For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जोड़ का तोड़ / लघुकथा

पूरे पच्चीस हजार ! ठीक से गिनकर रूपये पर्स में रखे उसने ।
किटी पार्टी खत्म होते ही उमंग भरी तेज कदमों से पर्स को हाथों में भींच घर की तरफ निकल पड़ी ।
पच्चीस महीने में एक बार ये अवसर आता है । हर महीने घर- खर्च से बचा - बचा कर ही यहाँ पैसे भरती रही है ।

" माँ ,आ गई तुम , क्या इस बार भी नहीं खुली तुम्हारी किटी ? "

" खुल गई , देख ! "

" अब तो मेरा कम्प्यूटर आ जायेगा ना ? "

" हाँ , अब उतावली ना हो ,आ जायेगा । "

" देखना माँ ,अबकी बार कम्प्यूटर साइंस में भी सबसे अधिक नम्बर होंगे मेरे ! " वसुधा के आँखों में नई उम्मीदों के सपने पलते देख मन विभोर हो उठा । ममता से भरी हुई वह वसुधा के समीप आकर उसका माथा चुम लिया ।

" क्या हुआ किटी खुल गई तुम्हारी ? "

" जी ! "

" लाओ , मुझे दो , कुछ और शेयर खरीदने के काम आयेंगे । "

" लेकिन , ये पैसे तो वसुधा के कम्प्यूटर के लिए जोड़े है बडी़ मुश्किल से किटी के बहाने । "

" वसुधा के लिये कम्प्यूटर ! उसको तो पराये घर जाना है , उसके लिए ये फालतू के खर्च .... ! "


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 671

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 7, 2015 at 8:01pm
बेटी को पराये घर जाना है इसलिए उसकी परवरिश ज़रूरी नहीं।उसकी परवरिश पर होने वाला ख़र्च फ़ालतू??????
ऐसी मानसिकता से अभी उभरा नहीं है समाज।मार्मिक सन्देश देती अद्भुत लघुकथा।बधाई वन्दनीया कांता दी
Comment by Omprakash Kshatriya on October 7, 2015 at 7:06pm

आ कांता जी आप को इस मार्मिक कथा के लिए बधाई. आप एक महिला हो कर महिला का दर्द समझ सकी. यदि सभी मातापिता इस बात को समझने लग जाए तो लड़कियों की दशा सुधरने में और तीव्रता आ जाए. बढ़िया. बधाई आप को पुन.

Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 6:33pm

किटी के जोड़े पैसे अक्सर बड़ी रकम ही होती है और अधिकतर घर के पुरुषों की नज़र इस पर होती ही है।  कहने को स्त्रीधन का नाम होता है हर जगह लेकिन समस्त मोटी  रकम पर घर के मालिक की ही मल्कियत होती है।  आभार आपको हृदयतल से आदरणीया प्रतिभा जी कथा का मर्म पकड़ने के लिए।  सादर।

Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 6:27pm

आपने बिकुल सही कहा है आदरणीय शहज़ाद जी "वसुधा " पर "वसुधा " सदा अपेक्षित ही रही है।  उम्मीद है आसमान बदलने की वसुधा के लिए भी एक दिन।  वसुधा न सही माँ ने बोलना और लड़ना शुरू तो कर दिया है।  तहेदिल आभार आपको। 

Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 6:22pm

एक औरत की बेबसी को महसूस कर कथा का मर्म समझने के लिए दिल से आभार आपको आदरणीय सुशील सरना जी। 

Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 6:20pm

दिल से आभार आपको आदरणीय तेजवीर जी 

Comment by pratibha pande on October 7, 2015 at 6:11pm

किटी के जोड़े पैसे का मर्म तो शायद एक महिला ही समझ पायेगी ,पुरुष अक्सर किटी को सिर्फ खाओ पियो और यहाँ वहां की बातों तक सीमित समझ कर मजाक भी बनाते हैं , इतने चाव से जोड़े पैसे का हश्र वो ही' ढाक के तीन पात' अपने मन से तो खर्च नहीं हो पाए ना ,सरल सा दिखने वाला विषय गूढ़ मर्म लिए ,  बधाई आपको आदरणीया 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2015 at 3:27pm
लघु कथा का शीर्षक शुरू से अंत तक कथा में परिभाषित करता है, और कथा स्वयं शीर्षक को।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 7, 2015 at 3:22pm
सच ही तो है, इस "वसुधा" पर "वसुधा" की 'सुध' लेने वाला है कौन ? रहना पड़ता है उसे बस मौन ! वाह, एक ही पात्र पर केन्द्रित लघु कथा में पात्र का नाम ही "वसुधा"रखकर लेखिका ने कथानक को उठा दिया था, फिर समाज में व्याप्त भेद-भाव, असमानता को चित्रित कर एक अहम संदेश दिया।बहुत ही सुंदर उत्कृष्ट लघु कथा।बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आदरणीया कान्ता राय जी को।
__शेख़ शहज़ाद उस्मानी
Comment by Jayprakash Mishra on October 7, 2015 at 2:35pm
Isi tarah har baar betiyon k sapane adhure rah jaate hain.achchhi rachan k liye badhai Kanta ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
59 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service