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212 212 212 212

संग सुख-दुख सहेंगे ये वादा रहा।
साथ हर वक्त देंगे ये वादा रहा।

चाँदनी रात में ओढ़ कर चाँदनी
तुम जो चाहो, जगेंगे ये वादा रहा।

हाथ सर पर दुआओं का बस चाहिए
हम भी ऊँचा उढ़ेंगे ये वादा रहा।

राह काँटो भरी ये पता है हमें
हौसलों पर बढ़ेंगे ये वादा रहा।

दीप बाती से हम, जब भी मिल कर जले
हर अँधेरा हरेंगे ये वादा रहा।

देह के पार जो चेतना द्वार है
हम वहाँ पर मिलेंगे ये वादा रहा।

अपने जीवन की हम आख़िरी साँस तक
बस तुम्हारे रहेंगे ये वादा रहा।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:55am

आ0 प्राची बहन पिछली गजल की तरह ही यह गजल भी बेहतरीन हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by नादिर ख़ान on February 16, 2016 at 4:08pm

चाँदनी रात में ओढ़ कर चाँदनी
तुम जो चाहो, जगेंगे ये वादा रहा।

हाथ सर पर दुआओं का बस चाहिए
हम भी ऊँचा उढ़ेंगे ये वादा रहा।

राह काँटो भरी ये पता है हमें
हौसलों पर बढ़ेंगे ये वादा रहा।

खूबसूरत मखमली ख़याल लिए, उम्दा ग़ज़ल हुयी है बहुत बधाई आदरणीया प्राची जी ।
मै भी कंफ्यूज हो रहा हूँ, उढ़ेंगे या उठेंगे। ....या आप उड़ेंगे कहना चाह रही है । मार्गदर्शन चाहता हूँ, अपनी  जानकारी के लिए |

Comment by amod shrivastav (bindouri) on February 15, 2016 at 3:44pm
बढ़िया दीदी सादर बधाई
Comment by Rahila on February 14, 2016 at 2:57pm
आदरणीया प्राची दी! शानदार ग़ज़ल,हर शेर खूब भाया ।बहुत बधाई आपको । सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on February 14, 2016 at 1:37pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी!बेहतरीन गज़ल! 

दीप बाती से हम, जब भी मिल कर जले
हर अँधेरा हरेंगे ये वादा रहा।

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