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2122 2122 2122 212

हाय दिल में बस गयी एक गीत गाती सी नज़र ।
कुछ बताती सी नज़र और कुछ छुपाती सी नज़र ।

उसकी आहट से सिहर उठते हैं मेरे जिस्मो-जाँ
बाँचती है मुझको उसकी सनसनाती सी नज़र ।

ज़िन्दगी के फलसफे को पंक्ति दर पंक्ति पढ़ा
क्या गहनता नाप पाती सरसराती सी नज़र ?

आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ?

कतरा कतरा हो रही है रूह जैसे अजनबी
मुझको मुझसे छीनती है हक़ जताती सी नज़र।

कुछ न कुछ कहती मुझे थी, पर न मैं ही सुन सकी
अब मुझे झकझोरती है कसमसाती सी नज़र।

अजनबी सा आइना घुल-मिल करे अब गुफ्तगू
देखती है चाहतों से गुनगुनाती सी नज़र ।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:54am

आ0 प्राची बहन इस लाजवाब गजल के लिए बहुत बहुत बधाई ।

Comment by मनोज अहसास on February 11, 2016 at 5:46pm
बहुत खूब ग़ज़ल आदरणीया
बहुत सारे सुन्दर भाव
खूबसूरत बहर में


इसी बहर में हमने भी एक ग़ज़ल दो तीन पहले डाली थी मंच का ध्यान ही नहीं गया
अब आपकी ग़ज़ल पढ़कर जानने की कोशिश करता हूँ क्या कमी रह गई उसमे

सादर
Comment by Shyam Narain Verma on February 11, 2016 at 4:19pm

क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 

 सादर 

Comment by Ravi Shukla on February 11, 2016 at 12:38pm

आदरणीया प्राची जी संभवत: आपकी पहली गजल से दो चार हो रहे है बहुत ही सुन्‍दर गजल कही है आपने बधाई स्‍वीकार करें

नज़र को कई तरीके से आपने बयान किया है । सुन्‍दर ।

एक पाठक के तौर पर भी कुछ कहने की अनुमति चाहते है

मतले के उला में एक को इक करके गिरा के पढने की आवश्‍यकता नही र‍ह जाएगी

आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ? सावधान सा करता हुआ शेर  बहुत ही बढि़या खयाल है आदरणीया बधाई इसके लिये पर हमें लगता है नजर को सूंघना से बेहतर उपयोग किसी और शब्‍द से हो भी सकता है जैसे भांपना ।

बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिये आदरणीया ।


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Comment by मिथिलेश वामनकर on February 11, 2016 at 1:48am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, बहुत खूब..... लाज़वाब और शानदार ग़ज़ल कही है आपने. हरेक शेर कमाल हुआ है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 10, 2016 at 11:58pm
आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी,
शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 10, 2016 at 9:32pm
सुंदर शानदार प्रस्तुति।
Comment by Manan Kumar singh on February 10, 2016 at 9:19pm
बहुत शानदार प्रस्तुति, बधाई!
Comment by नादिर ख़ान on February 10, 2016 at 4:45pm

आज फिर खामोश सहमा सा कहीं आँगन कोई
सूँघ ली क्या बच्चियों ने बजबजाती सी नज़र ?   

कतरा कतरा हो रही है रूह जैसे अजनबी
मुझको मुझसे छीनती है हक़ जताती सी नज़र।

कुछ न कुछ कहती मुझे थी, पर न मैं ही सुन सकी
अब मुझे झकझोरती है कसमसाती सी नज़र।  

क्या कहने आदरणीया  प्राची जी बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने सभी शेर उम्दा है, बहुत मुबारकबाद इस प्रस्तुति के लिए ...... 

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