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तुम सोचना ये मत (गजल)

1222-1222-1222-1222

मुझे गम के समन्दर में अभी बहना नहीं आया ।

सभी यारो ने माना ये सच्च कहना नहीं आया ।।

 

मुझे कहते रहे कायर इश्क के सूरमां सारे ।

मगर हम मौन हो गए और कुछ कहना नही आया ।।

 

अरे! हम भी यहाँ उस बात का इजहार कर देते ।

मुझे गजलो में अपनी बात को कहना नहीं आया ।।

 

छन्द कहता गजल से ये इश्क उनको नहीं होता

अश्रू से गर जिन्हे दो आँख का धोना नहीं आया ।

 

चलो मैं मानता हूँ की मेरे आँसू नहीं होते ।

मगर तुम सोचना ये मत हमें रोना नही आया।

 "मौलिक व अप्रकाशित"           

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Comment

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Comment by DIGVIJAY on December 1, 2015 at 5:23pm

जी भाईजी....जहाँ तक मैं अपने गजल ज्ञान के विषय में बात करू तो ये भी लगभग शून्य ही हैं.......लेकिन इतना विश्वास दिलाता हूँ कि आप जैसे भाईजनों और गजल के उस्तादों के मार्गदर्शन से मैं एक अच्छा गजलकार बनने के लिए जीं-तोड़ मेहनत करूँगा । आपको मुझमें एक अच्छे शायर कि समंभावना दिखती हैं इसके लिए आपका ह्रदय कि गहराईयों से धन्यवाद ।

Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on December 1, 2015 at 3:00pm

प्रिय भाई ,
भाई कहने के लिए अनुमति लेने की जरुरत नहीं होती। खुले मन से भाई कहिए मुझे।
मैं ग़ज़ल विधा के शिल्प के बारे में कुछ नहीं जानता मगर इतना जरूर पहचान पाता हूँ कि इस शायर में कुछ तो है। आप में यही दिखा था मुझे।
खुश रहें

Comment by DIGVIJAY on December 1, 2015 at 2:33pm

समर साहब मैं गजल को सीखने की दिशा में मेहनत कर रहा हूँ जल्द ही एक और प्रयास के साथ मंच पर प्रस्तुत होऊँगा । सादर ।

Comment by DIGVIJAY on December 1, 2015 at 1:31pm

प्रदीप भइया मैंने अपनी रचनाओँ पर आज तक जितनी भी टिप्पणिया पढ़ी थी ये अब तक कि सबसे जानदार थी । सर जी मैं आपकी अनुमति के बिना आपसे ये अधिकार माँग रहा हूँ कि मैं आपको भाईजी पुकार सकूँ । 

बस, आप सब का आशीर्वाद मिलता रहे भाईजी मैं जल्द ही एक अचछी गजल के साथ प्रस्तुत होऊँगा । सादर ।

Comment by Samar kabeer on November 30, 2015 at 10:57pm
जनाब दिग्विजय जी,आदाब,इस प्रयास के लिये आप बधाई के पात्र हैं,जनाब योगराज प्रभाकर जी की बात पर ध्यान दीजियेगा ।
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on November 30, 2015 at 9:58pm

भाई दिग्विजय आप में अपार संभावनाएं हैं। आप मन से लिखते हैं , सिर्फ कलम से नहीं। बधाई
हाँ आपकी इस उर्दू ग़ज़ल में मौन ,कायर तथा सच्च जैसे शब्द , हो सकता है मात्राओं पर पूरे उतर रहे हों , अच्छा प्रभाव नहीं डाल रहे।
उर्दू बहुत मीठी बोली है दोस्त , उसके शब्द इनकी जगह मिल जाएंगे।
और हाँ , थोड़ा मजाक कर लूँ ?
आप ग़ज़ल-सम्राट श्री श्री आमोद बिंदोरी जी से ग़ज़ल लिखना सीख लें जिन्होंने यहाँ इतनी शानदार टिप्प्पणी की है। इतनी शानदार टिप्पणी मिलने पर आपको चाहिए कि उनके ब्लॉग पर हो ही आएं एक बार। मैं गया था , तबियत प्रसन्न हो गई यार। बहुत सीख कर आया वहां से

Comment by DIGVIJAY on November 30, 2015 at 2:16pm

आदरणीय मुकेश साहब आपने मेरी इस रचना में भी एक खूबसरत अहसास कि खोज कर ली मुझे जानकर प्रसन्नता होती हैं शायद मेरे भाव आप तक सही ढंग से पहुँच गये। आपका बहुत बहुत धन्यवाद माननीय ।

Comment by DIGVIJAY on November 30, 2015 at 2:14pm

आदरणीय Srivastava amod bindouri जी के अनुसार ये जानकर कि ये गजल जैसा जो भी हैं गजल के दायरे से बिल्कुल बाहर निराशा होती परन्तु अगली पंक्ति में उन्होने मुझे जो संबल प्रदान किया इसके लिए उनका तहे दिल से शुक्रिया मैं जल्द ही एक नयी गजल के साथ पेश होऊँगा आदरणीय बिन्दौरी साहब । सादर

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 30, 2015 at 1:07pm

khoobsoorat ehsaas - badhaee bhaee jee

Comment by amod shrivastav (bindouri) on November 29, 2015 at 4:45pm
आ दोस्त यह गजल के दायरे से बिलकुल ख़ारिज है पर आप हतास न होना ऐसे ही लिखते रहिये और मंच में दी गई जानकारी को पढ़ते रहिये यक़ीनन आप बेहद सुन्दर रचना लिखेंगे प्रयाश के लिए बधाई
J

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