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दो वैचारिक अतुकांत --1- टूटता भ्रम और 2-मिसाइलें

1-    टूटता भ्रम

धराशायी हो जायेंगी आपकी धारणायें ,

छिन्न- भिन्न- सा होता प्रतीत होगा आपको

आपके रिश्तों का सच

 

एक बार , बस एक बार

उस झूठ के खिलाफ खड़े हो जाइये

डट कर चट्टान की तरह

जिसे बहुमत ने सच माना है

 

टूट जायेगा आपका भ्रम  

आपके चारों तरफ भी भीड़ होने का

अपने पीछे अचानक प्रकट हुये शून्य को देख कर

 

ये बात और कि लड़ाइयाँ केवल इसीलिये नहीं लड़ी जातीं

कि , हम जीतें

ये जानने के लिये भी कभी लड़ी जाती है

कौन कहाँ है , हम क्या हैं , कहाँ खड़े हैं ,

कहाँ है वो क़समें खाने वाले तथा कथित हमारे रिश्ते

 

झूठ से पेट पालने वाले सत्य की लड़ाई में आयें भी कैसे

छोड़िये भी ।

    

-----------------------------------

2 – मिसाइलें

 

मिसाइलें खूब हैं आपके पास

एक से एक विध्वंसकारी

तबाहो बरबाद कर सकते हैं आप किसी को भी

मिनटों में

तो चला ही देंगे आप

बिना अपराध जाने ,

सज़ा भी तो सम्यक और औचित्यपूर्ण होनी चाहिये

है , कि नही ?

और हाँ

शब्द भी तो मिसाइल की तरह विध्वंसकारी प्रभाव रख्ते हैं 

एक रिश्ते के लिये ।

**************

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 8:12am

आदरनीय सौरभ भाई , एक एक बात को ले कर विस्तार से समझाने के लिये आपका हृदय से आभार । ऐसा लगा जैसे मेरी अनाथ भटकती रचना को नाथ मिल गया हो ।

//

सही ढंग से पंक्चुएशन लिखें तो पंक्ति यों लिखी जायेगी - छिन्न-भिन्न-सा  होता प्रतीत होगा आपको 

ध्यातव्य है, तुलनात्मकता जताने वाले ’सा’ या ’सी’ को विशेषण शब्द के साथ हाइफ़न से जोड़ते हैं. अतः ’छिन्न-भिन्न’ द्वंद्व समास के कारण तथा ’सा’ तुलनात्मकता के कारण हाइफन से जुड़ेगे. //
इस नई जानकारी को साझा करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

आवश्यक सुधार के लिये रचना एडिट कर रहा हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2016 at 4:02am

आदरणीय गिरिराज भण्डारीजी, 

वैचारिकता से पगे आपके शब्द गहन तो होते ही हैं तदनुरूप रचनाएँ भी प्रभावी हो रही हैं. यह उत्साह का भी कारण होना चाहिए. 

प्रस्तुतियों के लिए हार्दिक बधाइयाँ.

सही ढंग से पंक्चुएशन लिखें तो पंक्ति यों लिखी जायेगी - छिन्न-भिन्न-सा  होता प्रतीत होगा आपको 

ध्यातव्य है, तुलनात्मकता जताने वाले ’सा’ या ’सी’ को विशेषण शब्द के साथ हाइफ़न से जोड़ते हैं. अतः ’छिन्न-भिन्न’ द्वंद्व समास के कारण तथा ’सा’ तुलनात्मकता के कारण हाइफन से जुड़ेगे.  

इसी क्रम में दूसरी रचना में बरबद  को बरबाद कर लेना सही होगा, यह टंकण त्रुटि है. 

आपकी पोस्ट पर प्रतिक्रियाएँ भी देखने का सौभाग्य मिला.  

भाई केवलजी ने उत्साह में कुछ सुझाव तो बताये हैं, इस परिप्रेक्ष्य में मेरा तो निवेदन यही होगा कि -

१. रचनाकर्म के ऊपर दिया जाता कोई सुझाव रचनाकार की मौकिलकता से खिलवाड़ का कारण न हो. इसके लिए रचना के मर्म तक पहुँचना आवश्यक है.

२. कोई सुझाव तार्किक हो तथा रचना की संपूर्णता में अभिव्यक्त हो.

