृजेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 27, 2016 at 8:31pm

आदरनीय नवीन भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के ल्लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 27, 2016 at 1:55pm

वाहह आदरणीय वाहह क्या शानदार ग़ज़ल हुई हार्दिक बधाई 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 27, 2016 at 7:00am
वाह सर अत्यंत सुन्दर ग़ज़ल

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2016 at 8:17pm

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका अन्दाज़ा सही है , जा  का अर्थ जगह ही है । सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 26, 2016 at 8:08pm

 जिस जा रुकती है पगड़ंडी--------अनुज जा का मतलब जगह है क्या ? सादर .   अच्छी गजल हेतु बधाई ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2016 at 12:37pm

आदरणीय विजय भाई , सराहना के लिये आपका दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2016 at 12:36pm

आदरणीय विजय भाई , सराहना के लिये आपका दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 26, 2016 at 12:36pm

आदरणीया प्रतिभा जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका  ह्र्दय से आभार ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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