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गुमनाम लखौड़ी पत्थर

अवध के नवाब ने बड़े चाव से अंग्रेजों के लिये रेजिडेसी बनाने के लिये पहला लखौड़ी का पत्थर रखा तो उसको शायद यह भान ही ना होगा कि यह इमारत आने वाली सदी में अपने खानदान के आखिरी वारिस के लिये कांटो का ताज बनवा रहा है ।

पूरा अवध प्रांत अंग्रेजों ने वापस हासिल कर लिया । बदले में उनको रेजीडेन्सी में क्रांतिकारियों द्वारा खेले खूनी खेल की गवाह वह खण्डर इमारत भी मिली।

असफल क्रान्ति ने नवाब को अंग्रेजों ने कलकत्ता फिर इंग्लैंड निर्वासित कर दिया ।

आज वही कभी सुंदर रही इमारत , आज गुमनामी की धूल में दबी उस लखौड़ी की चीखें , प्रातः बुजर्गो व बच्चों के चहल कदमी का स्थल व दिन में चोंच से चोंच लड़ाते प्रेमियों के एकांत क्षणों के बीच दब कर रह गई।

 " मौलिक व अप्रकाशित "

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Comment by Pankaj Joshi on July 7, 2015 at 1:41pm

आप सभी का सादर धन्यवाद शायद जो मैंने इस लघुकथा के माध्यम से कहना चाहा शायद आप तक उसको पहुंच नहीं पाया इसका मुझे खेद है।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 4, 2015 at 10:04pm

लखौड़ी पत्थर से बनी ईमारत जो कभी अंग्रोजो के खिलाफ विद्रोह करने वाले नवाबों की निशानी है,उसका संरक्षण न होने के कारण आज क्षीण होती जा रही है.........आ० क्या यही है लघुकथा का मर्म?? इतनी दूर तक कोई कैसे सोचेगा?? लघुकथा में बहुत स्पष्टतता की आवश्कता है!

सादर!!

Comment by Pankaj Joshi on July 4, 2015 at 7:08am

आ. Mahima Shree जी, उन्नीसवीं श्ताब्दी में बड़ी ईंटो की जगह , छोटी ईंटो का प्रयोग होता था। उन्हें लखौड़ी पत्थर कहते हैं ।

Comment by MAHIMA SHREE on July 3, 2015 at 9:35pm

लखौड़ी क्या है ... इमारत का नाम है.. कथा का आशय शुरु में समझ में आता है बाद में  उलझा दे रहा है

Comment by Pankaj Joshi on July 3, 2015 at 5:47pm

आदरणीय मिथिलेश जी यह लघुकथा मैंने 1857 के गदर के संदर्भ में लिखी है । 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 1:40pm

आदरणीय पंकज जी, 

लघुकथा को बहुत समझने का प्रयास किया किन्तु असफल रहा. लघुकथा पर आपसे मार्गदर्शन निवेदित है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

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