इस हिसाब से  भाई केवल जी के सुझाव महती एकांगी हैं. 

//छिन्न भिन्न सा होता प्रतीत होगा आपको//............छिन्न-भिन्न सी प्रतीत होती होगी आपको .. [ये किस तरह का सुझाव है ? छिन्न-भिन्न सी क्यों होगा, जबकि अधोलिखित पंक्ति में ’सच’, जोकि पुल्लिंग है, केलिए ’सा’ आया है ? 

// आपके रिश्तों का सच//....................अपने रिश्तों का सच   [’आपके’ और ’अपने’ के बीच क्या अंतर है ? जबकि दोनों सही हैं !

इसी तरह,

//आपके चारों तरफ भी भीड़ होने का // ...........आपके चारों तरफ भी भीड़ होने की   [ये की क्यों ? जबकि यह ऊपर की पंक्ति में भ्रम शब्द केलिए आया है. क्या हम रचनाओं को इस एकांगी ढंग से देखेंगे ? 

//अपने पीछे अचानक प्रकट हुये शून्य को देख कर //........ शून्यता भांप कर  [यह एक सापेक्ष सलाह है. जो सुझायी जा सकती है लेकिन इस केलिए रचनाकार को मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. रचनाकार को दृष्टि देना अधिक उचित है, बनिस्पत रचनाकार की पंक्तियों को सुधार केलिए प्रभावित करने से.  

शुभेच्छाएँ 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 6:27pm

आ० भाण्डारी भी जी,  बात गलती की नहीं है बल्कि जब कम शब्दों में यदि वही भाव व अर्थ मिल जाये...तो हमें अनावश्यक शब्दों के बोझ से बचना चाहिये....मेरा तात्पर्य इतना ही था. सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 9:56am

आ. केवल भाई , क्या अपा चाह्ते हैं कि -

टूट जायेगा आपका भ्रम  आपके चारों तरफ भी भीड़ होने का  -- मै भीड़ होने की भ्रम कदूँ   -- सोचियेगा

अपने पीछे अचानक प्रकट हुये शून्य को देख कर..       -- मुझे इस पंक्ति मे भी कोई गलती नही दिख रही है ,शून्यता करना क्यों ज़रूरी है ।

..अपने रिश्तों का सच  -- सही है , सुधार कर लूँगा । आपका आभार आदरणीय ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 9:48am

आदरणीय विजय भाई , आपका ह्र्दय से अभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 9:47am

आदरणीय प्रतिभा जी , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 28, 2016 at 9:42am

आ० भण्डारी भाई जी,  सादर प्रणाम!  बेशक आपकी रचनाएं उम्दा है. पर यहां कोई कमजोरियां नहीं बता रहा है....सब के सब गलतियों पर वाहवाही करते हैं...और अच्छी रचनाओं पर कतन्नी मार कर निकल जाते है...जिससे अच्छी रचनाएं पटल पर नही आ पा रहीं हैं...जिसका आपने भी अनुभव किया होगा..?   आप की यह रचना इसी बात की द्योतक है..

//छिन्न भिन्न सा होता प्रतीत होगा आपको//............छिन्न-भिन्न सी प्रतीत होती होगी आपको

आपके रिश्तों का सच//................................अपने रिश्तों का सच

//आपके चारों तरफ भी भीड़ होने का........................आपके चारों तरफ भी भीड़ होने की

अपने पीछे अचानक प्रकट हुये शून्य को देख कर......... शून्यता भांप कर

इसी तरह टंकण में भी त्रुटियां रहा गयी हैं... सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 28, 2016 at 8:52am
सत्य एवं भ्रम , इसी से जूझते हुए हम , निष्कर्ष ?
बधाई , इस वैचारिक प्रस्तुति के लिए आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सादर।
Comment by pratibha pande on June 27, 2016 at 10:10pm

//झूठ से पेट पालने वाले सत्य की लड़ाई में आयें भी कैसे

छोड़िये भी ।//

 

//शब्द भी तो मिसाइल की तरह विध्वंसकारी प्रभाव रख्ते हैं 

एक रिश्ते के लिये ।//   विचारों को उद्वेलित करती  सशक्त प्रस्तुतियाँ      हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय ..सादर 

**************

  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 27, 2016 at 8:47pm

आदरणीय सुशील भाई , सहमति और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

कृपया ध्यान दे...

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