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आहों को हम रख लेते हैं...गीत//डॉ. प्राची

तुमको बहुत मुबारक मंज़िल, राहों को हम रख लेते हैं।
खुशियों की सौगातें तुम लो, आहों को हम रख लेते हैं।

कसमें वादे तोड़ चले तुम,
हमको तन्हा छोड़ चले तुम,
जोड़ी थीं जो राहें तुमने
उनको खुद ही मोड़ चले तुम,
तूफ़ाँ देख मुङो तुम, पर मझधारों को हम रख लेते है....

हर इक रंग तुम्हीं से लेकर
सतरंगी थे ख्वाब सँवारे,
तुम क्या बिछुड़े,अब तो अपने
साथी हैं केवल अँधियारे
सुबह सुनहरी तुम ही रख लो, रातों को हम रख लेते हैं....

गीली मेहँदी, महके गज़रों
से बहका करती थीं रातें,
तुम बिन हर सुर भूली पायल
बेसुर हैं कंगन की बातें,
यादों की खुशबू में भीगी साँसों को हम रख लेते हैं....

मौलिक और अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 13, 2016 at 1:01am
~Prachi

आ. मिथिलेश वामनकर जी, आ.सौरभ जी
सादर प्रणाम
राहों आहों के तुकांत कम मिलने के कारण ही ये समझौता किया था....
हर बंद की अंतिम पंक्ति को क्रमशः इस प्रकार बदलने की कोशिश की है...
लहरों का नर्तन तुम रख लो, थाहों को हम रख लेते हैं....
सुबह सुनहरी तुम लो, काली डाहों को हम रख लेते हैं....
यादों के अश्कों में सीली बाहों को हम रख लेते हैं....
कृपया अब पुनः देखकर सुझाइये,कोई और परिवर्तन अपेक्षित हो तो
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 4, 2016 at 3:57pm

आदरणीया प्राचीजी, भाव विह्वल करते इस गीत पर क्या कहूँ ? बस मुग्ध हूँ. पंक्तियों के माध्यम से जो निवेदन हुआ हैम् वह इस तन्मयता से हुआ है कि विरह की दशा के मुखर प्राकट्य की अनुभूति हो रही है.
एक-एक पंक्ति तीर की तरह आती है.

हर इक रंग तुम्हीं से लेकर
सतरंगी थे ख्वाब सँवारे,
तुम क्या बिछुड़े,अब तो अपने
साथी हैं केवल अँधियारे
सुबह सुनहरी तुम ही रख लो, रातों को हम रख लेते हैं....

वाह वाह !

अलबत्ता, आदरणीय मिथिलेश जी ने विधाजन्य जो प्रश्न उठाये हैं उनकी ओर ध्यान देना समीचीन होगा. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 11:23pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, बहुत प्यारा गीत लिखा है आपने. हार्दिक बधाई. मुखड़े में राहों और आहों की तुकांतता देख अंतरों की टेक से पहले बाँहों, चाहों, फाहों, पनाहों जैसी तुकांतता खोजने को तत्पर हो गया किन्तु बाद में समझ आया आपने स्वर आधारित तुक लिया है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2016 at 9:17pm

बहुत प्यारा गीत लिखा है प्रिय प्राची जी हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2016 at 2:36pm
बहुत ही सुंदर गीत हार्दिक बधाई ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 25, 2016 at 4:30pm
यादों की खुशबू में भीगी साँसों को हम रख लेते हैं....
ati sundar
Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 3:57pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी बहुत ही गहन भावों को समेटे आपके इस की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। बहरहाल इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Ravi Shukla on April 25, 2016 at 1:29pm

आदरणीया प्राची जी  सुन्‍दर गीत के लिये बधाई स्‍वीकार करें 

सुन्‍दर गीत रचा है निश्चित 

सजे हुए है शिल्‍प सुहाने 

कलम आपकी सक्षम है पर 

दर्शन बिम्‍ब प्रतीक पुराने 

शब्‍द यहींं पर वापस धर के  भावों को हम रख लेते है 

Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 12:27pm
मोहतरमा डॉ.प्राची साहिबा आदाब,इस सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकार करें ।

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