For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पत्थर-दिल पूँजी

के दिल पर

मार हथौड़ा

टूटे पत्थर

 

कितनी सारी धरती पर

इसका जायज़ नाजायज़ कब्ज़ा

विषधर इसके नीचे पलते

किन्तु न उगने देता सब्ज़ा

 

अगर टूट जाता टुकड़ों में

बन जाते

मज़लूमों के घर

 

मौसम अच्छा हो कि बुरा हो

इस पर कोई फ़र्क न पड़ता

चोटी पर हो या खाई में

आसानी से नहीं उखड़ता

 

उखड़ गया तो

कितने ही मर जाते

इसकी ज़द में आकर

 

छूट मिली इसको तो

सारी हरियाली ये खा जाएगा

नाज़ुक पौधों की कब्रों पर

राजमहल ये बनवाएगा

 

रोको इसको

वरना इक दिन

सारी धरती होगी बंजर

---------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2015 at 6:12pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय बागी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2015 at 6:12pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीेया महिमा जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:15pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी, नवगीत विधा पर आपकी पकड़ बहुत ही गहन हुई है, प्रतिक और बिम्बों के साथ जो आपने कारीगरी की है वो काबिले तारीफ़ है, बहुत बहुत बधाई. 

Comment by MAHIMA SHREE on July 3, 2015 at 8:47pm

जिस भी शिल्प में लिखते हैं ..बहुत खूब लिखते हैं ...बहुत बधाई आपको

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 2, 2015 at 6:27pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राम आशरे जी

Comment by Ram Ashery on July 2, 2015 at 6:22pm

अपने ने बहुत ही सजीव वरणन किया है आपको बहुत बहुत बधाई हो 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 29, 2015 at 10:13am

तह-द-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीया राजेश कुमारी जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 28, 2015 at 11:26pm

पत्थर का बिम्ब लेकर कितनी सुन्दरता से आज के परिवेश में पूंजीवाद ,वर्गवाद ,भ्रष्टाचार पर कितना सटीक प्रहार किया है नव गीत में ऐसे भाव  कम ही देखने को मिलते हैं किन्तु आपको तो ग़ज़लों में भी नव प्रयोग करते देख चुकी हूँ आपकी रचनाएँ लीक से हटकर होने के कारण और रोचक होती हैं इस नवगीत को पढ़कर ऐसा ही लगा बहुत ही बढिया लिखा है आपने देर से पढने का खेद है बहुत बहुत बधाई आ० धर्मेन्द्र जी |

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2015 at 9:36pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी। ग़ज़ल के साथ साथ नवगीत भी बड़ी शानदार और सशक्त विधा है और इसमें भी असीम संभावनाएँ हैं। कुछ बातों के साथ ग़ज़ल में पूरा न्याय नहीं हो पाता उन्हें नवगीत के सहारे कहा जा सकता है। 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 26, 2015 at 9:33pm

आदरणीय सौरभ जी, नवगीत पर किया गया मेरा प्रयास आपको रुचा और आपसे इतनी विस्तृत समीक्षा लिखवा लाया तो मेरा प्रयास सफल हो गया। 

पाठक के तौर पर मैं आपके द्वारा लगाये गये आरोप को तह-ए-दिल से स्वीकार करता हूँ। कारण अच्छे बुरे हो सकते हैं पर अपराध तो अपराध है।

बाकी आपकी एक पाठकीय प्रतिक्रिया हजारों पाठकों की  प्रतिक्रिया पर भारी पड़ती है :)।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service