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किसी के चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

1222/ 1222/ 1222/ 1222

किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की                       *पेट

 

जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है

ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

 

न जाने नींद कैसे आती है ऐ बेरहम तुझको

तेरे कारे सितम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की

 

कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले

कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की               

 

पलट के देख लो मायूस चेहरों की तरफ़ इक बार

किस उम्मीदे करम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की 

-मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:55pm

आदरणीय वीनस जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:54pm

आदरणीय सौरभ सर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचनाकर्म सार्थक हुआ आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:53pm

आदरणीय श्री सुनील जी आपका हार्दिक आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:53pm

आदरणीय मिथिलेश जी नवाजिशों के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया आप स्वयं बहुत अच्छे ग़ज़लकार हैं आपकी सराहना हमेशा हर्षित करता है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:51pm

आदरणीया शिखा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on June 1, 2015 at 7:51pm

आदरणीय केवल प्रसादजी आपका दिल से आभार

Comment by वीनस केसरी on May 31, 2015 at 11:19am

कोई ये देख पाता काश कुछ भी कहने से पहले

कि कितने पेचो-खम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की    

ऐसी रदीफ़ को कैसा निभाया है ..
वाह वा
दिल से दाद क़ुबूल करें
जिंदाबाद ग़ज़ल है
एक एक शेर कीमती है


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Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 7:25pm

किसी की चश्मे नम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
गरीबों के शिकम* से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
भाई शिज्जू जी, मैं तो इस मतले पर ही निसार हो गया. बार-बार बधाइयाँ, बार-बार वाह-वाह आप भी अवश्य सुनियेगा..

जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की
यह शेर भी बहुत बड़ा है. शानों पर एँड़ियाँ उचका कर ऊपर झांकने वाले जब ऊपर चढ़ जाते हैं, तो फिर उन लोगों से वास्ता नहीं रखते. इस सच्चाई को क्या सुन्दर मान मिला है !

इस व्यवस्थित ग़ज़ल केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ, भाईजी.

आपकी ग़ज़लें कितनी गहनतर होती जा रही हैं, यह प्रस्तुति उसका भी पैमाना है.
शुभ-शुभ

Comment by shree suneel on May 28, 2015 at 8:51am
जिन्हें तू अपने पीछे यूँ तड़पता छोड़ जाता है
ये वो हैं जिनके दम से गुज़री हैं राहें बलन्दी की... ख़ूब.. उम्दा. .
आदरणीय शिज्जु सर, इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल खास तौर से इस शे'र के लिये हार्दिक बधाई आपको.

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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:46pm

आदरणीय शिज्जु भाई आपकी बेहतरीन ग़ज़लों का सिलसिला जारी है उन्ही में एक और ग़ज़ल सम्मिलित हो गई 

इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

सादर 

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